यह एक्ट आम जनमानस की न्यायिक आत्मा है, जिसका सम्मान सभी को करना होगा
रणघोष अपडेट. उत्तर प्रदेश से
अपने शानदार हाजिर जवाब, बेबाक टिप्पणी ओर अपने फैसलों से आरटीआई की मूल भावना ओर गरिमा को सुरक्षित रखने वाले उत्तर प्रदेश में आरटीआई (सूचना देने के अधिकार कानून) के पूर्व कमीश्नर गजेंद्र यादव को पढ़ना ओर सुनना जरूर चाहिए। गजेंद्र यादव इस एक्ट को आजाद भारत में समाज के अंतिम व्यक्ति को मिलने वाले न्याय का मजबूत आधार मानते हैं। उनका मानना है की 12 अक्टूबर 2005 में जब यह कानून देश में पूरी तरह से लागू हुआ। वह दिन भारतीय जनमानस के लिए सरकारी, प्रशासनिक व्यवस्थाओं में भ्रष्टाचार, कमीशनखोरी, भाई भतीजावाद के चलते फाइलों में दम तोड़ती न्यायिक प्रणाली का पुनर्जन्म जैसा था। पिछले 12 सालों में इस एक्ट को लेकर देश में जबरदस्त जागरूकता आई है। इसमें कोई संदेह नही। अब समय आ चुका है की आरटीआई पर लंबे समय तक समाज में जागरूकता फैला रही संस्थाए, जागरूक- जिम्मेदार नागरिक ओर खासतौर से मीडिया सूचना देने के अधिकार में उल्लेखित धाराओं का भी खुलकर प्रचार करे ताकि कोई पीठासीन सूचना अधिकारी किसी दबाव में आकर जानकारी देने में कोई कोताही या मनमानी नही कर सके। आमतौर पर आरटीआई लगाने वाले व्यक्ति को इस एक्ट की विभिन्न धाराओं की जानकारी बहुत कम होती है। इसलिए वह इस एक्ट का पूरी तरह से अमल में नही ला पाता है। गजेंद्र यादव का मानना है की समय के साथ सरकारें बदलती रही है। इससे एक्ट के असरदार होने या नही होने से कोई फर्क नही पड़ता। यह तो पूरी तरह से राज्यों में नियुक्त सूचना अधिकारियों की अपनी जिम्मेदारी के प्रति सोच ओर विवेक से इस एक्ट की मूल भावना का स्वरूप तय होता है। सुप्रीम कोर्ट के अनेक फैसलों में इस एक्ट की गरिमा ओर पवित्रता मुस्कराती रही है। इतना ही नही कोर्ट ने यहा तक स्पष्ट किया है की वे भी गरिमापूर्वक दायरे के तहत सूचना देने के लिए इस एक्ट के दायरे में आते हैं। जहा तक आरटीआई का दुरुपयोग या इसकी आड़ में ब्लैक मेलिंग करने को लेकर उठती रही आवाज का सवाल हे। उसका इलाज सूचना अधिकारी की तरफ से दिए जाने वाले निर्णय के समय अपने विवेक पर निर्भर करता है। किसी भी व्यक्ति को यह कहकर सूचना देने से वंचित नही किया जा सकता की वह इसका दुरुपयोग कर सकता है या लगातार आरटीआई लगाकर परेशान कर रहा है। कई बार सूचना मांगने वाले को जान से मारने की धमकी भी मिलती रही है। इसके लिए भी आरटीआई की अलग अलग धाराओं में यह सुनिश्चित किया गया है की ऐसी स्थिति में क्या कदम उठाने चाहिए। गजेंद्र यादव का मानना है की इस एक्ट को शिक्षण संस्थानों में एक विषय के तोर पर भी शामिल करना चाहिए। यह भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली की संपूर्ण व्यवस्था को पूरी तरह से जवाबदेह ओर पारदर्शिता बनाए रखने में सबसे मजबूत आधार है।