दिल्ली में रह रहे छात्रों का दर्द सैलाब ना बन जाए

रणघोष खास. चंदन कुमार जजवाड़े की रिपोर्ट बीबीसी साभार के साथ 

भारत की राजधानी दिल्ली लाखों छात्रों के लिए यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी का बड़ा केंद्र है. छात्र कोचिंग संस्थानों, मकान मालिकों और स्थानीय लोगों की कमाई का बड़ा ज़रिया भी हैं. शनिवार को दिल्ली के ओल्ड राजेंद्र नगर के एक कोचिंग संस्थान के बेसमेंट में पानी भर जाने से तीन छात्रों की मौत हो गई थी. उसके बाद दिल्ली में छात्रों के मुद्दे पर संसद से लेकर सड़क पर चर्चा हो रही है. कुछ दिन पहले दिल्ली के पटेल नगर में यूपीएससी परीक्षा की तैयारी कर रहे एक छात्र की मौत करंट लगने से हो गई थी. पिछले साल भी दिल्ली के मुखर्जी नगर इलाक़े में एक कोचिंग संस्थान की इमारत में आग लगने से कई छात्रों ने छत से कूदकर और तारों के सहारे नीचे उतरकर अपनी जान बचाई थी.राजेंद्र नगर में रहकर यूपीएससी की तैयारी कर रहे छात्र विक्रम नाराज़गी जताते हुए कहते हैं, “सारे कोचिंग वाले रील बनाकर छात्रों को भ्रमित करते हैं और दिल्ली बुला लेते हैं. वो अपनी कमाई कर लेते हैं, हम जब अफ़सर बनेंगे तब बनेंगे, अभी तो हमारे साथी मर रहे हैं. ”शनिवार की घटना के बाद दिल्ली पुलिस ने एफ़आईआर दर्ज की है और कोचिंग संस्थान से जुड़े दो लोगों को गिरफ़्तार किया है. इसके अलावा दिल्ली नगर निगम यानी एमसीडी ने इलाक़े में बेसमेंट में चलने वाली कुछ लाइब्रेरी को सील भी कर दिया है.लेकिन छात्रों की कई ऐसी समस्या है जो बाहर से नज़र आती हैं.राजेंद्र नगर और करोल बाग के कोचिंग में पढ़ रहे ज़्यादातर छात्र पटेल नगर इलाक़े में रहते हैं. यहाँ हमने एक पाँच मंज़िला मकान में जाकर छात्रों के हालात जानने की कोशिश की.

इस मकान में अलग-अलग कमरों में कुल 60 छात्र रहते हैं, जिनके लिए संकरे गलियारे और छोटी सीढ़ियों से गुज़रना होता है.यहाँ एक फ़्लोर पर कमरे में तोड़कर उसे दोबारा बनाया जा रहा था. मकान के गलियारे में रोशनी की कमी और पाँचवीं मंज़िल तक पहुँचने के लिए सर्कस की तरह सीढ़ियों और भूल-भुलैया से गुज़रना पड़ता है.मकान में कुछ छात्रों ने अपनी पहचान सार्वजनिक नहीं करने की शर्त पर बताया कि उनके फ़्लैट से ज़्यादा किराया वसूलने के लिए हॉल में भी फ़ॉल्स दीवार के सहारे एक कमरा बना दिया गया है.

हमने देखा कि क़रीब 4 फ़ुट चौड़े और 8 फ़ुट लंबे के इस कमरे में पंखे तक के लिए जगह नहीं थी और इसके लिए फ़ॉल्स दीवार को काट दिया गया था.छात्रों के सामने छोटे-छोटे कमरों में रहकर बड़ी पढ़ाई की चुनौती दिल्ली के राजेंद्र नगर, करोल बाग, पटेल नगर, मुखर्जी नगर, कटवारिया सराय, लक्ष्मी नगर और अन्य कई इलाक़ों में देखने को मिलती है.

