वैश्विक आर्थिक मंदी के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था को भी तगड़ा झटका लगता दिख रहा है। जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान फिर से घटाया गया है। विश्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि धीमी आय और खपत में कमी के कारण वित्त वर्ष 2024 में भारत की जीडीपी वृद्धि 6.3 प्रतिशत रहने की उम्मीद है। विश्व बैंक ने पहले भारत की आर्थिक वृद्धि 6.6% रहने का पूर्वानुमान लगाया था। इसका मतलब है कि अर्थव्यवस्था अपेक्षा के अनुरूप गति नहीं पकड़ रही है और कई मोर्चे पर दिक्कतें हैं।अर्थव्यवस्था में इन दिक्कतों की वजह से पिछले कई तिमाहियों में जीडीपी दर में गिरावट आई है। पिछले वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही यानी अक्टूबर से दिसंबर 2022 के दौरान भारत की आर्थिक वृद्धि दर महज 4.4 फीसदी रही थी। यह तीन तिमाहियों में अर्थव्यवस्था के बढ़ने की सबसे कम रफ्तार थी। आख़िरी तिमाही की रिपोर्ट अभी तक नहीं आई है। जीडीपी वृद्धि दर में गिरावट आने के मुख्य कारणों में विनिर्माण में नरमी आना और निजी उपभोग व ख़र्च में गिरावट आना रहा।तीसरी तिमाही के आँकड़े आने से पहले अर्थशास्त्रियों के एक सर्वेक्षण में सख्त मौद्रिक नीति और ऊंची ब्याज दरों के मद्देनज़र अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर कम रहने का अनुमान जताया गया था। वैसे, एक बड़ी चिंता महंगाई की भी है जो भस्मासुर की तरह मुँह बाए खड़ा है। महंगाई ने फिर ख़तरे की घंटी बजा दी है। जनवरी में खुदरा महंगाई का आँकड़ा एक बार फिर रिज़र्व बैंक की पहुँच से बाहर छलांग लगा गया है। दिसंबर में बारह महीने में सबसे कम यानी 5.72% पर पहुंचने के बाद जनवरी में खुदरा महंगाई की रफ्तार फिर उछलकर 6.52% हो गई है। पिछले साल 2022 के शुरुआती दस महीने यह आंकड़ा रिजर्व बैंक की बर्दाश्त की हद यानी दो से छह परसेंट के दायरे से बाहर ही रहा और सिर्फ नवंबर-दिसंबर में काबू में आता दिखाई पड़ा था। जनवरी में फिर इसका यह हद पार कर जाना फिक्र की बात है।