अब जैसे जैसे मेरी विचार-शक्ति इस दैवी कुहरे को चीर रही थी, मेरा हृदय छाती से बाहर निकलने को उछल रहा था

होई जबै द्वै तनहुँ इक


जब मौत भी नहीं बचाती है ( अध्याय 20)


Babuरणघोष खास. बाबू गौतम 

वह जानता था कि मेरे धीरज का बाँध टूट रहा है। इसलिए उसने कहानी का आगे का सिरा पकड़ा। कुतूहल मेरे चेहरे पर लिखा था, पर मैं चुपचाप सुनता रहा।

“मैं जब गागडिया से मुड़ा, मुझे लगा धरती यहाँ से शुरू होती है और मेरे घर पर ख़त्म। सूरज छिपने तक मुझे पूरी धरा को पाट कर बावरी तक पहुँचना है। बावरी की दादी की कही बात- जिब कोई ना आवै तो मौत ही बचावै- मेरे दिमाग़ में कौंध रही थी। मुझे बावरी को अकेले घर पर छोड़ कर नहीं आना चाहिए था। मैं नास्तिक हूँ, फिर भी जाने क्यों मुझे लग रहा था, मनुष्य और देवताओं ने मिलकर एक सीधी सच्ची सांसरणी को हराने के लिए षड्यंत्र रचा है। आठ साल में पहली बार वे मुझे बावरी से अलग कर पाने में सफल हो गये हैं।

पूरे दिन का घटनाक्रम बार बार अलग अलग गति से मेरे सिर में घूम रहा था।

उस दिन बावरी ने दरवाज़े की झाँकल में से देखा, और बिना खोले ही संतुलित कदमों से मेरे पास आई थी।

“कोई गागड़िया से आयो है। थमी बात करो।”

मैं जानता था, गागड़िया अब बावरी के लिए किसी दूसरे लोक की तरह था, जहाँ वह कभी लौटकर नहीं जाएगी।

काली पगड़ी बाँधे, और हाथ में सफेद चावल लिए हुए, इस सांसर ने मुझे बताया कि बावरी का बाप कपड़े लत्ते छोड़ गया है। मतलब इस दुनिया से चला गया है।  मृत्यु होने को सांसरियों में कपड़े-लत्ते छोड़ना कहा जाता है।

उसने मेरी जिज्ञासा आँकते हुए मेरी तरफ देखा। मैं भाव विहीन बना रहा।

यह ईसर और गौरा के इस लोक से जाने की कहानी से जुड़ी बात है। मगर इस समय मैं तुम्हारी अधीरता समझ रहा हूँ।

मैने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। उसने लंबी साँस ली।

उस सांसर ने मुझे बताया, मेरा, और हो सके तो सीताबाई का भी, अभी गागड़िया पहुँचना ज़रूरी है। जब तक दामाद मुँह में घी डालकर ससुर को माफ़ नहीं कर देगा, उसे मुक्ति नहीं मिलेगी। मैं सब सुनकर बावरी के पास गया। मैं सांसरियों के इस अजीब रिवाज के बारे में सोच रहा था। हिंदुओं में तो दामाद को अंतिम संस्कार से दूर रखा जाता है, मैं जानता था। और यह माफ़ करना, यह क्या है? मैंने अनुमान लगाया यह ज़रूर बिहाने से पहले अपनी बेटी से देह-व्यापार करवाने के गुनाह की माफी ही होगी।

मैंने जब बावरी को उसकी बाप की मौत के बारे में बताया तो वह विरक्त थी। मुँह में घी डालकर माफी माँगने की बात पर वह भड़क गयी।

” थारै से कइयाँ की माफी? ना.. कतईं ना।”

उसने मुझे से साफ कह दिया कि वह गागड़िया नहीं जाएगी। गागड़िया से नाता तोड़कर वह यहाँ आई है। हाँ, उसने मुझ से कहा कि आप चाहे आज जाओ या मेरे मरने के बाद। पर एक बार जाकर ज़रूर पता लगाना कि सांसर औरतों को शाप से मुक्ति मिली या नहीं। मैं जानता था वह बस इसी मक़सद के लिए जी रही थी। आठ साल तक निस्संतान रह कर उसे विश्वास हो गया था कि देवताओं के राजा ने उसे दंडित किया है। पर वह उसका न्याय भी देखना चाहती थी।