किराया, कमीशन और कूड़ा

ओल्ड राजेंद्र नगर में हमें ऐसे कई मकान, गलियों और सड़कों पर कूड़े का ढेर दिखा जो बीमारियों की भी वजह बनते हैं.एक छात्र ने बताया कि मकान मालिक सफाई के नाम पर कुछ नहीं कराते हैं, इसलिए कई मकानों के कूड़े बाहर सड़कों पर नज़र आते हैं और इससे नाले जाम होते हैं. इलाक़े में नालों से पानी की निकासी नहीं होने से बारिश के बाद सड़क पर घुटने और कमर तक पानी भरने की समस्या हर साल देखने को मिलती है.यहाँ सड़कों और गलियों में लटके हुए तार और गंदगी छात्रों की रोज़ की ज़िदगी का हिस्सा हैं.हालाँकि राजेंद्र नगर, पटेल नगर और मुखर्जी नगर में छात्रों की बड़ी शिकायत मकानों के किराये को लेकर है. उनका आरोप है कि रिहाइशी मकानों में बिजली के सब-मीटर लगातर उनसे बिजली का ज़्यादा बिल भी वसूला जाता है.मध्य प्रदेश से यूपीएससी की तैयारी करने राजेंद्र नगर पहुँची निधि बताती हैं, “अगर आपको 8 फ़ुट का कमरा 16-17 हज़ार में भी मिल जाए तो बहुत बड़ी बात है. यहाँ हर जगह खुले तार लटक रहे हैं. यहाँ 98% लाइब्रेरी बेसमेंट में है. कहाँ है एमसीडी और किसने यह अनुमति दी है.”यहीं मौजूद एक छात्र राजन राज बताते हैं, “कोचिंग और बाक़ी चीजों पर महीने में औसतन 30 हज़ार रुपये ख़र्च करके भी हम एक छोटे से डब्बे की तरह कमरे में रहते हैं. यह कबूतर खाने जैसा है, जहाँ कोई सुरक्षा नहीं है.”राजेंद्र नगर के जिस कोचिंग संस्थान में बच्चों की मौत हुई है उसके ठीक बगल की गली में हमें कुछ छात्रों ने बताया कि इलाक़े में दलाल (ब्रोकर) को एक महीने का किराया कमीशन के तौर पर दिए बिना कमरा पाना असंभव है.एक छात्र ने हमें इशारे से बताया कि सामने जो दो लोग बैठे हैं वो कमीशन पर कमरा दिलाते हैं. हालाँकि जब हमने उनसे बात करने की कोशिश की तो वो यह मानने को तैयार नहीं हुए कि वो ब्रोकर हैं.यही हाल मकान मालिकों का है जो छात्रों की इस परेशानी पर बात करने को राज़ी नहीं हुए. कुछ मकान मालिकों ने दरवाज़ा खोलते ही हमें देखकर दरवाज़ा बंद कर लिया.

बिहार के गया ज़िले की प्रेरणा आरोप लगाती हैं, “यहाँ एक कमरे में तीन बच्चे रहते हैं और एक बच्चे को 10 से 12 हज़ार किराया देना होता है. यहाँ एक छोटा सा किचन भी मिलता है, जिसकी कभी सफ़ाई नहीं होती है.”दिल्ली में कोचिंग संस्थानों वाले इलाक़ों में मकानों या कोचिंग संस्थान की इमारत के बेसमेंट में लाइब्रेरी का होना कई सवाल भी खड़े कर रहा है और छात्रों की नाराज़गी का बड़ा मुद्दा है.अभिषेक नाम के एक छात्र ने हमें बताया कि छोटे-छोटे कमरों में यूपीएससी के लिए पढ़ाई कर पाना संभव नहीं होता है, क्योंकि आपको काफ़ी देर तक पढ़ाई करनी होती है.

