सिविल सर्विस परीक्षा: इस बेहद मुश्किल परीक्षा में कामयाब होने का राज़ क्या है?
रणघोष खास. सौतिक बिस्वास
गामिनी सिंगला ने 2021 की सिविल सर्विसेज परीक्षा में तीसरा स्थान हासिल किया था.गामिनी सिंगला पिछले तीन साल से अपने दोस्तों से दूर थीं. इन सालों में न तो वो छुट्टियों पर गई थीं और न परिवार में होने वाली मुलाकातों या समारोहों में शामिल हुई थीं.गामिनी टेक-अवे से खाना मंगाना भी बंद कर चुकी थीं. न तो वो सिनेमा जाती थीं और न सोशल मीडिया पर सक्रिय थीं.उनका रूटीन तय था. चंडीगढ़ में अपने पैतृक घर पर वह तड़के उठ जातीं और टेक्स्टबुक खंगालने लगतीं. एक दिन में वो कम से कम दस घंटे पढ़ाई में लगाती थीं.उनका पूरा ध्यान तैयारी पर था. वो मॉक टेस्ट देती थीं. कामयाब कैंडिडेट्स के यू-ट्यूब वीडियो देखती थीं. अख़बार और सेल्फ-हेल्प बुक में डूबी रहती थीं. उस दौरान उनके माता-पिता और भाई भी उनका साथ देते थे.वो कहती हैं,”अकेलापन आपका साथी बन जाता है. लेकिन ये अकेलापन आपको आगे बढ़ने में मदद करता है.”दरअसल गामिनी भारतीय सिविल सर्विसेज परीक्षा पास करने की तैयारी में लगी थीं, जो दुनिया की सबसे कठिन परीक्षाओं में एक मानी जाती है.शायद इसकी तुलना सिर्फ चीन की गाओकाओ परीक्षा से की जा सकती है, जो चीन में कॉलेज में दाखिला देने के लिए ली जाती है.भारत में सिविल सर्विस परीक्षा संघ लोक सेवा आयोग यानी यूपीएससी कराता है. इसके ज़रिए देश की प्रशासनिक, पुलिस और कुछ दूसरी सेवाओं के लिए प्रतिभाशाली युवक-युवितयों का चयन किया जाता है.हर साल तीन चरणों में होने वाली इस बेहद कठिन परीक्षा में लगभग दस लाख कैंडिडेट बैठते हैं. लेकिन इनमें से एक फ़ीसदी से भी कम दूसरे चरण यानी लिखित परीक्षा के लिए क्वालिफाई कर पाते हैं.
सिविल सर्विसेज परीक्षा में सफलता की दर काफी कम
सिंगला 2021 की परीक्षा में बैठी थीं और उस साल सफलता की दर पिछले आठ साल के दौरान सबसे कम थी. सिर्फ़ 1800 उम्मीदवार इंटरव्यू तक पहुंच पाए. आख़िर में 865 पुरुषों और महिलाओं का ही चयन हो सका.गामिनी सिंगला परीक्षा में तीसरे स्थान पर आई थीं. उनके साथ और दो और महिला उम्मीदवार थीं. सिविल सर्विस परीक्षा के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था.वो भारत की सबसे इलीट सेवा भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए चुनी गईं. भारतीय प्रशासनिक सेवा के लोग ही देश के 766 ज़िलों में कलेक्टर बन कर प्रशासन चलाते हैं.इसके साथ ही ये राज्य सरकारों के सीनियर अधिकारी नियुक्त कर दिए जाते हैं और सरकारी कंपनियों में भी ऊंचे पदों पर नियुक्त किया जाता है. सफल कैंडिडेट्स को उनकी मांग के मुताबिक़ राज्य दिए जाते हैं.
24 साल की गामिनी सिंगला कहती हैं, ”जिस दिन परीक्षा का रिजल्ट आया उस दिन मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे ऊपर से कोई भारी बोझ हट गया है. पहले मैं मंदिर गई और फिर नाचने लगी.”लंदन यूनिवर्सिटी में स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज के समाज विज्ञानी संजय श्रीवास्तव का कहना है कि भारत में अच्छी प्राइवेट नौकरियां कम हैं. लोगों की हर दिन की ज़िंदगी में सरकार का काफ़ी दख़ल है.ऐसे में सिविल सर्विसेज की नौकरियां काफ़ी लुभावनी और प्रभावशाली मानी जाती हैं. सरकारी नौकरी के साथ कई सुविधाएं भी मिलती हैं. जैसे लोन, रेंटल सब्सिडी और सस्ती यात्राओं की सुविधा.
श्रीवास्तव कहते हैं, ”सिविल सर्विस छोटे शहरों के लोगों को भी काफ़ी लुभाती है. प्राइवेट सेक्टर में घुसना आसान हो सकता है लेकिन इसमें आगे बढ़ने के लिए सांस्कृतिक पूंजी की ज़रूरत होती है. दूसरी ओर सिविल सर्विस में शामिल हो जाना ही अपने आप में एक सांस्कृतिक पूंजी है.”
