रेवाड़ी सीट पर कांग्रेस की हार पर सीधी सपाट बात

गुरुग्राम रहकर कप्तान रेवाड़ी के असली मिजाज को भूल गए, पुराने तेवरों में रहे


रणघोष खास. रेवाड़ी से

  हरियाणा विधानसभा चुनाव में रेवाड़ी सीट पर कांग्रेस का मतलब कप्तान परिवार रहा है। पिछले 50 सालों से इस परिवार ने यहा की राजनीति को अपने हिसाब से चलाया है। इस बार के चुनाव ने सबकुछ पलट कर रख दिया। भाजपा से पहली बार इस  सीट पर उतरे लक्ष्मण यादव ने शानदार 29 हजार से ज्यादा वोटों से कांग्रेस उम्मीदवार पूर्व मंत्री कप्तान अजय सिंह यादव के बेटे चिरंजीव राव को हरा दिया।  पूरे चुनाव की बारीकी पर नजर डाले तो कप्तान परिवार शुरूआत से ही अपनी जीत को लेकर पूरी तरह से नशे में नजर आ रहा था। टिकट मिलने से पहले नामाकंन भरने की घोषणा करना, बिना हाईकमान की परवाह किए बिना खुद के लिए कांग्रेस सरकार में डिप्टी सीएम का पद घोषित कर देना विशेष तौर से शामिल है। इस बार उनका मॉडल टाउन निवास स्थान अलग ही तौर तरीकों से खुद को पेश कर रहा था। यहा बता दे की पिछले कुछ सालों से कप्तान अजय सिंह यादव अपने परिवार के साथ गुरुग्राम में रहते हैं। रेवाड़ी उनका आना जाना लगा रहता है। जब वे स्थाई तोर पर यहा रहते थे उस समय माहौल ओर चहल कदमी अलग तरह की थी। यह भी हकीकत है की कप्तान के पास अब पुरानी समर्पित कार्यकर्ताओं की टीम नही रही जो उनकी अनुपस्थिति में किसी कमी महसूस नही होने देनी थी। उनके पास बाजारू कार्यकर्ताओं की टीम ज्यादा है जिसने दरबारी ओर चाटुकारिता का जाल बिछाकर कप्तान को जीत के भ्रमजाल से बाहर नही आने दिया।  इस चुनाव में कप्तान के तेवरों ने भी चुनाव में अच्छी खासी चर्चा बटोरी। कुछ विडियो भी जारी हुए जिसमें वे ग्रामीणों से गाली गलौच करते हुए नजर आ रहे हैं। इतना ही नही कुछ पार्षदों की  वाटसअप पर चुनाव में लेन देन को लेकर वायरल हुई चेंटिंग ने भी  कप्तान को अच्छी खासी परेशानी में रखा। भाजपा उम्मीदवार लक्ष्मण यादव एवं आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार सतीश यादव लगातार कप्तान पर अप्रत्यक्ष तोर  पर चुनाव में वोट खरीदने को लेकर लगातार हमले करते रहे हैं। जिसका काउंटर अटैक भी कप्तान की तरफ से जो होना चाहिए था वह नही हुआ। मीडिया पैकेज के नाम पर अपने हिसाब से चुनावी कवरेज के खेल में भी कप्तान सीनियर ओर जिम्मेदार नेता के तौर पर कम उत्तेजित, आक्रोशित और अहंकारी स्वभाव में खुद को ज्यादा प्रचारित कर गए। चुनाव में खड़े अधिकतर उम्मीदवार इस मानसिकता में भी रहे सभी बाजार के रास्ते से होकर आते हैं जिन्हें वे अपने हिसाब से बोली लगाकर खरीद सकते है। जैसा चुनावी पैकेज के नाम पर किया गया। ताकि सच सार्वजनिक होने की बजाय छिपकर रहे। इसलिए ऐसी बहुत सी घटनाए भी हुई जो मीडिया से गायब रही। कुल मिलाकर इस चुनाव में बहुत कुछ ऐसा हुआ जिसका अहसास अब कप्तान परिवार को मिली हार के बाद होना शुरू हो गया है।