पब्लिक एजुकेशन बोर्ड की शिक्षण संस्थाओं के चुनाव का सच जानना जरूरी है

बेहतर सोच से काम करते तो केएलपी कॉलेज आज यूनिवर्सिटी होती, सतीश स्कूल- आरडीएस संस्थानों में सन्नाटा नहीं पसरता


– इस चुनाव में अगर जातिवाद, चौधर, एक दूसरे को नीचा दिखाने की मानसिकता के साथ उम्मीदवार वोट मांग रहे हैं तो इन संस्थाओं का वही हश्र हो जाएगा जो देश की बीएसएनएल, एयर इंडिया लांयस समेत अनेक बड़े नामी सरकारी उपक्रमों का हो चुका है।


रणघोष खास.  सुभाष चौधरी

रेवाड़ी शहर की नामी शिक्षण संस्था पब्लिक एजुकेशन बोर्ड (पीईबी) द्वारा संचालित 4 प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थाएं केएलपी कॉलेज, आरडीएस गर्ल्स कॉलेज, सतीश पब्लिक एजुकेशन कॉलेज एवं सतीश पब्लिक स्कूल प्रबंधन समिति के चुनाव को लेकर सरगर्मी तेज हो गई है। 24 अक्टूबर को इन संस्थाओं में नई टीम का गठन होता है। लिहाजा चुनाव में अलग अलग सोच ओर इरादों के साथ खड़े उम्मीदवारों के बने धड़ों के पीछे छिपे मकसद- सोच को समझना इसलिए जरूरी है क्योंकि यही सोच ही आगे चलकर इन संस्थानों का असली चेहरा बनेगी।

इन संस्थाओं से निकल चुके लाखों विद्यार्थी अपने विजन के साथ परिवार- समाज- राष्ट्र में बेहतर योगदान दे रहे हैं। ऐसे में इन संस्थाओं को संचालित करती आ रही कमेटी का यह चुनाव इस बार हर लिहाज से खास है। वजह पिछले 7 सालों में इन संस्थाओं की अलग अलग वजहों से प्रतिष्ठा दांव पर लग चुकी है। गलत तरीके से वोट बनाने से लेकर संस्थाओं में खर्च हुई राशि का गलत तरीके से इस्तेमाल की जिला प्रशासन स्तर पर जांच तक हो चुकी है। इतना ही नहीं इस संस्थाओं को कई सालों से चलाते आ रहे पदाधिकारियों पर मामले तक दर्ज हो चुके हैं जिसकी जांच भी अभी चल रही है। इस चुनाव में जो भी उम्मीदवार जीत दर्ज करेगा उसका असली मकसद क्या होगा इसे समझने ओर जानने के लिए मौजूदा हालात की समीक्षा करना जरूरी है। इसमें कोई दो राय नहीं की चुनाव में दो धड़े बने चुके हैं जिसकी दिमागी कसरत इस बात पर लग रही है कि एक एक कॉलेजियम सदस्यों को कैसे अपने पाले में लाया जाए। इन संस्थाओं पर लगे दागों को कैसे ईमानदारी से साफ करना है, शिक्षा के स्तर को कैसे बेहतर बनाना है यह एजेंडा किसी के पास नहीं है। सबसे बड़ी बात जिसे दो कदम चलने के लिए दूसरे के कंधे की जरूरत पड़ती है वे चुनावी मैदान में हैं। इन उम्मीदवारों का दावा है कि उनका तजुर्बा ही संस्थाओं को बेहतर दिशा दे सकता है। ऐसे में सवाल उठता है कि  क्या फिर युवाओं को जिम्मेदारी बुजुर्ग होने पर मिलेगी। कायदे से ऐसी संस्थाओं के चुनाव में उम्मीदवार की शैक्षणिक योग्यता एवं आयु की सीमा तय करने पर विशेष फोकस होना चाहिए लेकिन आपसी धड़ों एवं जातिगत समीकरणों के चलते सबकुछ कागजों में सिमट कर रह जाता है। इसलिए आधे सदस्य ऐसे भी है जिसकी शैक्षणिक योग्यता ही अंडर मैट्रिक है। ऐसे में वे बेहतर शिक्षा के लिए किस स्तर का उदाहरण पेश कर पाएंगे यह सोचने का विषय है।

15-20 लोगों के हाथों कठपुतली बनकर रह गई ये संस्थाएं

इन संस्थाओं के पिछले 15-20 सालों के दरम्यान हुए चुनाव पर गौर किया जाए तो यह सच भी सामने आ रहा है कि 15-20 सक्रिय सदस्य ही पूरे चुनाव को अपने अंदाज से मैनेज करते आ रहे हैं इसमें अलग अलग तरह का व्यवसाय कर रहे वो लोग भी शामिल हैं जिनके लिए इन संस्थाओं से जुड़ने का मकसद अपने बिजनेस से जुड़े सामान की सप्लाई करना भी है। इसके अलावा सामाजिक हैसियत बनाने के लिए यह शानदार प्लेटफार्म है। इसी मानसिकता के चलते इन संस्थाओं का जो स्तर होना चाहिए था वह बजाए शानदार होने के दिन प्रतिदिन कमजोर होता जा रहा है।

