पाकिस्तान ने अफ़ग़ान तालिबान को अपने लिए ‘बड़ा ख़तरा’ बताया

रणघोष खास. मुनज़्ज़ा अनवार, साभार 

वैसे तो पिछले कुछ वर्षों में पाकिस्तान के सीमावर्ती क्षेत्रों, ख़ासकर ख़ैबर पख़्तूनख़्वा और बलूचिस्तान में, चरमपंथी घटनाएं बहुत बढ़ गई हैं लेकिन इस हफ़्ते राजधानी इस्लामाबाद में हुए एक आत्मघाती हमले ने देश की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं.इस हमले में बारह लोगों की मौत हो गई और 27 दूसरे लोग भी घायल हो गए थे.इस्लामाबाद हमले से एक दिन पहले वाना कैडेट कॉलेज पर भी हमला हुआ था, जिसके बाद इमारत के अंदर छिपे चार चरमपंथियों के ख़िलाफ़ सुरक्षा बलों का ऑपरेशन कई घंटे तक जारी रहा था.11 नवंबर को एक तीसरा हमला भी हुआ जब ख़ैबर पख़्तूनख़्वा के ज़िला डेरा इस्माइल ख़ान के इलाक़े में सुरक्षा अधिकारियों पर हुए एक आईईडी हमले में कई सैन्य अधिकारी घायल हो गए.14 नवंबर के दिन पाकिस्तान सरकार ने दावा किया कि उन्होंने इस्लामाबाद आत्मघाती हमले में शामिल तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के चार सदस्यों को गिरफ़्तार किया है.सरकार का कहना है कि आत्मघाती हमला करने वाले के ‘हैंडलर’ ने पूछताछ के दौरान यह माना कि टीटीपी के अफ़ग़ानिस्तान स्थित कमांडरों ने ‘टेलीग्राम’ के ज़रिए संपर्क कर इस्लामाबाद में आत्मघाती हमला करवाने को कहा था.पाकिस्तान सरकार ने यह आरोप भी लगाया कि अफ़ग़ानिस्तान में मौजूद टीटीपी का शीर्ष नेतृत्व हर क़दम पर इस्लामाबाद हमले में शामिल नेटवर्क को गाइड कर रहा था.याद रहे कि ग़ैर क़ानूनी घोषित टीटीपी ने अब तक इस हमले की ज़िम्मेदारी क़बूल नहीं की है.

‘अफ़ग़ानिस्तान की तरफ़ से होने वाले हमलों की शुरुआत’

इस हफ़्ते के दौरान होने वाले इन बड़े हमलों के तुरंत बाद पाकिस्तान की सरकार में शामिल शीर्ष लोगों की तरफ़ से सख़्त बयान सामने आए और पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ने इस आशंका से इनकार नहीं किया कि भविष्य में पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान के अंदर कार्रवाई कर सकता है.प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने भी इस्लामाबाद हमले की निंदा करते हुए आरोप लगाया था कि ‘भारत के संरक्षण में सक्रिय’ चरमपंथी समूह इस हमले में शामिल हैं.लेकिन भारत ने कहा था कि वह पाकिस्तानी नेतृत्व की तरफ़ से लगाए गए ‘बेबुनियाद आरोपों’ का खंडन करता है.इन हमलों के बाद पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख़्वाजा आसिफ़ ने कड़ा रुख़ अपनाते हुए कहा था, “हम जंग की हालत में हैं.” उन्होंने कहा, ” इन्हें अफ़ग़ानिस्तान की तरफ़ से भविष्य में होने वाले हमले की शुरुआत समझा जा सकता है जो दरअसल ‘भारत का (हमला) होगा जो अफ़ग़ानिस्तान के रास्ते किया जा रहा है.’दूसरी तरफ़ अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान सरकार ने इस्लामाबाद और वाना में हुए चरमपंथी हमलों की निंदा करते हुए ‘बहुमूल्य जीवन के नष्ट होने पर दुख व्यक्त’ किया है.इस्लामाबाद आत्मघाती हमले के बाद रक्षा मंत्री ख़्वाजा आसिफ़ का कहना था कि इस्लामाबाद हमला एक संदेश है कि वह राजधानी तक पहुंच सकते हैं और ‘अफ़ग़ान तालिबान को वार्ता के लिए ईमानदार समझना ख़ुद को बेवक़ूफ़ बनाने जैसा है.’बुधवार की रात गृह मंत्रालय के जूनियर मंत्री तलाल चौधरी ने ‘जिओ टीवी’ से बात करते हुए दावा किया कि बातचीत की नाकामी पर अफ़ग़ान तालिबान ने धमकी दी थी कि अगर उन पर हमला हुआ तो वह ‘लॉन्ग रेंज टैक्टिक्स’ इस्तेमाल करते हुए लाहौर और इस्लामाबाद को निशाना बनाएंगे.

