रेवाड़ी के विराट अस्पताल में कोरोना से हुई मौतों ने सिस्टम को हत्यारा साबित कर दिया
– कोरोना के हमलों से तो सोशल डिस्टेंस की गाइड लाइन की ईमानदारी से पालना करने से बचा जा सकता है। इस प्राइवेट- सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर खेला जा रहा लाश—लाश के खेल से कैसे बच पाएंगे। यह बड़ा सवाल है।
रणघोष खास. सुभाष चौधरी
शहर के विराट अस्पताल में समय पर नहीं मिली आक्सीजन से हुई चार कोरोना मरीजों की मौत की घटना ने साबित कर दिया कि से वायरस से हुई मौत नहीं सिस्टम के नक्कारापन से हुई हत्याएं हैं। इस घटना पर हमारे देश की अदालतें किसे फांसी पर लटकाती है। यह देखने वाली बात होगी। रविवार को रेवाड़ी के इतिहास में यह पहली घटना थी जिसमें सभी को शर्मसार कर दिया। मरने वालों की संख्या बढ़ जाए तो हैरानी नहीं होगी। इस घटना के बाद अस्पताल में आक्सीजन सिलेंडर भी गए जिन्हें कायदे से समय पर आ जाना चाहिए था। अब सरकारी स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी और प्राइवेट अस्पताल का प्रबंधन खुद को बचाने में जुट गया है। विराट अस्पताल प्रबंधन इसकी निष्पक्ष जांच कराने के लिए पूरी तरह से तैयार है। उधर स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी किसी तरह आए इस संकट को एक दूसरे पर कैसे टाला जाए की जुगत में लग गए हैं। इसमें कोई शक नहीं हमारा सरकारी स्वास्थ्य सिस्टम पूरी तरह से संडाध मार रहा है। इसकी एक नहीं अनेक वजह है। अगर ऐसा नहीं होता तो देशभर के टॉप मंत्री से लेकर अधिकारी तक गुरुग्राम के मेडिसिटी सुपर स्पेशलिटी जैसे अस्पतालों में अपनी जान बचाने के लिए भर्ती नहीं होते। प्रदेश के मुख्यमंत्री मनोहरलाल, स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज से लेकर केंद्र एवं अन्य राज्यों के जाने माने मंत्री, सुप्रीम कोर्ट के जज, उद्योगपति और बेहिसाब अधिकारी अपनी जान बचाने के लिए निजी अस्पतालों पर ही भरोसा करते हैं जबकि उन पर जिम्मा सरकार सिस्टम् को बेहतर बनाए रखने का है। यह सच है सरकारी अस्पताल में वहीं आता है जिसकी मौत हमारे सिस्टम में कीड़े मकोड़े जितनी हैसियत रखती है। इसलिए तो इस तरह के हादसों के बाद जांच बैठती है लेकिन होता कुछ नहीं। समय के साथ मामला ठंड़ा पड़ जाता है। जांच कब शुरू होकर खत्म हो गईं किसी को पता नहीं चलता। हर बड़ी घटना की अनगिनत तस्वीर सामने आ चुकी है। इसलिए विराट अस्पताल में हुई मौतों का हश्र भी यहीं होने जा रहा है। हैरान होने की जरूरत नहीं है। कोरोना के हमलों से तो सोशल डिस्टेंस की गाइड लाइन की ईमानदारी से पालना करने से बचा जा सकता है। इस प्राइवेट- सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर खेला जा रहा लाश—लाश के खेल से कैसे बच पाएंगे। यह बड़ा सवाल है।