आप हेल्दी हैं इस भ्रम में न रहें, प्रदूषण से हो सकती हैं ये खतरनाक बीमारियां, एम्स के पूर्व चीफ ने चेताया

दिल्ली-एनसीआर में गहराता वायु प्रदूषण का संकट स्वस्थ लोगों में भी अस्थमा के रोगियों जैसी समस्याओं को पैदा करने का कारण बन रहा है. देश के टॉप सांस रोग विशेषज्ञ (Pulmonologist) ने News18 को बताया कि प्रदूषकों का लगातार हमला स्वस्थ व्यक्तियों के फेफड़ों को भी अस्थमा रोगियों के फेफड़ों जैसा कमजोर बना रहा है. नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के पूर्व निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया के मुताबिक कुछ ऐसा उपाय खोजना जरूरी है, जो लगातार युवाओं और बच्चों के स्वास्थ्य की रक्षा करे. दिल्ली की आबादी के एक बड़े हिस्से में सांस संबंधी बीमारियां पिछले कुछ समय से लगातार बढ़ रही हैं.

पिछले हफ्ते से दिल्ली के लोगों को खतरनाक और दमघोंटू धुंध का सामना करना पड़ा है. वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 500 अंक को पार कर गया है और “गंभीर” और “गंभीर-प्लस” श्रेणियों के आसपास मंडराता रहा है. बेमौसम बारिश से हवा की गुणवत्ता और दृश्यता में सुधार होने से शुक्रवार को शहर को बड़ी राहत मिली. गुलेरिया ने कहा कि ‘साल के लगभग 60 फीसदी दिनों में AQI का स्तर असंतोषजनक या खराब होता है. यह सिर्फ कुछ दिन या ये महीने नहीं हैं, जब हवा की गुणवत्ता खराब होती है. लेकिन कोई व्यवहारिक समाधान खोजने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई है. यह हवा हम पर तत्काल तेजी से असर भी करेगी और लंबे वक्त में दीर्घकालिक बीमारियां भी देगी.’

कम उम्र के लोगों में बढ़ी सांस की दिक्कत
अब इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनल मेडिसिन एंड रेस्पिरेटरी एंड स्लीप मेडिसिन के अध्यक्ष गुलेरिया ने News18 को बताया कि वह सीने में जकड़न और लगातार खांसी की शिकायत करने वाले स्वस्थ लोगों की लगातार बढ़ी संख्या को देख रहे हैं. प्रदूषकों के निरंतर संपर्क ने एक स्वस्थ व्यक्ति के फेफड़ों को भी दमा से पीड़ित इंसान के फेफड़ों के समान बना दिया है. उन्होंने कहा कि अधिक चिंताजनक बात यह है कि ये लक्षण बहुत कम उम्र के समूहों में देखे जा रहे हैं. जिन छात्रों को कभी भी सांस संबंधी बीमारी का कोई इतिहास नहीं रहा है या जो युवा नौकरी के लिए दिल्ली-एनसीआर में चले आए हैं, उन्हें रात में सांस लेने में कठिनाई, लगातार खांसी आदि का सामना करना पड़ रहा है.

सांस के पुराने मरीजों की हालत खराब
इस बीच, उन लोगों में लक्षण बदतर हो गए हैं जो पहले से ही सांस संबंधी समस्याओं से पीड़ित हैं. पुराने सांस के मरीज सांस फूलने, ऑक्सीजन का स्तर घटने और नेबुलाइजेशन की जरूरत के साथ अस्पताल आ रहे हैं. जबकि कुछ का इलाज आपातकालीन विभागों में किया जा रहा है, कुछ को आईसीयू में भी भर्ती करने की जरूरत है. गुलेरिया ने कहा कि अधिक से अधिक आंकड़ों से साबित हुआ है कि इस तरह के एक्यूआई से हृदय रोग, स्ट्रोक, मनोभ्रंश और मधुमेह होने के जोखिम कारक बढ़ जाते हैं. अध्ययनों से यह भी साबित हुआ है कि पीएम 2.5 रक्त वाहिकाओं में सूजन का कारण बनता है.

एयर प्यूरीफायर के असरदार होने का ठोस डेटा नहीं
गुलेरिया ने कहा कि एयर प्यूरीफायर के असरदार होने वाला कोई ठोस डेटा नहीं है, लेकिन कुछ डेटा साबित करते हैं कि इसका उपयोग कुछ शर्तों के तहत किया जा सकता है. इसी तरह उन्होंने कहा कि एक्यूआई के ‘गंभीर’ और बदतर स्तर के दौरान मास्क पहनने से सुरक्षा नहीं मिल सकती है. मगर ऐसा किया जा सकता है, खासकर उन लोगों के लिए जो पहले से ही सांस के रोगों के लक्षणों का सामना कर रहे हैं. 90 के दशक के अंत में जब हमें आंखों में जलन और घुटन महसूस होने लगी, तो सीएनजी को एक समाधान के रूप में पेश किया गया. कुछ समय के लिए स्थिति में सुधार हुआ था. हमें एक बार फिर ऐसे ही उपायों की जरूरत है जो बड़े और स्थायी हों. गुलेरिया ने कहा कि नीति निर्माताओं को तत्काल आधार पर एक अच्छी कार्यान्वयन रणनीति का मसौदा तैयार करते हुए वायु प्रदूषण के स्रोत को कम करने पर काम करने की जरूरत है.

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