पढ़िए ऐसी शख्सियत की कहानी जिसका जीवन संघर्ष में नहाता रहा..

बचपन में समझदार, युवा अवस्था में जिम्मेदार अब 58 साल में गौरव बन गए तिलकराज


रणघोष अपडेट.चंडीगढ़

जिंदगी एक कहानी के अलावा कुछ नही है। बस जिंदगी की यात्रा में खुद के किरदार को तराशना है जो आगे चलकर एक दूसरे की प्रेरणा बन जाए। हरियाणा सिविल सचिवालय में 28  फरवरी को रिटायर हुए 58 साल के तिलकराज की जीवन की यात्रा से सभी को मुलाकात करनी चाहिए। इस यात्रा के मार्गदर्शक उनके पिता 85 साल के हरफूल सिंह आज भी इस शख्सियत की सेवानिवृति के अवसर पर मौजूद रहकर यह बताने के लिए काफी थे की उनके बेटे ने उनकी पारिवारिक विरासत को मूल्य एवं संस्कारों के साथ आने वाली पीढ़ी को सौंपकर भारतीय सनातन परंपरा का गौरव बढ़ाया है।

हरियाणा के करनाल जिले के गांव हसनपुर, धरौंडा निवासी हरफूल सिंह जब आठवीं में पढ़ते थे उस समय उनके सिर से माता पिता का साया उठ गया था। उनकी चाची अंतो देवी ने उनका लालन पोषण किया। जब तिलकराज का जन्म हुआ तो छह दिन बाद उनकी माता फूली देवी छोड़कर चली गईं। उनकी दादी अंतोदेवी ने उसे पाला पोसा। बाल अवस्था में पिता पुत्र के लालन पालन की जिम्मेदारी निभाने वाली अंतोदेवी आज भी इस परिवार की सबसे बड़ी विरासत ओर प्रेरणा स्त्रोत है। उनकी अपनी कोई संतान नही थी लेकिन वह पूरे परिवार में सभी के लिए मां का विराट स्वरूप थी। जिनका 2015 में निधन हो गया। तिलकराज आज भी अपने जीवन यात्रा को सांझा करते हुए बताते हैं की जब वे 20 साल की उम्र में पहुंचे तो भारतीय सेना में उनका चयन हो गया। लगभग 30 साल तक देश की सेवा करने के बाद मार्च 2008 में उन्हें हरियाणा सिविल सचिवालय में सर्विस मिल गईं। पत्नी कमलेश देवी हमेशा अदृश्य ताकत के रूप में उनकी साथ रही। बड़ी बेटी ज्योति बीएससी करने के बाद पति के साथ न्यूजीलैंड में रह रही है। छोटी बेटी प्रीति सिरसवाल एमएससी की पढ़ाई के बाद करनाल एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीटूयट में कार्यरत है। बेटा विक्रांत एमबीए करने के बाद मोहाली में सर्विस कर रहे हैं। तिलकराज बताते हैं की बचपन से ही पिताजी को संघर्ष करते हुए देखा है। उनकी चाची ने पहले उन्हें पाला उसके बाद दादी के स्वरूप में हमारा लालन पोषण किया। वह परिवार में  ममत्व का विराट वृक्ष थी जिसकी वजह से हम विपरित हालातों से लड़ते हुए एक बेहतरीन मुकाम की तरफ बढ़ रहे हैं।