Narendra Modi: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनीतिक यात्रा को अक्सर चाय बेचने वाले बालक से लेकर देश के सर्वोच्च पद तक पहुंचने की कहानी कहा जाता है। लेकिन इस सफर में एक ऐसा व्यक्तित्व है, जिसने उनकी सोच, संगठनात्मक क्षमता और नेतृत्व शैली पर अमिट छाप छोड़ दी। उनका नाम है लक्ष्मणराव इनामदार, जिन्हें संघ परिवार में “वकील साहेब” कहा जाता था।
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, 1960 के दशक की शुरुआत में किशोर नरेंद्र मोदी पहली बार वकील साहेब से वडनगर में मिले थे। संघ के इस प्रांत प्रचारक का ओजस्वी भाषण सुनकर मोदी मंत्रमुग्ध हो गए। यही मुलाकात उनके जीवन की दिशा बदलने वाली साबित हुई। बाद में मोदी अहमदाबाद में हेडगेवार भवन में उनके निकट रहे, जहां उन्होंने सुबह चाय बनाने से लेकर साफ-सफाई और कपड़े धोने तक का अनुशासन सीखा।
वकील साहेब ने 1943 से गुजरात में संघ कार्य संभाला। उन्होंने न केवल संगठन के लिए बल्कि मोदी के निजी जीवन में भी पिता तुल्य साबित हुए। मोदी ने खुद एकबार कहा था,“मेरे व्यक्तित्व पर वकील साहेब का सबसे गहरा प्रभाव रहा है।” लेखक नीलांजन मुखोपाध्याय के अनुसार, “मोदी का इतना सम्मान किसी और के लिए कभी नहीं देखा गया है।”
1975 में आपातकाल के दौरान जब संघ पर प्रतिबंध लगा, तो वकील साहेब और मोदी दोनों भूमिगत हो गए। मोदी ने भेष बदलकर संगठन को जीवित रखा। यही वह दौर था जिसने उन्हें संघ का भरोसेमंद प्रचारक और आगे चलकर एक सशक्त संगठनकर्ता बना दिया।
वकील साहेब ने ही मोदी को पढ़ाई जारी रखने के लिए प्रेरित किया। उनके कहने पर मोदी ने राजनीतिक विज्ञान में बीए और बाद में एमए किया। यह वही शिक्षा थी जिसने आगे चलकर उनकी राजनीतिक सोच और रणनीति को मजबूत आधार दिया।
1980 के दशक की शुरुआत में कैंसर से जूझते हुए भी वकील साहेब ने संघ कार्य नहीं छोड़ा। 1984 में उनके निधन ने मोदी के जीवन में गहरा शून्य छोड़ दिया। मोदी ने एक बार कहा था, “वे एकमात्र व्यक्ति थे जिनसे मैं हर समस्या साझा कर सकता था।”
आज भी नरेंद्र मोदी वकील साहेब की डायरियों को अपनी सबसे कीमती धरोहर मानते हैं। उनकी संगठन क्षमता, लोगों से संवाद का हुनर और अनुशासन की परंपरा मोदी की कार्यशैली में साफ झलकती है।