डंके की चोट पर : डॉक्टर शरीर का देवता, शिक्षक दिमागी बादशाह, हम तो गुलाम है साहब

IMG-20221214-WA0006[1]रणघोष खास. प्रदीप नारायण


इंसानी शरीर में दिक्कत आ जाए तो डॉक्टर देवता नजर आता है। दिमाग अनपढ़ हो तो शिक्षक बादशाह बनकर उसे सिंहासन पर बैठाता है। ऐसे में देवता- बादशाह कभी गलत नहीं हो सकते। वे है तो हम है नहीं तो सबकुछ खत्म। इसलिए वे कुछ भी करें, ना करें, कैसा करें, वैसा करें हमें आंख बंद कर स्वीकार करना चाहिए। वे किसी सूरत में नाराज नहीं हो जाए। ऐसे बनने वाले हालातों को तुरंत प्रभाव से खत्म करने के लिए आगे आना चाहिए। यह स्वीकार कर लिजिए देवता- बादशाह जब सामने हो तो खुद की हैसियत गुलाम से बड़ी नहीं समझनी चाहिए।

 पिछले कुछ दिनों से देवता- बादशाह के तौर तरीकों व अंदाज को अलग अलग मकसद से चुनौती दी जा रही है। मसलन राजस्थान में स्वास्थ्य का अधिकार कानून लागू करके सीएम अशोक गहलोत ने देवता को पूरी तरह से नाराज कर दिया। नतीजा गुलाम जनता कीड़े मकौड़ों की तरह इलाज के लिए सड़कों पर तड़फ रही है। देवता को रूष्ट करके राजस्थान सरकार ने आफत मोल ले ली है। उधर पंजाब सरकार ने प्राइवेट स्कूल संचालकों की बादशाहत को चुनौती देकर ठीक नहीं किया। कहां गलत  है बादशाह। बच्चों के नंगे शरीर पर ड्रेस का खुबसूरत लिबास पहनाकर, सुट बूट टाई के साथ घर से स्कूल शानदार वाहन में लेकर आना बादशाह बनने का पहला अंदाज होता है। इसके बदले माता-पिता अपनी कमाई का कुछ हिस्सा इस बादशाहत खर्च भी कर देते हैं तो क्या गुनाह करते हैं। यही अंदाज ही तो आगे चलकर इन बच्चों को देवता- बादशाह बनाता है।  

 इसी तरह सरकारी स्कूलों के बादशाह की शान शौकत एवं अंदाजें बयां पर भी उंगली उठाना उतना ही अपराध  है जितना अधिकारी- नेताओं के बच्चों को जबरदस्ती सरकारी स्कूलों में पढ़ने के लिए मजबूर करना। गुलाम जनता क्यों भूल जाती है कि देवता- बादशाह के बिना उनका कोई वजूद नहीं है। सरकार चलाने वाले भी एक समय बाद इनके सामने नतमस्तक हो जाते हैं। इसलिए गौर से  मंथन करिए क्या कभी देवता ने नैतिक तौर पर  जिम्मेदारी ली है कि उनकी लापरवाही, गलती या बेहिसाब इलाज के नाम पर वसूले गए बिलों के चलते गुलाम जनता को कितनी मानसिक और आर्थिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है। क्या किसी बादशाह ने यह कबूल किया है बेहतर शिक्षा के नाम पर खुले आलीशान भवनों में बच्चों को बेहतर इंसान बनाने की बजाय शानदार प्रोडेक्ट में तब्दील कर रहे हैं। जी नहीं। देवता- बादशाह यह हरगिज स्वीकार नहीं करेंगे। अगर ऐसा हो गया तो इतनी कड़ी मेहनत से बाजार की शक्ल में  खड़ा किया गया स्वास्थ्य- शिक्षा  का विशालकाय साम्राज्यवाद  ध्वस्त हो जाएगा। इसे रोकना होगा। इसलिए सबकुछ जानते हुए भी खामोश रहे। यही एक बेहतर गुलाम होने का सबूत है।

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