कितना अजीब है हमारा सौरमंडल, क्यों नहीं खोजा जा सका ऐसा ग्रह तंत्र?

रणघोष खास: विश्वभर से


साल 1992 में हमारे सौरमंडल के बाहर पहले बार दो ग्रहों की खोज की गई तो किसी तारे का चक्कर लगा रहे थे. उसके बाद से हमारी मिल्कीवे गैलेकसी में ही हजारों ग्रहीय तंत्रों की खोज हो चुकी है. ये सभी ग्रहीय तंत्र हमारे सौरमंडल से बहुत ही अलग हैं. ऐसे में सवाल उठते रहे हैं कि क्या वास्तव में ही हमारे सौरमंडल की तरह की कोई ग्रहीय तंत्र है ही नहीं. नए विश्लेषण में शोधकर्ताओं ने बताया है कि हमें अब तक हमारी तरह का ग्रहीय तंत्र क्यों नहीं मिला है और आगे मिलने की क्या कोई संभावना भी है या नहीं. इसका गहरा संबंध हमारे बाह्यग्रहों के खोजने की तकनीकों से भी है.

हैरानी की बात क्यों

कई लोगों को यह बात हैरान करती है कि जब  हमारे सौरमंडल में इतनी ज्यादा विविधता और विशेषताएं हैं तो  उसके जैसा कोई दूसरा ग्रहीय तंत्र कैसे मिल सकता है. वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर केवल संख्या के लिहाज से देखा जाए तो स्थिति वाकई चिंता वाली लगती है. खोजे गए बाह्यग्रहों में से बहुत सारे ऐसे नहीं हैं जहां जीवन की संभावना दिखे, बल्कि ऐसे भी नहीं हैं जो हमारे सौरंमंडल के बाकी ग्रहों की तरह भी हों.

कुछ ही तरह के खास ग्रह

अधिकंश बाह्यग्रह अपने तारे के बहुत पास हैं जिससे उनका तापमान बहुत ही ज्यादा है इसलिए वहां जीवन की संभावना की उम्मीद करना ही बेकार है. इसके लिए वैज्ञानिकों ने पृथ्वी की विशेषताओं का समूह बनाया है जिनके होने पर बाह्यग्रहों को आवासयोग्य ग्रह या आवासीय ग्रह की श्रेणी में रखा जा सकता है. इसमें ग्रह का पथरीला होना और उसके तारे से दूरी का एक निश्चित दायरा प्रमुख है.

उम्मीदों से बहुत ही अलग

हमारे सौरमंडल के बाहर का ब्रह्माण्ड हमारी उम्मीदों से बहुत ही अलग है. शुरु में हमारे मन में यही छवि थी कि सौरमंडल के बाहर जो ग्रहीय तंत्र होंगे वे हमारे सौरमंडल की ही तरह होंगे जिसमें पास के ग्रह छोटे और पथरीले और दूर के ग्रह विशालकाय और गैसीय होंगे. लेकिन बाह्यग्रहों का अवलोकन आसान काम नहीं होता है.हमारे सौरमंडल की तरह सुदूर ग्रहीय तंत्र का अवलोकन कई साल ले लेगा.

किसी तरह से अपवाद भी नहीं

लेकिन अब तक खोजे गए बाह्यग्रह उम्मीद से बहुत ही अलग पाए गए. इसमें से बहुत सारे ग्रह गैसीय, गुरु ग्रह से दोगुने (और उससे कुछ ज्यादा भी) आकार के, अपने तारे के बहुत पास चक्कर लगाने वाले देखे गए हैं, जिनका एक साक करीब 4-5 दिन होता है. वहीं इनके वायुमंडल का ही तापमान एक हजार डिग्री सेल्सियस होता है. खगोलविदों ने पाया है कि इस तरह के  गर्म गुरु ग्रह कोई अपवाद वाले बाह्यग्रह नहीं हैं

और ज्यादा विविधता

सच तो यह है कि अब हम जानते है कि गैलेक्सी में और भी ज्यादा विविधता है यह मानना कतई सही नहीं होगा कि मिल्की वे गैलेक्सी में इतना ही या ऐसा ही कुछ है. शायद मामला हमारी क्षमताओं का ज्यादा है. इसलिए फिलहाल हमारे जैसे सौरमंडल खोज पाना तकनीकी तौर पर हमारे लिए संभव नहीं है.

कैसे होती है खोज

किसी सुदूर ग्रह की खोज करना आसान नहीं है क्योंकि उनकी खुद की कोई रोशनी नहीं होती है. अपने तारे का चक्कर लगाने के दौरान एक समय वे हमारे और अपने तारे की रोशनी के बीच में आ जाते हैं जिससे तारे की चमक में फर्क आ जाता है. इसी के अध्ययन से वैज्ञानिक बाह्यग्रह की खोज करते हैं जिसे वे ट्रांजिट तकनीक कहते है. इससे तारे के पास के ग्रह आसानी से पकड़ में आते हैं. वहीं रेडियल वेलोसिटी पद्धति में तारे की डगमगाहट से उस पर ग्रह के प्रभाव के बारे में पता चलता है. दोनों पद्धतियों में बहुत बारीक अवलोकन की जरूरत पड़ती है

साफ है कि अभी हमारे पास ऐसी कोई तकनीक नहीं हैं जिससे छोटे ग्रह नहीं खोजे जा पाते हैं. हां कुछ पृथ्वी से थोड़े बड़े आकार के ग्रह जरूर खोजे गए हैं, जिन्हें मिनी नेप्च्यून या सुपर अर्थ कहा जाता है, जिनकी संख्या कम नहीं हैं, लेकिन फिर भी बहुत सारे ऐसे ग्रह हैं जो पृथ्वी या उससे छोटे हैं और वे ग्रह जो अपने तारे से काफी दूर उन्हें अभी खोजा नहीं जा सका है. सुपर अर्थ श्रेणी के ग्रहों को लेकर जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप से बहुत उम्मीदें हैं. लेकिन एक सच और है जिसे समझना जरूरी है. गैलेक्सी के तीन चौथाई तारे लाल बौने तारे हैं जिनके ग्रह इन तकनीकों से खोजना मुश्किल है. अभी हमें बेहतर और उन्नत तकनीक का इंतजार करना होगा.

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