रणघोष खास में पढ़िए : उम्र के साथ बदलती बदन की गंध क्या बताती है?

रणघोष खास. नवेलिया वैले की रिपोर्ट, साभार बीबीसी 

आज आपके लिए एक छोटा-सा चैलेंज है. क्या आप अपने पास बैठे हुए किसी शख़्स की उम्र का पता केवल अपनी सूंघने की क्षमता का इस्तेमाल करते हुए लगा सकते हैं?उस शख़्स ने कोई परफ़्यूम नहीं लगा रखा होगा, मगर उसके अपने बदन की ख़ास गंध होगी, जिससे आपको उसकी उम्र के बारे में बताना होगा.यह चैलेंज मुझे टिक टॉक पर नहीं मिला, लेकिन मुझे एक ऐसा शोध ज़रूर मिला है, जिससे यह साबित होता है कि हम किसी व्यक्ति की अपनी प्राकृतिक गंध की वजह से उसकी उम्र का पता कैसे कर सकते हैं.हमारे शरीर से आने वाली महक हमेशा एक जैसी नहीं होती, बल्कि यह हमारी पूरी ज़िंदगी के अलग-अलग दौर में बदलती रहती है और इसमें जो बदलाव आता है वह न केवल हमारे प्राकृतिक जीवन के बारे में बताता है बल्कि सामाजिक और विकासात्मक झुकाव को भी बयान करता है.

माता-पिता के प्यार को मज़बूत करने वाली बच्चे की महक

शरीर की गंध से बच्चों को पहचानने की क्षमता मां-बाप में उस समय कम हो जाती है, जब उनकी संतान का बचपन ख़त्म हो जाता है.बचपन में हमारे बदन की गंध आम तौर पर पसीने की ग्रंथि के कम सक्रिय होने और चमड़े की माइक्रोबायोम की वजह से हल्की होती है.इसके बावजूद, माता-पिता उस ख़ुशबू को अच्छी तरह पहचानते हैं, जो दूसरे बच्चों की तुलना में उनके अपने बच्चों में से आती है.

यह महक माता-पिता में सुखद और जानी-पहचाना भावनात्मक लगाव पैदा करती है और बच्चे के साथ ख़ुशी और प्यार की भावनाओं को सक्रिय करके माता-पिता में मौजूद तनाव को कम करने में भी मदद देती है.लेकिन, पोस्टपार्टम (प्रसव बाद) डिप्रेशन में जाने वाली माएं बच्चों के अंदर से आने वाले प्रभावी महक के असर से वंचित रह जाती हैं.पूरी तरह व्यावहारिक विकासात्मक दृष्टिकोण से देखा जाए तो बच्चों से आने वाली ख़ास महक इतनी प्रभावी होती है कि माता-पिता को अपनी आने वाली नस्ल पर पैसे ख़र्च करने को भी प्रेरित करती है.

जवान होने पर इंसानी महक

हर इंसान में उसके शरीर की ख़ास दुर्गंध बनी रहती है. हालांकि, इसमें समय-समय पर बदलाव आता है.जवानी की शुरुआत में इंसान के जिस्म की महक में महत्वपूर्ण बदलाव आते हैं.यह बदलाव सेक्स हार्मोन के बनने की वजह से होते हैं और जो पसीना लाने वाले एक्राइन ग्लैंड और चमड़ी की महत्वपूर्ण ग्रंथि सेबेसियस को सक्रिय करते हैं.पसीना लाने वाली अधिकतर ग्रंथियां पानी और नमक निकालती हैं, जबकि एपोक्राइन ग्लैंड (बगल और नाभि से नीचे के बालों से संबंधित) प्रोटीन और दूसरे वसा पर आधारित भाप बाहर निकालते हैं.उनमें से हर एक ग्रंथि हर इंसान के अंदर से एक महक पैदा करती है.हमारे बदन के अंदर मौजूद लिपिड और सीबम जैसे पदार्थ इन्हीं ग्रंथियां से बाहर आते हैं.

लेकिन, बैक्टीरिया से मिलकर हमारी महक एक दुर्गंध में बदल जाती है. और इस तरह कुछ युवकों का पसीना उनके जिस्म की अपनी महक के साथ मिलकर बदबू बना देता है.शरीर की गंध से बच्चों को पहचानने की क्षमता मां और बाप दोनों में उस समय कम हो जाती है, जब उनकी संतान का बचपन ख़त्म हो जाता है और बच्चे पूरी तरह जवानी में प्रवेश कर जाते हैं.

पहचान में मददगार

सेबेसियस ग्लैंड्स से स्राव युवावस्था में चरम पर पहुंच जाता है.हालांकि, युवावस्था की तुलना में अधेड़ होने तक उनकी तेज़ी में कमी आती है लेकिन, हर इंसान में उसके शरीर की ख़ास दुर्गंध बनी रहती है.

यह कई चीज़ों पर निर्भर करती है जैसे भोजन, तनाव, हार्मोन या चमड़ी के माइक्रोबायोम.

लेकिन, जीवन भर बदलती गंध का क्या फ़ायदा अगर हम उसे महसूस करने की क्षमता न रखते हों.

सच बात यह है कि इंसान की महक उसके बारे में जानकारी हासिल करने में बहुत कारगर है, ख़ासकर उस समय जब अंधेरे या शोर वाले माहौल में या किसी और वजह से साफ़ तौर पर देखना या सुनना मुश्किल हो.दूसरे जीवों की तरह शरीर की दुर्गंध साथी के चुनाव, रिश्तेदारी की पहचान या लैंगिक अंतर पता करने में मदद करती है.

बढ़ती उम्र में शरीर की गंध का क्या होता है?

उम्र बढ़ने के साथ हमारी चमड़ी में लचीलेपन और कोलैजन की कमी पसीने और सेबेसियस ग्लैंड की सक्रियता को कम करती जाती है.उनकी कमी से बुज़ुर्ग लोगों के लिए शरीर का तापमान बरक़रार रखना मुश्किल हो जाता है.जहां तक सेबेसियस ग्लैंड का संबंध है, उम्र बढ़ने के साथ न केवल इससे स्राव कम हो जाता है बल्कि इसकी बनावट में भी बदलाव आता है जिससे एंटीऑक्सीडेंट कंपाउंड जैसे विटामिन ई या स्कोलिन की मात्रा कम होती है.चमड़ी की कोशिकाओं से एंटीऑक्सीडेंट के उत्पादन में कमी की वजह से ऑक्सीडेशन की क्रिया बढ़ जाती है. इससे बूढ़े लोगों में वह गंध पैदा होती है, जिसे जापानी केरिशो कहते हैं.इस तरह 40 साल की उम्र के बाद चमड़े में कुछ फ़ैटी एसिड जैसे ओमेगा 7 और पलमाइटोलिक एसिड के काम की प्रक्रिया बदल जाती है, जो शरीर की गंध को बदल देती है.अगर कुछ लोगों के लिए यह गंध नागवार है तो दूसरी तरफ़ हम में से अक्सर लोग इसे दादा-दादी और माता-पिता की अच्छी यादों से जोड़ते हैं. बचपन की तरह बुज़ुर्गों की देखभाल में भी इससे मदद मिलती है.