तलाल चौधरी ने दावा किया कि पाकिस्तान के पास ऐसे सबूत हैं जिनकी बुनियाद पर भारत और अफ़ग़ानिस्तान का नाम लिया गया है.उन्होंने कहा, “मध्यस्थ कोशिश कर लें मगर पाकिस्तान अपने लोगों को सुरक्षित रखने के लिए हर तरह की कार्रवाई करने का अधिकार रखता है और जो वक़्त के हिसाब से सही होगा, वह किया जाएगा.”इस पेचीदा स्थिति पर विश्लेषकों की राय अलग-अलग नज़र आती है.कुछ विश्लेषक काबुल में तालिबान सरकार को इस हमले का ज़िम्मेदार बताते हैं लेकिन दूसरों का मानना है कि हमलों में इज़ाफ़ा पाकिस्तान की आंतरिक सुरक्षा की नाकामी का नतीजा है.

‘हमारे पास ऐसी चीज जो पाकिस्तान के लिए बहुत ख़तरनाक साबित हो सकती है’

रक्षा मामलों के विश्लेषक एजाज़ हैदर पाकिस्तानी रक्षा मंत्री के इस बयान से सहमत हैं कि पाकिस्तान ‘हालत-ए-जंग’ में है.एजाज़ हैदर तालिबान नेता अब्दुस्सलाम ज़ईफ़ के हाल के एक वीडियो बयान का हवाला देते हैं जिसमें उन्होंने कहा था, “हमारे पास आधुनिक हथियार नहीं… मगर हमारे पास ऐसी चीज़ है जो पाकिस्तान के लिए बहुत ख़तरनाक साबित हो सकती है यानी पाकिस्तान में मौजूद लोगों तक हमारी वैचारिक पहुंच.”हैदर के अनुसार रक्षा मंत्री के बयान में सच्चाई है कि अफ़ग़ान तालिबान “यह संदेश दे रहे हैं कि हम इस्लामाबाद को निशाना बना सकते हैं.”डॉक्टर अमीना ख़ान ‘सेंटर फ़ॉर अफ़ग़ानिस्तान, मिडिल ईस्ट एंड अफ़्रीका’ (सीएएमईए) की डायरेक्टर हैं और इंस्टीट्यूट ऑफ़ स्ट्रैटेजिक स्टडीज़, इस्लामाबाद से भी जुड़ी हुई हैं.वह कहती हैं कि पाकिस्तान में हाल के वर्षों में चरमपंथी घटनाएं बढ़ी हैं लेकिन पाकिस्तान ने इस उम्मीद पर सब्र से काम लिया कि अफ़ग़ान तालिबान दोहा समझौते के अनुसार अपनी धरती ‘आतंकवादी गतिविधियों’ के लिए इस्तेमाल नहीं होने देंगे.डॉक्टर अमीना कहती हैं, “लेकिन अफ़ग़ान तालिबान ने टीटीपी को अफ़ग़ानिस्तान में सुरक्षित जगह और सुविधाएं दीं और वह उन पर पकड़ भी रखते हैं.”वह कहती हैं कि पहले कार्रवाइयां सीमा और सीमावर्ती ज़िलों तक सीमित थीं लेकिन अब इस्लामाबाद पर हमला इस बात का साफ़ संकेत है कि काबुल की सरकार किसी तरह की ज़िम्मेदारी लेने के लिए तैयार नहीं है.इस क्षेत्र की सुरक्षा पर नज़र रखने वाले अफ़ग़ान विश्लेषक मुश्ताक़ रहीम पाकिस्तान सरकार की तरफ़ से इस्लामाबाद हमले को तालिबान से जोड़ने को एक ‘डायवर्सन’ समझते हैं.उनका दावा है कि पिछले 15-20 वर्षों में अरबों डॉलर की मदद के बावजूद पाकिस्तान के सुरक्षा बल अपनी ज़िम्मेदारी निभाने में नाकाम नज़र आ रहे हैं.मुश्ताक़ रहीम सवाल उठाते हैं कि अफ़ग़ान तालिबान, जो ख़ुद ‘अस्तित्व की लड़ाई’ लड़ रहे हैं, वह किसी दूसरे देश के लिए सिक्योरिटी की गारंटी कैसे दे सकते हैं?

