आइए समझे मेडिकल पढ़ने यूक्रेन क्यों जाते हैं बड़ी संख्या में भारतीय छात्र?

रणघोष खास. एक छात्र की कलम से


यूक्रेन में रूस के हमले के बाद से वहाँ फँसे भारतीय छात्रों में बेचैनी है। यूक्रेन में फँसे छात्रों के जो वीडियो सोशल मीडिया पर आ रहे हैं उसमें वे डरे-सहमे से नज़र आ रहे हैं और बार-बार सरकार से अपील कर रहे हैं कि उन्हें सुरक्षित वापस देश लाया जाए। ऐसे छात्र राजस्थान से लेकर यूपी, पंजाब, हरियाणा, बिहार, मध्य प्रदेश जैसे कई राज्यों से है। ऐसे भारतीय छात्रों की संख्या 18000 से भी ज़्यादा है जो यूक्रेन में पढ़ते हैं। तो सवाल है कि आख़िर इतनी बड़ी संख्या में छात्र पढ़ने यूक्रेन क्यों गए?क्या वजह है कि अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, फ्रांस, जर्मनी जैसे देशों के होते हुए उन्होंने यूक्रेन जैसे देश का रूख किया?छात्रों के यूक्रेन जाने की वजह जानने से पहले यह जान लें कि मौजूदा हालात क्या हैं। फ़िलहाल यूक्रेन पर रूस ने हमला कर दिया है। कई शहरों में बमबारी हो रही है। यूक्रेन का हवाई मार्ग बंद कर दिया गया है। इस वजह से क़रीब 20 हज़ार भारतीय वहाँ फँसे हुए हैं।

यूक्रेन में शिक्षा और विज्ञान मंत्रालय के अनुसार यूक्रेन में भारत के 18,095 से अधिक छात्र हैं। यानी जिन कुल क़रीब 20 हज़ार भारतीयों को वहाँ फँसा हुआ बताया जा रहा है उसमें से अधिकतर संख्या छात्रों की ही है।

यूक्रेन में पढ़ाई सस्ती?

यूक्रेन में अधिकांश भारतीय छात्र मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं। इसका सबसे प्रमुख कारण तो यूक्रेन में निजी मेडिकल कॉलेजों की ट्यूशन फीस भारत के कॉलेजों की तुलना में काफी सस्ती होना है। जिस एमबीबीएस कोर्स की पढ़ाई के लिए भारत में निजी मेडिकल कॉलेजों में सालाना 10-12 लाख रुपये फीस है वहीं यूक्रेन में सिर्फ़ 4-5 लाख रुपये की फीस है। यानी कुल मिलाकर साढ़े चार साल के कोर्स के लिए भारत में जहाँ क़रीब 50 लाख रुपये की फीस चुकानी होती है वहीं यूक्रेन में 16-20 लाख रुपये की ही फीस चुकानी पड़ती है। हालाँकि यही एमबीबीएस कोर्स भारत के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में क़रीब 8-10 लाख रुपये में पूरा हो जाता है। लेकिन इसमें एक दिक्कत है।

भारत में सीटें सीमित

भारत में सरकारी मेडिकल कॉलेजों में फीस कम तो है, लेकिन सीटें उतनी नहीं हैं। इसलिए मेडिकल करने के इच्छुक सभी छात्रों को एडमिशन नहीं मिल पाता है। और जो छात्र निजी मेडिकल कॉलेज में पढ़ना चाहते हैं उनके पास यदि क़रीब 50 लाख रुपये फीस चुकाने के लिए नहीं हो तो दूसरे देशों में सस्ते में कोर्स करने का ही रास्ता बचता है।

तो क्या यूक्रेन में एडमिशन के लिए कोई पैमाना नहीं?

यूक्रेन में भी एमबीबीएस में एडमिशन के लिए न्यूनतम योग्यता है। भारत में एनईईटी यानी नीट में सबसे ज़्यादा पर्सेंटाइल स्कोर करने वाले ही सरकारी मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन पा सकते हैं, क्योंकि यहाँ प्रवेश के लिए गला काट प्रतिस्पर्धा है।लेकिन यूक्रेन में एमबीबीएस में प्रवेश के लिए इसी एनईईटी में सिर्फ़ क्वालिफाई करना ही काफी है। यानी यदि भारत में आप नीट पास करने में सफल होते हैं तो यूक्रेन में इसके आधार पर एडमिशन हो जाता है और शायद ही कहीं ज़्यादा स्कोर का क्राइटेरिया है।

यूक्रेन की डिग्री मान्य है?

यूक्रेन के कॉलेजों को विश्व स्वास्थ्य परिषद द्वारा भी मान्यता प्राप्त है। इसके अलावा, यूक्रेन की मेडिकल डिग्री को यूरोपियन काउंसिल ऑफ मेडिसिन और यूनाइटेड किंगडम की जनरल मेडिकल काउंसिल द्वारा भी मान्यता प्राप्त है। यूक्रेन के मेडिकल कॉलेजी की डिग्री भारत में भी मान्य हैं क्योंकि भारतीय चिकित्सा परिषद उन्हें मान्यता देती है। हालाँकि, जिस तरह से कई देशों ने यह व्यवस्था की है कि विदेशों में पढ़े मेडिकल के छात्रों को अपने देश में प्रैक्टिस करने से पहले परीक्षा ली जाती है वैसी ही परीक्षा भारत में भी उन मेडिकल छात्रों को देनी होती है।

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