“किसानों को फिर दिल्ली में घुसना होगा और बैरिकेड तोड़ने होंगे”- राकेश टिकैत

– 26 मार्च को ‘भारत बंद’ से पहले क्या होगा


राकेश टिकैत ने एक बार फिर से किसान आंदोलन को लेकर बड़ी बात कह दी है। टिकैत ने बुधवार को ट्वीटर के जरिए कहा है कि किसानों को फिर दिल्ली में घुसना होगा और बैरिकेड तोड़ने होंगे। दिल्ली के विभिन्न बॉर्डरों पर किसान बीते चार महीनों से अधिक समय से आंदोलन कर रहे हैं। देशभर से दिल्ली में डेरा जमाने वाले किसानों की मांग है कि केंद्र द्वारा लाए गए तीनों कृषि संबंधी कानूनों को रद्द किया जाए। वहीं, केंद्र संशोधन की बात पर अड़ी हुई है। हालांकि, जनवरी महीने में ही सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर सुनवाई करते हुए कानूनों पर आंतरिम रोक लगा दिया था। किसान आंदोलन में अब तक 250 से अधिक किसानों की मौत हो चुकी है।

किसान संगठनों ने 26 मार्च को भारत बंद का भी ऐलान किया है। कई राज्यों में किसान धरना पर बैठे हुए हैं। किसानों का आरोप है कि इन कानूनों के लागू होने से कॉर्पोरेट सेक्टर को फायदा होगा और उनकी जमीन इनके हाथों में चली जाएगी। किसान एमएसपी पर कानून की भी मांग कर रहे हैं। इसको लेकर बीते दिन मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने किसानों का समर्थन किया था। उन्होंने कहा था कि केंद्र को इस बारे में सोचना चाहिए। इसका हल निकालना होगा। किसानों द्वारा किए जा रहे आत्महत्या के मामले पर मलिक ने मोदी सरकार को घेरते हुए कहा था कि जब एक जानवर की मौत हो जाती है तो नेता शोक व्यक्त करने के लिए आ जाते हैं।

किसानों ने इससे पहले 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के मौके पर ट्रैक्टर परेड का आवाह्न किया था। इस दौरान दिल्ली घुसने के साथ ही हिंसा और पुलिस के साथ भारी झड़पें हुई थी। किसानों के गुट में कुछ लोगों ने लाल किला पर चढ़कर धार्मिक झंडा फहराया था। एक वीडियो में एक व्यक्ति तिरंगा को हाथ में लेकर फेकता हुआ भी नजर आया था। इस मामले में कई पुलिस कर्मी और किसान घायल हुए थे जबकि एक किसान की मौत ट्रैक्टर से दबने की वजह से हुई थी।

वहीं, जब किसान दिल्ली की ओर बीते साल 26 नंवबर को कूच कर रहे थे, उस वक्त पंजाब और हरियाणा के किसानों को हरियाणा बॉर्डर पर काफी विरोध का सामना करना पड़ा था। जगह-जगह बैरिकेडिंग लगाए थे और किसानों पर लाठीचार्ज और पानी की बौछार की गई थी। पुलिस ने किसानों पर आंसू गैस के गोले भी दागे थे। इस कानून को लेकर केंद्र और किसानों के बीच में करीब 11 दौर की बातचीत हो चुकी है लेकिन परिणाम बेनतीजा निकला है। केंद्र इसे एक से डेढ़ साल तक टालने का भी प्रस्ताव रख चुकी है, लेकिन किसान मानने के लिए तैयार नहीं हैं।

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