‘इंटिलेजेंस के दम पर ही रोक सकते हैं ऐसे हमले’

एजाज़ हैदर का मानना है कि इस तरह की जंग को पूरी तरह रोकना ‘लगभग नामुमकिन’ है, क्योंकि यह पारंपरिक युद्ध नहीं है, जहां दुश्मन सामने हो.उनका कहना है कि “ऐसे युद्ध में कोई साफ़ मोर्चा नहीं होता और दुश्मन छिप कर वार करता है.”उनके अनुसार इसे रोकने का एक ही उपाय है और वह है इंटेलिजेंस.वो कहते हैं, “अगर दुश्मन ने छिपकर वार करने की नीति बनाई है तो उससे निपटने का तरीक़ा यही है कि आप उसकी पंक्तियों में घुसें, दुश्मन की पहचान करें और अंदर की जानकारी हासिल करें और उसका काम तमाम करें.”वह कहते हैं, “जब इंटेलिजेंस ऑपरेशन कामयाब होते हैं तो ख़बर नहीं बनती. ख़बर तब बनती है जब कोई घटना हो, जैसे इस्लामाबाद में आत्मघाती हमला.”

इससे अलग मुश्ताक़ रहीम का दावा है कि पाकिस्तान में राजनीतिक उथल-पुथल है और सुरक्षा व्यवस्था कमज़ोर है.वह कहते हैं, “ऐसे ही हालात चरमपंथियों के लिए बेहतरीन मैदान बन जाते हैं.”

मुश्ताक़ रहीम कहते हैं कि इस समय पूरा क्षेत्र असुरक्षित है और “शांति केवल आपसी सहयोग से आएगी, आरोप लगाने से नहीं.”उनके अनुसार टीटीपी जैसे सशस्त्र समूह किसी भी देश को चुनौती दे सकते हैं और इसका मुक़ाबला केवल सुरक्षा उपाय बेहतर करके और एक दूसरे की बात समझने से ही संभव है.डॉक्टर अमीना इससे अलग सोच रखती हैं. वह कहती हैं, “यह पाकिस्तान की समस्या है लेकिन हमें अपने पड़ोसियों और उन देशों की मदद चाहिए जो टीटीपी को सुविधाएं दे रहे हैं.”

वह कहती हैं, “तालिबान ज़िम्मेदार हैं क्योंकि उन्होंने ही टीटीपी से वार्ता में मध्यस्थता की और टीटीपी के सदस्यों को पाकिस्तान भेजने की पेशकश की जो साबित करता है कि न केवल टीटीपी अफ़ग़ानिस्तान में है बल्कि तालिबान का उन पर प्रभाव भी है.”अमीना ख़ान संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद की रिपोर्ट का हवाला देती हैं जिसके अनुसार बीस से अधिक ‘चरमपंथी समूह’ तालिबान की सरकार में अफ़ग़ानिस्तान में सक्रिय हैं.उनका कहना है कि अफ़ग़ान तालिबान को फ़ैसला करना होगा कि वह पाकिस्तान के साथ मज़बूत संबंध चाहते हैं या टीटीपी के साथ संबंध को प्राथमिकता देते हैं.