विरोध में डॉ. बनवारीलाल की खामोशी अपना काम कर जाती है..
रणघोष खास. बावल से सुभाष चौधरी की ग्रांउड रिपोर्ट
राजस्थान सीमा पर बसी हरियाणा की आरक्षित बावल विधानसभा सीट का अपना राजनीति मिजाज रहा है। यहा शोर मचाने वाले हार जाते हैं और खामोशी अपना काम कर जाती है। 2019 के विधानसभा चुनाव में भी ऐसा हुआ था ओर इस बार भी कुछ ऐसा ही नजारा महूसस हो रहा है।
यहां बात हो रही है लगातार 10 सालों से हरियाणा भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री डॉ. बनवारीलाल की। इस नेता की खूबी यह है की हर शोर का जवाब अपनी खामोशी से देते हैं। पिछले चुनाव में भी उनके खिलाफ पार्टी के अंदर ओर बाहर जमकर हल्ला मचा लेकिन डॉ. बनवारीलाल ने 32 245 वोटों से जीत दर्ज कर सभी को हैरान कर दिया। इस बार भी उनके खिलाफ अंदरखाने विरोध अलग अलग वजहों से लगातार शोर मचा रहा है जबकि डॉ. बनवारीलाल एकदम शांत होकर अपना काम कर रहे हैं। पिछले चुनाव में इस सीट पर केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह के आशीर्वाद ने उनकी जीत को सुनिश्चित कर दिया था लेकिन इस बार स्थिति स्पष्ट नजर नही आ रही है। जहां तक अन्य उम्मीदवारों का सवाल है। डॉ. बनवारीलाल के मुकाबले भाजपा के पास ऐसा कोई चेहरा नही है जिसकी जमीनी स्तर पर अपनी खुद की मजबूत हैसियत हो। कोई कृपया दृष्टि से भाजपा की टिकट पर सवार होकर जीतना चाहता है तो कोई झटपट पार्टी बदलकर राव के आशीर्वाद को अपनी जीत मानकर गुणा गणित में जुटा हुआ है। डॉ. बनवारीलाल के रिपोर्ट कार्ड में बावल के विकास के लिए बताने को बहुत कुछ है। जिसकी काट विरोधियों के पास भी नही है। इसमें कोई दो राय नही की पिछले 10 सालों में बावल की तस्वीर विकास में काफी बेहतर नजर आ रही है। जिसमें सभी क्षेत्रों में कार्य हुए हैं। भाजपा संगठन के तोर पर डॉ. बनवारीलाल केंद्रीय मंत्री मनोहरलाल, वर्तमान सीएम नायब सैनी और केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह के बीच तमाम विरोधाभास के बीच अपना संतुलन बनाने में कामयाब रहे। हालांकि इस बार लोकसभा चुनाव में वे भाजपा के विरोध में खड़े हुए एससी समाज को नही रोक पाए लेकिन यह यह हालात पूरे देश में बने हुए थे। इसलिए अकेले बावल में उनकी जवाबदेही को पूरी तरह से ठहरा देना तर्कसंगत नही है। जिस तरह से चुनाव में एक माह का समय बचा हुआ है। भाजपा की तरफ से डॉ. बनवारीलाल को छोड़कर ऐसा कोई बड़ा चेहरा अभी तक नजर नही आ रहा है जो सीधे जनता के बीच में अपनी दमदार मौजूदगी दिखा रहा हो। जाहिर है मौजूदा हालात में जहां कांग्रेस या भाजपा की अपनी कोई लहर नही है। ऐसे में मजबूत उम्मीदवार पर भी सबकुछ टिका हुआ है। इस स्थिति में भाजपा डॉ. बनवारीलाल को बदलकर कोई नए चेहरे पर दांव चलाएगी। यह आसान नजर नही आ रहा है। राव इंद्रजीत सिंह भाजपा को लेकर उतने जोशीले नजर नहीं आ रहे जितने वे चुनाव में आमतोर पर अपने इरादों से महूसस कराते थे। ऐसे में डॉ. बनवारीलाल की खामोशी एक बार फिर वजनदार साबित होने जा रही है। इस बार उनके खिलाफ वह शोर भी इतना नही है जो पिछले चुनाव में नजर आ रहा था। सही तस्वीर इस माह के अंत तक स्पष्ट हो जाएगी।