किसान आंदोलन को लेकर 75 पूर्व नौकरशाहों ने उठाए सवाल, अब 180 के समूह नेa दिया जवाब, कहा- ‘मसखरों की टोली’

 रणघोष अपडेट. देशभर से


कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन को लेकर पूर्व नौकरशाहों और जजों के दो समूह आमने-सामने आ गए हैं। कुछ दिन पहले 75 सेवानिवृत्त नौकरशाहों ने एक खुले पत्र में आरोप लगाया था कि किसानों के विरोध प्रदर्शन के प्रति केंद्र का दृष्टिकोण प्रतिकूल और टकराव वाला रहा है। अब इसके जवाब में 180 रिटायर्ड नौकरशाहों और जजों के समूह ने दावा किया है कि किसानों के आंदोलन को खत्म कराने के लिए सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के बारे में कानूनी आश्वासन देने और कृषि कानूनों को 18 महीनों के लिए निलंबित करने का एक मध्य मार्ग सुझाया है, लेकिन पूर्व नौकरशाहों का ‘मसखरों का एक समूह’ अभी भी एक भ्रामक विमर्श गढ़ने की कोशिश कर रहा है।

जवाब देने वाले 180 लोगों में रॉ के पूर्व चीफ संजीव त्रिपाठी, पूर्व सीबीआई निदेशक नागेश्वर राव और एसएसबी के पूर्व महानिदेशक एवं त्रिपुरा के पूर्व पुलिस प्रमुख बी एल वोहरा भी शामिल हैं। सोमवार को जारी बयान के अनुसार, सरकार ने किसी भी स्तर पर यह घोषित नहीं किया है कि असली और वास्तविक किसान देश-विरोधी हैं। इसमें कहा गया है, ‘यहां तक ​​कि गणतंत्र दिवस पर उन लोगों के साथ भी अत्यंत संयमित तरीके से व्यवहार किया गया जिन्होंने अपराधीकरण में लिप्त होने के लिए किसानों के आंदोलन को एक अवसर के रूप में इस्तेमाल किया।’ ‘फोरम ऑफ कंसर्नड सिटीजन्स’ ने पूर्व नौकरशाहों द्वारा खुला पत्र लिखे जाने को राजनीतिक रूप से प्रेरित बताते हुए एक बयान में कहा, ‘हम सेवानिवृत्त नौकरशाहों के मसखरों के एक समूह की पूरी तरह गलत बयानी से परेशान हैं, जिसका उद्देश्य एक भ्रामक विमर्श बनाना है।’

बयान में कहा गया है कि भोले-भाले किसानों को एक ऐसी सरकार के खिलाफ उकसाने के बजाय जिसकी दृष्टि उनकी स्थिति सुधारने की है, जिम्मेदार सेवानिवृत्त नौकरशाहों को यह समझना चाहिए कि कुछ अंतर्निहित संरचनात्मक कमी है जो भारतीय किसानों को गरीब रख रही है। समूह ने कहा, ‘जब सरकार ने एक बीच का रास्ता सुझाया है जिसमें कानूनों के क्रियान्वयन को 18 महीने के लिए निलंबित करने, न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी रखने के बारे में कानूनी आश्वासन और पर्यावरण संरक्षण के मामलों में किसानों के खिलाफ दंडात्मक प्रावधान वाले कुछ कानूनों को वापस लेना शामिल है, तो कानूनों को निरस्त करने की मांग पर अड़े रहने का कोई तर्क नहीं है।’ समूह ने यह भी अपील की कि ‘राष्ट्र-विरोधी षड्यंत्रकारियों और अवसरवादी नेताओं के चंगुल में फंसने की बजाय सभी को बातचीत के जरिये मुद्दे के सौहार्द्रपूर्ण समाधान के लिए काम करना चाहिए। इस बयान पर राजस्थान उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश अनिल देव सिंह, केरल के पूर्व मुख्य सचिव आनंद बोस, जम्मू-कश्मीर के पूर्व डीजीपी एस पी वैद, एयर मार्शल (सेवानिवृत्त) दुष्यंत सिंह, एयर वाइस मार्शल (सेवानिवृत्त) आर पी मिश्रा ने भी हस्ताक्षर किए हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *