कर्नाटक में प्राइवेट नौकरियों में स्थानीय लोगों को 100 फीसदी आरक्षण की बात राज्य के सीएम सिद्धारमैया ने मंगलवार शाम को कही थी। उन्होंने इस को बिल पास करने की जानकारी दी थी। यह आरक्षण ग्रुप सी और डी की नौकरियों में दिया जाना था और यहां तक प्रस्ताव था कि इस पर अमल के लिए हर कंपनी पर निगरानी करने की व्यवस्था होगी और एक सरकारी अफसर तैनात होगा। इस पर विवाद शुरू हुआ तो बुधवार को दोपहर तक ही चीजें बदल गईं और सरकार की सफाई आई कि यह आरक्षण ग्रुप सी में 50 फीसदी और ग्रुप डी में 70 पर्सेंट होगा।
फिर बुधवार को ही रात तक कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने ऐलान कर दिया कि फिलहाल बिल को रोक रहे हैं। इस पर और विचार करने के बाद ही फैसला होगा। इस तरह 24 घंटे के अंदर ही स्थानीय लोगों को आरक्षण देने वाले बिल से कर्नाटक सरकार पीछे हट गई। सीएमओ ने बयान जारी कर कहा, ‘कर्नाटक के लोगों को नौकरियों में आरक्षण का बिल मंगलवार को पारित हुआ था। इसे अस्थायी तौर पर रोक लिया गया है।’ बिल में कहा गया था कि इस तरह पीछे हटने की वजह आईटी इंडस्ट्री की ओर से दी गई चेतावनी भी है।
हरियाणा में भी आया था ऐसा प्रस्ताव, कोर्ट ने लगाई थी रोक
बता दें कि हरियाणा में भी इस तरह का प्रस्ताव आया था, लेकिन उस पर हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी। अदालत ने संविधान का हवाला देते हुए कहा था कि देश भर में रोजगार की समानता के सिद्धांत के यह खिलाफ है। इसके अलावा संघीय ढांचे के भी यह विपरीत है। गौरतलब है कि महाराष्ट्र, कर्नाटक समेत कई राज्यों में ऐसी मांग उठती रही हैं। लेकिन इनका मुखर विरोध भी हुआ है और अंत में ऐसे फैसलों पर रोक लगानी पड़ी।