यह सोच कर कि अगर सांसरियों का यह कुत्सित रिवाज़ ख़त्म हो गया तो बावरी को विजयी होने की खुशी मिलेगी, वह संतान ना होने का दुख भूल जाएगी, मेरा विश्वास करो, बस इसी उमंग में मैं अपने होश गवाँ बैठा था। सोचा बस दिन भर की ही तो बात है । रात होने से पहले मैं वापस पहुँच जाऊँगा।

अब जैसे जैसे मेरी विचार-शक्ति इस दैवी कुहरे को चीर रही थी, मेरा हृदय छाती से बाहर निकलने को उछल रहा था। वह सांसर नीमराना पहुँचते ही, अर्थी का सामान जुटाने की कह कर मुझ से अलग हो गया था। यह सब एक साज़िश थी।

गागड़िया पहुँचते ही, जैसे ही मैंने बूढ़े को हुक्का पीते हुए देखा, मेरी आँखों के आगे अंधेरा छा गया। मैंने पानी तक नहीं पिया।

बूढ़ा बस इतना ही कह पाया था – ‘छोरी नै तो अपनी हठ पूरी कर ली कंवर जी, पर सांसर तो दुनिया मा सै उठगे। इंदर जी ने धरती पर सै उठा दिए सांसर….  आज आठ साल होगे।’

मैं उस सुनसान ढाणी को देख कर बूढ़े की बात समझ गया था, पर मेरा दिमाग़ साथ नहीं दे रहा था। मुझे आभास हो गया था कि बावरी अपनी लड़ाई में हारी नहीं है। उसने देवताओं की गर्दन नीची कर दी है, और ब्रह्मा को विवश कर दिया है। पर क्या आज शिव उसको बचाएँगे? क्या उसके पुरखे ईसर और गौरा आज उसकी तरफ बढ़ रही षड्यंत्रकारी  ताकतों को रोक पाएँगे?

मैंने अपने आप को याद दिलाया, मैं देव या दैव कुछ नहीं मानता हूँ। आज मेरी पत्नी, जो मेरी हर साँस में बसी है, संकट में है। भाड़ में जाए इंद्र का शाप और सांसरों के रिवाज़। मुझे सूरज ढलने से पहले अपने गाँव पहुँचना चाहिए। मैंने सूरज की तरफ देखा। एक विश्वास सा है सूरज पर, अन्यथा कितने पाप सूरज की मौजूदगी में होते हैं। मैं अपने मन को कहीं भी नहीं टिका पा रहा था।

अचानक मुझे पिछले दिनों आए, उस सपने की याद हो आई, जिसे मैं भूल गया था। ‘मुझे वे दोनों दिखाई दिए थे, उनकी आँखों में खून रिस रहा था, जैसे किसी ने चाकू भौंक दिया था। उनके शरीर पर भी आँखें ही आँखें थी, फूटी हुई। जिनमें से खून रिस रहा था। वे हाथ जोड़ कर मुझ से कह रहे थे- हमें माफ़ कर दो।’ मैंने अपने बालों को दोनों हाथों से ज़ोर से खींचा।

उथल पुथल साँसों के साथ मैं गाँव पहुँचा। सूरज डूब गया था। अंधेरा होने में बस आठ मिनट बाकी थे। मेरे घर का दरवाज़ा चौपट था। मौत की खामोशी पसरी थी। बाहर गायें रंभा रही थी जैसे कोई हिंस्र जानवर देखा था उन निरीह पशुओं ने।

बावरी कहीं भी नहीं थी। मैं ज़ोर से चीखा। मेरी आवाज़ नहीं निकली, मगर मेरी चीख की गूँज मुझे चारों दिशाओं में सुनाई दे रही थी।

मैं पैर घसीटता हुआ कमरे में गया। नहीं, मौत ने भी बावरी को नहीं बचाया था।”

पहली बार उस प्राणी के चेहरे से मुस्कान गायब हो गयी थी।

क्रमश: जारी ..

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