आरती के शब्दों में राव इंद्रजीत के इरादें झलकते हैं, विरोधी ताक में
रणघोष खास. सुभाष चौधरी
अपने पिता केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह की राजनीतिक विरासत को संभालने का तजुर्बा अजमाने छोटे बड़े आयोजनों में पहुंच रही आरती राव के शब्दों पर सभी की पैनी नजरें हैं। वह क्या बोलती है उसके क्या मायने हैं। उनके एक एक शब्दों को तोला व परखा जा रहा है। इसकी वजह भी साफ है। आरती वहीं बोलती है जिसमें उनके पिता की भावना एवं इच्छाएं भी शामिल हो। इसलिए वह घर से होमवर्क करके कार्यक्रमों में शिरकत करती है। राव विरोधी खेमा उनके उन शब्दों को पकड़ता है जिसे भाजपा अपनी विचारधारा के खिलाफ मानती है। टिकट का मिलना या नहीं मिलना या चुनाव लड़ने के इरादों को सार्वजनिक करना इसमें शामिल है। इसमें कोई दो राय नहीं मौजूदा हालात के आधार पर सभी राजनीतिक दल अपनी नीतियों को बदलने में एक पल नहीं लगाते हैं। उनका एक सूत्रीय मकसद सत्ता पर काबिज होना होता है। इसलिए 2024 के लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव में केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह एवं उनकी बेटी आरती राव अपनी जमीनी ताकत से हाईकमान की सोच को बदलने में कामयाब होंगे या फिर दिल्ली से चलने वाली हवा व आदेश को मानने के लिए मजबूर होंगे यह सबकुछ मौजूदा परिस्थितयों से तय होगा। इतना जरूर है कि राव इंद्रजीत आगामी 10 सालों तक अपनी राजनीतिक विरासत को इधर उधर नहीं होने के लिए मानसिक ओर शारीरिक तौर पर खुद को मजबूत कर चुके हैं। उन्हें पता है कि आरती बिना भाजपा की टिकट पर भी महेंद्रगढ़ या रेवाड़ी जिले में किसी भी विधानसभा सीट पर जीतने की ताकत रखती है। वह 2024 में चुनाव लड़ने का इरादा बना चुकी है। लिहाजा पहला प्रयास भाजपा की टिकट रहेगी। नहीं मिलने की स्थिति में आजाद उम्मीदवार अपना भाग्य अजमाएगी। राव के लिए गुरुग्राम संसदीय सीट जरूरी है। इसलिए पार्टी कैडर प्लेटफार्म पर उनके मुकाबले अभी तक कोई नेता उभर कर सामने नहीं आया है। चुनाव तक राव किसी तरह भाजपा से बागी साबित हो जाए यही उनके विरोधियों की रणनीति होगी। इसलिए राव भी फूंक फूंक कर कदम रख रहे हैं। इसलिए पिछले कुछ माह से वे ऐसा कोई बयान या टिप्पणी नहीं कर रहे हैं जिसमें वे खुद मुश्किलों में आ जाए। कुल मिलाकर मौजूदा स्थिति में ऐसी कोई स्थिति नहीं बन रही है जो राव के इरादों को बैचेन कर रही हो।