जीवन में सकारात्मक कार्य ही सही मायनों में हमें मानव बनाते हैं। जब तक हमारे हृदय में प्रत्येक प्राणी के प्रति करूणा का भाव नहीं उत्पन्न होता तब तक सही अर्थ में मानव कहलाने के योग्य हम नहीं हो पाते है। यह प्रेम व करूणा का भाव हमारे अंतर में पैदा होता है प्रभु की निरंतर भक्ति को अपनाने से। जहां श्रद्धा व समस्त प्राणियों को अपना मानने का भाव अंतर में पैदा जो जाए वही सच्ची भगती व श्रद्धा होती है। यह बात स्थानीय गामडी क्षेत्र स्थित जैन समाधी स्थल परिसर में जैन गुरूओं रघुनाथ जी, ज्ञानचंद्र जी, खुशहाल चंद्र जी की आरती आयोजन के दौरान जैन श्रद्धालुओं को जैन मुनि उपप्रवर्तक महाश्रमण पंडित रतन आनंद मुनि जी तथा प्रवचन दिवाकर दीपेश मुनि ने कही। इस दौरान प्रभावना का वितरण अशोक जैन व उनके परिवार द्वारा किया गया। महासाध्वी शक्तिप्रभा की शिष्याएं जैन,साध्वी अक्षिता व रक्षिता ने कहा कि भक्ति भाव से मानव सहज ही अपने सद्कर्मा का कई गुणा लाभ प्राप्त कर सकता है। यह सभी ग्रंथों व धर्मों में भी प्रमुखता से उल्लेखीत है कि जब एक साधक अपने जीवन को प्रभु के स्मरण व चिंतन में अर्पित कर देता है तब वह केवल एक जीव न रहकर उसी परमात्मा का अंश बन जाता है। एक श्रद्धालु होना तो अलग बात है लेकिन एक सच्चा साधक होना अपने आप में दिव्य होता है। साधक जब अपने सच्चे हृदय व सभी के भले के भाव को धारण कर भक्ति भाव से परमात्मा में रम जाता है तो वह अपने सद्कर्म का कई गुणा लाभ प्राप्त कर सकता है। दीपेश मुनि ने बताया कि आगामी 6 तथा 7 फरवरी को साध्वी अक्षिता व रक्षिता के साध्व पथ पर 18 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में कार्यक्रम होंगे। 6 फरवरी को एकासना दिवस तथा 7 को दीक्षा गुणगान दिवस स्थानीय छोटी बजारी स्थित जैन स्थानक में मनाया जाएगे। इस मौके पर बडी संख्या में जैन समाज के महिला, पुरूष, बच्चे व मौजिज नागरिक तथा श्रद्धालु उपस्थित थे।