बच्चों के दाखिला के लिए तरस रहे ये संस्थान

एक समय ऐसा था जब सतीश पब्लिक स्कूल में दाखिले के लिए सिफारिश लगवानी पड़ती थी आज एक एक बच्चे की संख्या बढ़ाने के लिए जूझना पड़ रहा है। केएलपी कॉलेज के इतिहास को देखा जाए तो आज इसे यूनिवर्सिटी में तब्दील हो जाना चाहिए था। जैसा उसके बाद रोहतक- फरीदाबाद समेत अनेक जिलों में खुली इस तरह की शिक्षण संस्थाओं ने कर दिखाया है। आज केएलपी सुंदर इमारत के नाम पर शो पीस बनकर रह गया है। अमूमन यही स्थिति अन्य दोनो आरडीएस गर्ल्स कॉलेज, सतीश पब्लिक एजुकेशन कॉलेज की साफ तौर पर नजर आ रही है। इसकी वजह भी साफ है हर तीन साल चुने जाने वाली प्रबंधन समिति के सदस्यों का अधिकांश समय मीटिंगों में ज्यादा बीता है। किस विजन के साथ इन संस्थाओं को अगले तीन-पांच साल में पहुंचाना है इसका कोई मास्टर प्लान किसी के पास नहीं होता। कोई करने का प्रयास करते हैं उसे घेरकर थका दिया जाता है। अगर सच में इन संस्थाओं के बेहतरी के लिए कोई चुनाव में उतरा है तो उसे जाति- धड़ेबाजी से ऊपर उठकर एक बेहतर विजन के साथ कॉलेजियम सदस्यों के बीच जाना चाहिए। किसी कारणवश से वे जीत नहीं पाए लेकिन इतिहास हमेशा उन्हें याद रखेगा।

 इससे उलट 10-15 सालों में निजी शिक्षण संस्थान खुलकर बन चुके विराट वृक्ष

पीईबी के अंतर्गत आने वाली संस्थाओं के उलट आस पास क्षेत्रों में 10-15 सालों के दरम्यान निजी शिक्षण संस्थान खुलकर विराट वृक्ष की तरह फैल चुके हैं। गौर करने लायक बात यह है कि सफलता की कहानी लिख रहे इन संस्थाओं में अधिकांश के संचालक बाहरी जिलों एवं राज्यों से संबंध रखते हैं। ऐसे में इस चुनाव में अगर जातिवाद, चौधर, एक दूसरे को नीचा दिखाने की मानसिकता के साथ उम्मीदवार वोट मांग रहे हैं तो इन संस्थाओं का वही हश्र हो जाएगा जो देश की बीएसएनएल, एयर इंडिया लांयस समेत अनेक बड़े नामी सरकारी उपक्रमों का हो चुका है।

आइए केएलपी कॉलेज चुनाव की तस्वीर पर नजर डाले

किशनलाल पब्लिक कॉलेज (केएलपी) में चारों महत्पूर्ण पदों पर चुनाव होने हैं। अध्यक्ष पद के लिए आनंद स्वरूप डाटा एवं अमित गुप्ता के बीच सीधा मुकाबला है। उपाध्यक्ष के लिए राकेश गर्ग एवं संदीप खंडेलवाल आमने सामने हैं। महासचिव पद पर रजनीकांत सैनी एवं कपिल कुमार गोयल के बीच टक्कर है। इसी तरह कोषाध्यक्ष के लिए हेमंत अग्रवाल एवं हेमंत गुप्ता मैदान में हैं।

सतीश स्कूल चुनाव की तस्वीर एक नजर में

इस स्कूल की प्रबंधन समिति में चेयरमैन एवं प्रबंधक पद के लिए अह्म लड़ाई है। चेयरमैन के लिए सुहेल गुप्ता एवं घनश्याम दास गुप्ता व मैनेजर पद के लिए सतीश कुमार सैनी एवं मोनिका सिंहल अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं।

आरडीएस गर्ल्स कॉलेज की तस्वीर एक नजर में

इस कॉलेज में कोषाध्यक्ष पद के लिए सूर्यकांत सैनी पहले ही निर्विरोध चुन लिए गए हैं। उनके मुकाबले कोई उम्मीदवार सामने नहीं आया। यहां अध्यक्ष पद के लिए मुकेश कुमार भटटेवाला एवं डॉ. मित्रा सक्सेना के बीच मुकाबला हैं। उपाध्यक्ष के लिए महेंद्र गोयल व विजय गुप्ता आमने सामने हैं। महासचिव पद के लिए अनिल रस्तोगी एवं प्रवीण कुमार अग्रवाल एक दूसरे को चुनौती दे रहे हैं।

सतीश बीएड कॉलेज की तस्वीर एक नजर में

सतीश बीएड कॉलेज प्रबंधन समिति में प्रधान पद के लिए नंदकिेशोर गुप्ता एवं सुनील ग्रोवर मैदान में हैं। महासचिव पद के लिए अजय कुमार गुप्ता एवं सुनील भार्गव आमने सामने हैं। कोषाध्यक्ष बनने के लिए नरेश हिंडूजा एवं अनिल गुप्ता एक दूसरे को चुनौती दे रहे हैं। यहां उपाध्यक्ष के लिए प्रेम प्रकाश अग्रवाल पहले ही निर्विरोध बन गए हैं।

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