चुनाव लड़ने वाले इस खबर को पढ़कर संभल जाए

 अधिकांश प्रत्याशियों का चुनावी प्रबंधन बंदर के हाथ में उस्तरा..


रणघोष खास. ग्राउंड रिपोर्ट

किसी भी प्रत्याशी की हार जीत का मुख्य आधार उसका चुनावी प्रबंधन होता है। अगर वह सही हाथों में है तो जीत का फासला बेहद करीब हो जाता है। अगर बंदरबांट की तरह है तो उम्मीदवार की जीत धूल में लट्‌ठ मारना जैसी होगी। रणघोष टीम ने भाजपा- कांग्रेस कार्यालयों में काम करने वाली टीमों की समीक्षा की तो यह खुलासा सामने आया की अधिकांश का चुनावी प्रबंधन बंदर के हाथ में उस्तरा देने जैसा है। ऐसा लग रहा था की यह प्रबंधन नही होकर शादी में कैटरिंग वाले हैं जिसने बजट के हिसाब से प्लेट के रेट तय किए हुए हैं। शरीर में एक साथ कितने व्यंजन जाएंगे, क्या असर डालेगे इससे कोई मतलब नही। बस शक्तिप्रदर्शन शानदार होना चाहिए। चुनाव में उम्मीदवार को ना दिन का पता होता है ना रात का। उसके सामने मतदाता का चेहरा ही ईश्वर का स्वरूप होता है। इसके अलावा उसका दिलो दिमाग कोई काम नही करता। ऐसे में प्रबंधन ही है जो  हर समय उसकी ताकत बनकर नजर आता है। लेकिन अधिकतर उम्मीदवारों के प्रबंधन की कार्यप्रणाली पर नजर डाली तो खुलासा हुआ की जिसने कभी जीवन में इतने फोन नही किए उससे हर रोज सैकड़ों फोन करवाए जा रहे हैं। जिसे कंप्यूटर का अक्षर ज्ञान भी नही है उसे सोशल मीडिया टीम के साथ जोड़ दिया गया है। जिसने कभी गाय का प्रस्ताव नही लिखा उसे कहा गया है की वह सोशल व प्रिंट मीडिया में भेजी जाने वाली खबरों पर नजर रखे। कौन व्यक्ति किस लेवल का है उससे कैसे संवाद करना है, उसकी जगह स्थानीय जाने पहचाने चेहरे को रखने की बजाय चुनाव में  हायर किए गए लोगों केा यह जिम्मेदारी दी गई है। सबसे बड़ी बात जिसकी समाज में कोई हैसियत नही वह धन बल के बूते पर उम्मीदवार के साथ बराबर वाली कुर्सी पर नजर आता है। 

 इससे आमजन में गलत संदेश जाता है। इन छोटी छोटी खामियों की वजह से उम्मीदवार का चुनाव मजबूत जीत के बावजूद हार में तब्दील हो जाता है। सबकुछ  खोने क बाद जब इसकी समीक्षा की जाती है तो यही वजह सामने आती है। इसलिए इस चुनाव में अधिकतर उम्मीदवारों की जीत हार का निर्णय कुशल प्रबंधन पर भी निर्भर है। वजह किसी भी राजनीतिक दल की कोई लहर नही है जो आंधी बनकर सभी को बहाकर ले जाए।