सिविल सर्विस में जाने के इच्छुक अधिकतर कैंडिडेट की तरह ही पूजा भी इंजीनियरिंग ग्रेजुएट हैं. उन्होंने बैंकिंग की दिग्गज कंपनी जेपी मॉर्गन चेज़ में भी काम किया है. लेकिन इस तरह के अधिकतर कैंडिडेट्स की तरह उनका भी एक मात्र लक्ष्य ब्यूरोक्रेट बनना था.
सिंगला अपना ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने के लिए स्थानीय सरकारी दफ्तर गई थीं. वहां उन्होंने एक ब्यूरोक्रेट को काम करते देखा और काफ़ी प्रभावित हुईं. उन्होंने उनसे मिलने का समय मांगा ताकि इस परीक्षा की तैयारी के लिए मार्गदर्शन ले सकें.वह कहती हैं,”सिविल सर्विसेज की तैयारी लंबा समय लेती है और दांव पर बहुत कुछ लगा होता है.”गामिनी सिंगला की कहानी लगातार टिके रहकर तैयारी करने की है. अपनी तैयारी के सिलसिले में सिंगला उस उम्र में किसी साध्वी की तरह तपस्या कर रही थीं, जिसमें ज़्यादातर लोगों को ज़िंदगी के मायने भी पता नहीं होते.सिंगला के हालात आपको भारत की कठोर परीक्षा पद्धति की एक झलक देते हैं.अंतहीन पढ़ाई, परिवार वालों का लगे रहना, समय बचाने और किसी भी भटकाव से बचने की कोशिश. ये सब इस परीक्षा को पास करने की रणनीति के तौर पर अपनाए जाते हैं. इस दौरान कैंडिडेट्स दुनिया से लगभग कट जाते हैं.सिंगला कहती हैं,” तैयारी के दौरान कई बार हताशा और थकान के पल आते हैं. वास्तव में ये मानसिक रूप से बेहद थकाने वाली होती है. ‘सिंगला ने किसी मैराथन ट्रेनिंग प्लान में अपनाई जाने वाली रणनीति जैसी ही तैयारी की. अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखने और रेस में आख़िरी वक़्त तक बने रहने के लिए उन्होंने अपना भोजन ही बदल दिया. उन्होंने फल, सलाद, ड्राई फ्रूट्स और दलिया खाना शुरू किया.
वक़्त बरबाद न हो इसलिए वह बाहर व्यायाम के लिए जाने की बजाय कमरे में ही हर तीन घंटे के बाद 200-300 बार उछलने लगीं. खाली समय का भी बेहद सूझबूझ से इस्तेमाल होता था. इस दैरान वो सेल्फ-हेल्प बुक पढ़ती थीं ताकि उन्हें प्रेरणा मिलती रही.अपनी काबिलियत जांचने के लिए वो ऑनलाइन टेस्ट में बैठीं. जैसे दो घंटे में सामान्य ज्ञान के 100 सवालों के जवाब देने की तैयारी करवाने वाले मॉक टेस्ट.वो कहती हैं, ”मैंने जब पिछले कुछ सालों के टॉपर्स के वीडियो इंटरव्यू देखे तो मुझे लगा कि हर किसी को सिर्फ़ 35 से 40 सवालों के जवाब ही पता थे. बाक़ी के जवाब उन्होंने अपने अनुमान से दिए थे.”
परिवार का साथ
चूंकि सिविल सर्विस की एक अहम परीक्षा ठंड के दिनों में होती है इसलिए सिंगला ने कंफर्ट जोन से बाहर निकल बिल्कुल ठंड में लिखने का अभ्यास किया. मॉक टेस्ट के लिए वह बिल्कुल ठंडे और सूरज की रोशनी से दूर कमरे में बैठती थीं. उन्होंने अलग-अलग तरह के तीन जैकेटों का इस्तेमाल किया और जिसमें आराम महसूस कर रही थीं, उसे ही पहना.वो कहती हैं, ”मैंने सुना था कि ख़राब फिटिंग वाले हैवी जैकेट पहने होने की वजह से कइयों को जवाब लिखने में दिक़्क़त महसूस हुई थी. ”सिंगला इन बारीकियों का ज़िक्र करते हुए कहती हैं, ”आप हर तरह से अपना सर्वोत्तम देने की कोशिश करते हैं. ”सिंगला की इस मैराथन में उनका परिवार भी शामिल हो गया. उनके माता-पिता दोनों सरकारी डॉक्टर हैं. वो उनकी तैयारी में उत्साह से शामिल हुए.उनके पिता हर दिन तीन अख़बार पढ़ते थे. अखबार पढ़ने से 80 फ़ीसदी तक इस परीक्षा की तैयारी हो जाती है. वो अहम ख़बरों पर निशान लगा दिया करते थे ताकि उनकी बेटी को करंट अफेयर्स की तैयारी में ज़्यादा वक़्त न लगाना पड़े. उनके भाई ने मॉक टेस्ट में उनकी मदद की. उनके दादा-दादी ने सफलता के लिए दुआएं मांगीं.
