एम्स अस्पताल में चार पैर वाले लड़के की सर्जरी सफल हुई?

रणघोष खास.अंशुल सिंह की रिपोर्ट 

मोहित कुमार से जब मेरी पहली मुलाक़ात हुई, तो वह अपने दोनों हाथ से शर्ट के आगे वाले हिस्से को खींचकर पकड़े हुए थे. पिछले 17 सालों से मोहित ऐसा कर रह थे और उन्हें इसकी आदत पड़ चुकी है.

लेकिन, अब उन्हें इसकी ज़रूरत नहीं है. दरअसल, इस आदत के पीछे की वजह है कुछ दिनों पहले तक मोहित के शरीर में चार पैर का होना.पिछले महीने फ़रवरी में उनका ऑपरेशन हुआ और उनके शरीर से दो अतिरिक्त पैर निकाले जा चुके हैं. यह दुर्लभ सर्जरी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) दिल्ली के डॉक्टरों ने की है.उत्तर प्रदेश के उन्नाव से आने वाले मोहित को अब भी यकीन नहीं हो रहा है कि उनके पेट से दो अतिरिक्त पैर हटाए जा चुके हैं.हंसते हुए मोहित बताते हैं, “मेरे चार पैर थे. मैं सोच रहा था कि ये नहीं हट पाएंगे, लेकिन डॉक्टरों ने इन्हें हटा दिया. जब मैं यहां (एम्स) आया था, तब बहुत डर लग रहा था.”

“लेकिन, अब बहुत अच्छा लग रहा है. ऐसा लग रहा है कि पेट के ऊपर से कोई भार हट गया है.”

मेडिकल साइंस की भाषा में इस तरह के मामले को पैरासिटिक ट्विन कहते हैं.मोहित के शरीर में दो अतिरिक्त विकसित पैर, नितंब और बाह्य जननांग छाती की धमनियों से जुड़े थे. इनका वज़न 15 किलोग्राम तक था.एम्स में सर्जरी विभाग के एडिनशनल प्रोफ़ेसर डॉ. असुरी कृष्णा के नेतृत्व में डॉक्टरों की टीम ने बीती आठ फ़रवरी को दो घंटे से ज़्यादा समय तक सर्जरी की थी.पैरासिटिक ट्विन के बारे में डॉ. असुरी कृष्णा बीबीसी को बताते हैं, “जब अंडाणु और शुक्राणु मिलते हैं तो एक युग्मज (ज़ाइगोट) बनता है. आम तौर पर यह ज़ाइगोट धीरे-धीरे विकसित होकर एक बच्चा बन जाता है.””कभी-कभी ऐसा होता कि यह शुरुआत में ही दो हिस्सों में बंट जाता है. इससे हम जुड़वा बच्चे मिलते हैं.”उन्होंने बताया, “कभी ऐसी स्थिति होती है कि ये पूरी तरह से नहीं हट पाते हैं. वो सेल एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं, लेकिन एक पूरे इंसान में बदल जाते हैं. इस स्थिति में ‘जुड़े हुए जुड़वा’ बच्चे बनते हैं.””मोहित के मामले में दोनों बच्चे अलग नहीं हुए, लेकिन एक ट्विन पूरी तरह से विकसित नहीं हुआ. इससे एक तो पूरी तरह इंसान बन गया और दूसरा उसके साथ पैरासिटिक या परजीवी की तरह जुड़ा रहा.””यह परजीवी पूरी तरह से विकसित इंसान से ख़ून और न्यूट्रिशन की पूर्ति करता है.”यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि पैरासिटिक अंग दर्द, स्पर्श और वातावरण में बदलाव महसूस करते हैं.

डॉ. कृष्णा ने बीबीसी का कहना है कि दुनिया भर में पैरासिटिक ट्विन बच्चों के केवल 40-50 मामले ही दर्ज़ हैं और उन मामलों में भी बच्चों पर सर्जरी का प्रयास किया गया था.सर्जरी करने वाली डॉक्टरों की टीम का कहना है कि पेट के अंदर से निकले दो पैर की वजह से बच्चे की ग्रोथ पर असर पड़ रहा था.इन अतिरिक्त पैरों की वजह से शरीर के दूसरे अंगों को नुक़सान हो सकता था, इसलिए सर्जरी ज़रूरी थी.सीटी स्कैन के ज़रिए पता चला कि पैरासिटिक ट्विन मरीज की छाती की हड्डी से चिपका हुआ था और छाती की एक नाड़ी से उसे खून मिल रहा था.डॉ. कृष्णा के मुताबिक़, “ऑपरेशन के दौरान जैसे ही पैरासिटिक वाले हिस्से को हटाया गया तो उसका 30-40 प्रतिशत ख़ून एकदम शरीर से अलग हो गया था. इससे मरीज का ब्लड प्रेशर (बीपी) नीचे गिर गया.””हम इसके लिए तैयार थे और उसे तुरंत स्थिर कर दिया. इस दौरान इस बात का ध्यान रखना पड़ा कि मोहित के किसी भी अंग या ऊतक को नुक़सान न पहुंचे.”इसके बाद डॉक्टरों ने पेट के अंदर पड़े सिस्ट को बाहर निकाला. सिस्ट को बोलचाल की भाषा में गांठ भी कहा जाता है.

रेडियोलॉजिस्ट, एनेस्थेटिस्ट और प्लास्टिक सर्जन सहित डॉक्टरों की एक टीम ने इस ऑपरेशन को अंजाम दिया. मरीज को भर्ती होने के चार दिन बाद अस्पताल से छुट्टी दे दी गई.मोहित जब चार महीने के थे, तब उनके सिर से मां का साया उठ चुका था. पिता मुकेश कुमार कश्यप बचपन से लेकर आज तक उनकी देखभाल करते हैं.चार पैर के कारण मोहित को शारीरिक समस्याओं के साथ सामाजिक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा.पिता मुकेश कुमार कहते हैं, “जब स्कूल में पढ़ने के लिए भेजते थे, तो बच्चों के बीच लड़ाई-झगड़ा हो जाता था. उसके बाद इन्होंने कहा कि पापा सब परेशान करते हैं. सब चार पैर-चार पैर कहकर चिढ़ाते थे. हमने कहा कि फिर स्कूल रहने दो.”इसके बाद मोहित को आठवीं कक्षा आते-आते स्कूली पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी. अब मोहित पुराने दिनों को भुलाकर नई शुरुआत के बारे में सोच रहे हैं.

वह कहते हैं, “मुझे इतनी ख़ुशी मिल रही है कि जैसे कोई भार हट गया हो. अब मैं भी दूसरे बच्चों की तरह दिखने लगा हूं.”