राव साहब बस अब यह मत कहना मेरी सीएम नायब सैनी से नही बनती..-
– 1992 से यह सिलसिता चलता आ रहा है। यहां की जनता वोट देकर जीता तो सकती है। सीएम से नही बनती इस मसले पर वह चाहकर भी कुछ नही कर सकती। इसलिए सीएम के चेहरे पर नही उसकी ताकत को इलाके में लगाइए। बस अब बहुत हो चुका..
रणघोष खास. प्रदीप हरीश नारायण
दक्षिण हरियाणा ने एक बार फिर विधानसभा चुनाव में भाजपा को हर लिहाज से मजबूत कर दिया। इसलिए नई सरकार में इस इलाके की सम्मानजनक भागेदारी को लेकर चौतरफा आवाज उठ रही है। केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने सबसे पहले रजल्ट आते ही अपने हिस्से का हक पक्का करने के लिए उस आवाज को जिंदा कर दिया जो चुनाव में पैदा होती थी ओर कुछ दिन बाद खुद ही दम तोड़ देती थी।
पहले इस आवाज के सुर दक्षिण हरियाणा से सीएम बनाने को लेकर उठे..। जो तर्कसंगत इसलिए नही थे की चुनाव से पहले ही नायब सैनी के नाम का ऐलान हो चुका था जिस पर राव इंद्रजीत खुद ही अपनी सहमति की मोहर लगा चुके थे। इसके बावजूद जब सोशल मीडिया अपनी हरकतों से बाज नही आया तो राव को मजबूरन रविवार को स्पष्ट करना पड़ा की उनके खिलाफ बागी होने का जो जाल फैलाया जा रहा है वह झूठ का बवंडर के अलावा कुछ नही है। इसमें कोई दो राय नही की राव अपने पूरे चुनाव प्रचार में एक रणनीति के तहत अलग अलग विधानसभा में अपने भाषण की स्क्रिप्ट को मौजूदा स्थिति के हिसाब से बदलते चले गए। कोसली में आए तो युवाओं को राजनीति में आने पर जोर दिया। यहा अनिल यादव नया और युवा चेहरा थे। जबकि नारनौल, रेवाड़ी और बावल में उनके समर्थक उम्मीदवार युवा की दहलीज को बहुत पहले ही पार कर चुके थे। कोसली में राव ने 2009 के परिसीमन को याद कराया ताकि यहा के लोग उस समय सीएम रहे भूपेंद्र हुडडा को इलाके का अनाप शनाप बिखराव का जिम्मेदार मानते हुए उनके खिलाफ खड़े हो जाए। राव बखूबी समझते थे की यादव वोट बैंक हरियाणा में जाट को सीएम देखना पंसद नही करता है। इसलिए कोसली में परिसीमन का चलाया उनका तीर सही निशाने पर लग गया। बावल में आए तो वोटों का बंटवारा पहले ही हो चुका था। जाट ओर एससी समाज मानसिक तौर पर पहले ही भाजपा की गिरफ्त से बाहर नजर आ रहा था। इसलिए उन्होंने उन पर ज्यादा मेहनत करने की बजाय अपने कंट्रोल वाले वोट बैंक को ही काबू में रखा। रेवाड़ी सीट का मिजाज कोसली- बावल से अलग था। यहा से भाजपा उम्मीदवार लक्ष्मण यादव पहले ही राजनीति के माहिर खिलाड़ी थे। उन्हें बस राव की नैतिक ताकत चाहिए थी जो उन्हें लगातार मिलती रही। इसी तरह नारनौल, पटौदी, सोहना, महेंद्रगढ़, नांगल चौधरी, गुरुग्राम, बादशाहपुर समेत तीन जिलों की 11 सीटों की अपनी हार जीत की अलग अलग कहानी थी। जिसमें राव इंद्रजीत एक किरदार के तौर पर कहीं ज्यादा तो कहीं कम तो कुछ सीटों पर खुद को अलग रखकर अपनी भूमिका निभाते नजर आए। 