बेसमेंट में लाइब्रेरी

यूपीएससी की तैयारी कर रहे राजन राज शिकायत करते हैं कि हम दिल्ली आकर देश की सबसे बड़ी नौकरी का सपना देखते हैं लेकिन कबूतर खाने जैसी ज़िंदगी गुज़ारनी होती है छात्र बड़े कमरे के लिए बहुत ज़्यादा किराया नहीं दे सकते, इसलिए वो लाइब्रेरी या पढ़ाई के लिए बने हॉल में कुर्सियाँ किराए पर लेते हैं.सुविधा और जगह के हिसाब से यह किराया बढ़ता जाता है. इन लाइब्रेरी में छात्र रोज़ के 6 घंटे से लेकर 24 घंटों के लिए कुर्सियाँ बुक कर सकते हैं जिसके लिए महीने में 1 हज़ार से 4 हज़ार या उससे भी ज़्यादा तक देना होता है.अभिषेक कहते हैं, “बेसमेंट में लाइब्रेरी बनाकर इसके मालिक कमाई भी करते हैं और छात्रों को शोर-शराबे से हटकर एक साउंड प्रूफ एरिया मिल जाता है, जहाँ वो आराम से पढ़ाई कर सकते हैं. हालाँकि जब तक यह मामला शांत नहीं हो जाता तब तक आपको बेसमेंट बंद नज़र आएंगे. ”इन इलाक़ों में गलियों और सड़कों पर बेसमेंट में बनी लाइब्रेरी के होर्डिंग और इश्तेहार भी नज़र नहीं आते हैं.ओल्ड राजेंद्र नगर में हुई घटना के बाद दिल्ली पुलिस, दिल्ली नगर निगम और अन्य प्रशासनिक विभागों पर सवाल उठाए जा रहे हैं. इन सवालों से कोचिंग संस्थान और उनके मालिक भी दूर नहीं हैं.

ज़िम्मेदारी किसकी?

छात्रों का आरोप है कि जिन जगहों पर छात्रों के लिए बेंच लगाकर बैठने की व्यस्था की गई थी, वहाँ स्थानीय लोगों की गाड़ियाँ पार्क होती हैं.लेकिन क्या इसमें स्थानीय लोगों की भी कोई ज़िम्मेदारी बनती है? सलमान नाम के एक छात्र आरोप लगाते हैं, “सामने गोलचक्कर के पार्क के चारों तरफ एमसीडी ने लोहे का घेरा लगाकर वहाँ बेंच लगवाए थे, ताकि छात्र वहाँ बैठकर पढ़ सकें, चर्चा कर सकें. लेकिन स्थानीय लोगों ने लोहे को काटकर अपनी गाड़ियों के लिए पार्किंग बना ली है.”बीबीसी हिंदी की टीम ने उस जगह पर जाकर देखा तो गोल चौराहे के चारों तरफ गाड़ियाँ पार्क की गई थीं और वहाँ बोर्ड पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था, ‘नो पार्किंग’.यूपीएससी की तैयारी की एक कोचिंग संस्थान के डायरेक्टर तीर्थांकर रॉय चौधरी कहते हैं, “छात्रों को जो परेशानी हो रही है वह एक दिन में नहीं हुआ है. अलग-अलग विभाग जो भी गाइडलाइन्स जारी करते हैं या उनका जो भी कानून है उसे लागू कराने में कमी है. किसी पर आरोप लगाना सही नहीं है लेकिन यह सबकी जवाबदेही है.”राजेंद्र नगर में छात्रों की बड़ी समस्याएँ अभी बरक़रार है और उनका आरोप है कि राजनीतिक दलों के छात्र संगठनों ने इस मुद्दे पर राजनीति शुरू कर दी है । राजेंद्र नगर में रहकर यूपीएससी की तैयारी कर रहे मोहित कहते हैं कि इन तमाम परेशानियों के बाद भी यूपीएससी या अन्य राज्यों की सिविल सेवा परीक्षा को पास करना आसान नहीं है.मोहित के मुताबिक़, “इस साल यूपीएससी की क़रीब 1 हज़ार पदों की सिविल सेवा परीक्षा में क़रीब 10 लाख़ छात्र शामिल हुए थे. यूपी और बिहार जैसे बड़े राज्यों की सिविल सेवा परीक्षा में भी पोस्ट काफ़ी कम हो गए हैं. फिर भी हमें पढ़ना है, सफल होने के लिए.” मोहित तो 20 सितंबर से यूपीएससी की मुख्य परीक्षा में शामिल होना है. तमाम परेशानियों में भी घरवालों की उम्मीद और अपने सपनों को पूरा करने के लिए उन्हें अपनी किताबों और उन कोचिंग संस्थानों के बीच ही लौटना होगा, जो आईएएस बनाने का दावा करते हैं.