सिंगला की तैयारी में कोई बाधा ना आए. कोई उन्हें डिस्टर्ब ना करे, इसका पूरा ध्यान रखा गया. जब उनकी बिल्डिंग की दूसरी ओर दो मकानों में कंस्ट्रक्शन का काम कर चल रहा था उनके कमरे में रोशनी आनी बंद हो गई. तब उनके परिवार ने छत पर बना अपना कमरा तुड़वा दिया ताकि उनकी लिए शांत और रोशनी वाली जगह बन सके.रिश्तेदार ये न पूछें कि उनकी बेटी परिवार की मुलाकातों और समारोह में क्यों नहीं आती है, इसके लिए उनकी मां ने लोगों से मिलना-जुलना छोड़ दिया. पारिवारिक समारोहों में ही उन्होंने जाना छोड़ दिया ताकि सिंगला अकेलापन ना महसूस करें. परिवार के लोग ज़्यादातर वक़्त सिंगला के साथ रहने की कोशिश करते थे.सिंगला अपने परिवार के सदस्यों के बारे में कहती हैं, ”वो इस तैयारी में मेरे सहयात्री हैं. वो भी उस रास्ते पर चले, जिस पर मैं चली. परीक्षा की तैयारी पूरे परिवार का प्रयास था. ”सिंगला भारत की सुविधा संपन्न मिडिल क्लास से आती हैं, जिससे ब्योक्रेसी में शामिल होने के लिए कम अड़चनों का सामना करना पड़ता है लेकिन इस परीक्षा ने वंचित पृष्ठभूमि वाले लोगों को भी सामाजिक सीढ़ी चढ़ने में मदद की है.
सामाजिक सीढ़ी चढ़ने का ज़रिया
सरकारी टीवी पर करंट अफेयर्स का प्रोग्राम बना चुके फ्रैंक रोशन परेरा कहते हैं कि इस तरह की पृष्ठभूमि के कई लोग हैं जिनके ब्यूरोक्रेसी में जाने के सपनों को पूरा करने के लिए उनके परिवारों ने परिवार की ज़मीन और गहने बेचे. सिविल सर्विस परीक्षा देने वालों के बीच परेरा का ये प्रोग्राम ख़ासा पसंद किया जाता है.
परेरा कहते हैं कि आजकल सिविल सर्विसेज में आने के इच्छुक ज़्यादातर उम्मीदवार भारत के छोटे शहरों और गांवों से आते हैं. उन्होंने सिविल सर्विस ज्वॉइन करने वाले एक ऐसे उम्मीदवार के बारे में बताया जिनके पिता हाथ से मैला ढोने का काम करते थे. इस उम्मीदवार ने घर में ही पढ़ाई और परीक्षा पास की. इस शख्स ने प्रतिष्ठित भारतीय विदेश सेवा ज्वॉइन की.परेरा कहते हैं, ” मैं ऐसे उम्मीदवारों को भी जानता हूं जो कई बार इस परीक्षा में फेल होने के बाद भी लगातार इसमें बैठे. कई लोगों ने सोलह साल तक तैयारी की.”उम्मीदवारों के 32 साल की उम्र होने तक छह बार परीक्षा में बैठने का मौका मिलता है. कुछ वंचित वर्ग के लोगों पर ये उम्र सीमा लागू नहीं होती. 21 साल की उम्र में परीक्षा देने की पात्रता बन जाती है.
सिविल सर्विसेज परीक्षा की तैयारी में जुटे उम्मीदवार
सिंगला कहती हैं कि भारत जैसे विशाल और जटिल देश में सिविल सर्वेंट बनकर ही उन्हें लोगों की ज़िंदगी में असली बदलाव लाने का मौक़ा मिल पाएगा.
उन्होंने सिविल सर्विस परीक्षा पास करने के तरीक़े सुझाने वाली किताब भी लिखी है. इसमें एक अध्याय है- ‘बलिदान कैसे दें’.
एक और अध्याय उन त्रासदियों के बारे में है जिन पर आपका काबू नहीं है. किताब में परिवार के दबाव से मुकाबला करने के बारे भी एक अध्याय है.
सिंगला ने मुझसे कहा कि वो कभी-कभी ये सोचती हैं कि आराम करने का तरीका भूल चुकी हैं. फिलहाल वह पूरे देश में यात्रा कर रही हैं और अपनी ट्रेनिंग का आनंद ले रही हैं.वह अपनी पहली तैनाती से पहले की तैयारियों में जुटी हैं. वो कहती हैं, ”ज़िंदगी फिर बेहद व्यस्त हो जाएगी और फुर्सत के पल भी मुश्किल से ही मिलेंगे.”
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