8 अक्टूबर को जब परिणाम आया तो इन सीटों पर कांग्रेस उसी तरह साफ हो गई जिस तरह सुनामी सबकुछ ध्वस्त कर देती है। राव के लिए अपनी ताकत का प्रदर्शन करने के लिए यह बेहतरीन अवसर था। जाहिर है राजनीति में आमतौर पर सभी करते हैं। कागजों में वे इसलिए मजबूत थे इस चुनाव में नारनौल, अटेली, कोसली, बावल, रेवाड़ी, पटौदी, सोहना सीट सीधे तौर पर उनके हवाले कर दी गई थी। जिस पर उनके सभी समर्थक उम्मीदवार जीत दर्ज कर चुके थे। नांगल चौधरी से उनके धुर विरोधी अभय सिंह यादव के हार जाने के बाद उनकी राह काफी आसान हो गई। गुरुग्राम, महेंद्रगढ़ सीट पर वे विधायक की सहमति से अपना दावा मजबूत करने में भी पीछे नजर नही आ रहे है। केवल बादशाहपुर विधानसभा उनकी गिरफ्त से बाहर है। इस हिसाब से राव की आवाज में ताकत आना लाजिमी था। उन्हें पता था की राजनीति में कुछ पाने के लिए चिल्लाना भी जरूरी है ताकि हाईकमान के कानों में उनके विरोधियों की तरफ से डाली गई रूई बाहर आ जाए।
17 अक्टूबर को शपथ ग्रहण समारोह में यह तस्वीर साफ हो जाएगी राव इंद्रजीत सिंह की आवाज ने चंडीगढ़ ओर दिल्ली में कितना असर डाला। इतना भी तय है की सबकुछ राव इंद्रजीत सिंह के मुताबिक नही होगा। यह इसलिए की भाजपा ने पूरे प्रदेश में शानदार जीत हासिल की है। जिसमें भाजपा संगठन, आरएसएस की जबरदस्त सक्रियता और दिल्ली से बनाई गई रणनीति पूरी तरह से सफल रही। इस बार कुछ जाट बाहुल्य सीटों का भी गणित इस पार्टी ने इस बार पूरी तरह से बिगाड़ कर रख दिया है। हाईकमान यह बखूबी समझता है की अटेली में आरती राव की संघर्षमय जीत राव इंद्रजीत सिंह की प्रतिष्ठा को बचाने में तो सफल हो गई लेकिन उन्हें अनगिनत सवालों में भी घेर गईं। आरती राव दक्षिण हरियाणा की सभी 11 सीटों पर महेंद्रगढ़ को छोड़कर सबसे कम 3085 वोटों से जीत दर्ज कर पाई है जो राव को अंदर से बैचेन करती रहेगी। इसमें कोई दो राय नही की इस सीट पर कांग्रेस- बसपा से ज्यादा भाजपा में राव के विरोधियों ने उन्हें इस सीट पर निपटाने में कोई कसर नही छोड़ी थी जिसमें कई तरह के किरदार थे। कुल मिलाकर इस नई सरकार में राव अपना कितना असर डाल पाते हैं यह तो 17 अक्टूबर को साफ हो जाएगा। इतना जरूर है की राव इंद्रजीत सिंह को अब भविष्य में यह कहने से परहेज करना चाहिए की उनकी सीएम नायब सैनी से नही बनती। वजह इससे पहले साढ़े 9 साल सीएम रहे मनोहरलाल, थोड़ा पीछे जाए 10 साल मुख्यमंत्री रहे भूपेंद्र हुडडा ओर पीछे जाए तो ओमप्रकाश चौटाला, बंसीलाल ओर भजनलाल सरकार में भी उनकी राजनीति कुंडली इसी वजह से सरकार से मेल नही खाती रही है। जिसका खामियाजा यह इलाका लगातार भुगतता आ रहा है। यहां की जनता वोट देकर जीता तो सकती है। सीएम से नही बनती इस मसले पर वह चाहकर भी कुछ नही कर सकती। इसलिए सीएम के चेहरे पर नही उसकी ताकत को इलाके में लगाइए। बस अब बहुत हो चुका..