इस सीट पर हर बार यही कहानी आकर ठहर जाती है

 रेवाड़ी सीट पर वही हो रहा है जो कप्तान की राजनीति चाह रही है


रणघोष खास. रेवाड़ी की कलम से

दक्षिण हरियाणा की राजनीति का मुख्यालय कहलाए जाने वाली रेवाड़ी विधानसभा सीट पर इस बार भी वही हो रहा है जो पूर्व मंत्री कप्तान अजय सिंह यादव की राजनीति चाहती है। वोटों का जबरदस्त बिखराव एक बार फिर कप्तान के बेटे कांग्रेस प्रत्याशी चिरंजीव राव को मजबूती की  तरफ ले जाता दिखाई दे रहा  हैं। यही वजह है कि भाजपा से लेकर आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी इसे  रोकने के लिए संकट मोचक पूर्व विधायक रणधीर सिंह कापड़ीवास के यहा परिक्रमा लगा रहे है। ऐसा कोई दिन नही जाता जब उन्हें कापड़ीवास की याद नही आती हो। हालांकि इस नेता ने अपने पत्ते नही खोले हैं। रेवाड़ी का राजनीति इतिहास एकदम अलग रहा है। यहा वोटों के बिखराव में 30 से 40 प्रतिशत वोट लेने वाले उम्मीदवार जीत जाते है जिसमें सबसे ज्यादा सौभाग्य कप्तान अजय सिंह यादव को छह बार ओर उनके बेटे चिरंजीव राव को महज 1317 वोटों की जीत से एक बार मिल चुका है। इस बार के चुनाव में भी यही स्थिति बनी हुई है। कप्तान का कांग्रेस के साथ साथ अपना निजी वोट बैंक है। आमने सामने की लड़ाई में कप्तान परिवार खतरे में आ आता है। इसलिए इस परिवार की जीत उसी समय जन्म लेना शुरू कर देती है जब जमीनी स्तर के कुछ नेता भी टिकट नही मिलने की स्थिति में निर्दलीय मैदान में उतर आते हैं जो सीधे तौर पर कप्तान की जीत का रास्ता बनाकर चले जाते हैं। इसकी वजह भी साफ है कांग्रेस की तरफ से कप्तान से बड़ा एकछत्र राज करने वाला कोई बड़ा नेता नही है। इसलिए यह परिवार टिकट की घोषणा से पहले ही नामाकंन की तिथि और चुनाव प्रचार मे जुट जाता है। इतना ही नही इस बार तो चिंरजीव राव ने कांग्रेस सरकार में अपने लिए डिप्टी पद भी पहले से आरक्षित कर लिया। यानि  यहां कांग्रेस का मतलब ही कप्तान है। उधर भाजपा में टिकट ओर चौधर को लेकर मारकाट की स्थिति बनी रहती है। जिसके चलते केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने एक बार फिर अपने समर्थक कोसली विधायक लक्ष्मण यादव को रेवाड़ी से टिकट दिला दी जबकि इस सीट पर अनेक मजबूत दावेदार पहले से  जुटे हुए थे इसमें रणधीर सिंह कापड़ीवास, पूर्व चेयरमैन अरविंद यादव, पूर्व जिला प्रमुख सतीश यादव, प्रंशात सन्नी और राव खेमें से सुनील मुसेपुर विशेष तौर से शामिल थे। टिकट नही मिलने से खफा सतीश यादव और प्रशांत सन्नी चुनावी मैदान में आ चुके हैं जबकि कापड़ीवास की खामोशी भाजपा के लिए घातक बनी हुई है। सुनील मुसेपुर भी खुद को समझ नही पा रहे हैं की उनके साथ सही मायनों में किसने खेल किया।  यही हालात ही चिंरजीव राव के लिए वरदान की तरह है। देखते हैं आने वाले दिनों में स्थिति में बदलाव आएगा या बिखरे वोटों में कप्तान एक बार फिर भाग्य पर सवार होकर चंडीगढ़ पहुंच जाएंगे।