क्या होती है अच्छी मौत

रिसर्च ने क्या बताईं इसके बारे में 10 बातें


साल 2015 में मेरी नानी मेरे घर पर ही रहती थीं. उस वक्‍त मैं दिल्‍ली में एक मीडिया हाउस में काम कर रहा था. एक दिन मेरी मां का फोन आया कि घर आ जाओ नानी का निधन हो गया है. उस समय नानी की उम्र 90 के आसपास थी. मृत्‍यु से करीब 2 हीने पहले वह काफी बीमार रही थीं. वह ज्‍यादातर समय अपने बिस्‍तर पर ही रहती थीं. उनकी नजर काफी कमजोर हो गई थी. शारीरिक तौर पर भी वह बहुत कमजोर हो गई थीं. मेरी मां उस वक्‍त हमेशा उनके साथ रहती थीं. नानी मां से अक्‍सर कहती थीं कि अब वो ‘जाना’ चाहती हैं. फिर एक दोपहर बाद उन्‍होंने दुनिया छोड़ दी. हालांकि, मैं आखिरी वक्‍त पर उनके साथ नहीं रह पाया, लेकिन घर पर सबने बताया कि वह बहुत शांति से चली गईं. मुझे लगा कि अच्‍छी मौत थी.

हाल में अमेरिकन जर्नल ऑफ गेरिएट्रिक साइकियाट्री  में एक अध्‍ययन प्रकाशित हुआ था. इसमें लंबी बीमारियों से ग्रसित लोगों, उनके परिवार के सदस्‍यों और हेल्‍थकेयर सर्विस प्रोवाइडर्स से डाटा इकट्ठा कर विश्‍लेषण किया गया था कि अच्‍छी मौत क्‍या होती है. शोधकर्ताओं ने अलग-अलग 36 अध्‍ययनों के जरिये अच्‍छी मौत के 10 लक्षणों या कहें गुणों की पहचान की.

  1. दर्द रहित स्थिति यानी मरने वाले व्‍यक्ति को अगर शारीरिक या मानसिक तौर पर कोई पीड़ा नहीं है तो मौत अच्‍छी होगी.
    आखिरी समय पर घर, परिवार, पैसा, जमीन, समाज के बजाय अगर मरने वाले का जुड़ाव धर्म और अध्यात्म से रहता है तो उसे कष्‍ट बहुत कम होगा.
    3. कोई व्‍यक्ति मरते समय भावनात्मक तौर पर अच्‍छा महसूस करता है तो उसकी मौत आसानी से होगी.
    4. अगर किसी बुजुर्ग व्‍यक्ति को लगे कि उसने अपना पूरा जीवन जी लिया और उसके जाने का वक्‍त आ गया है. ऐसे में अगर उसकी मौत होती है तो ये अच्‍छी मृत्‍यु होगी.
    5. अगर किसी बीमारी व्‍यक्ति को उसके मनमुताबिक उपचार मिलता है और उसकी मौत हो जाती है तो मरते वक्‍त उसके मन में संतुष्टि का भाव रहता है.
    6. अगर किसी व्‍यक्ति को मरने की प्रक्रिया में गरिमा का अनुभव होता है तो इसे अच्‍छी मौत माना जाता है.
    7. आखिरी समय में अगर किसी का पूरा परिवार उसके सामने हो और वह उनसे अलविदा कह पाएं तो अच्‍छी मौत मानी जाती है.
    8. मरने की प्रक्रिया के दौरान अगर किसी व्‍यक्ति का जीवनस्‍तर काफी अच्‍छा हो तो वह शांति का अनुभव करता हुआ जाता है.
    9. अंतिम समय में अगर इलाज की जरूरत पड़ रही हो तो हेल्‍थकेयर सर्विस प्रोवाइडर्स का अच्‍छा व्‍यवहार और परस्‍पर अच्छे संबंध मरते वक्‍त उसे सुकून देते हैं.
    10. अगर मरने वाले व्‍यक्ति के पास को पालतू जानवर हो और अंतिम समय वो उसके पास हो तो अंतिम समय में उसे कष्‍ट नहीं होता है.
  2. लोगों को पसंद नहीं मौत के बारे में बात करना
    शोध के मुताबिक, अमेरिकियों को मौत के बारे में बात करना पसंद नहीं होता है. अध्ययन के प्रमुख लेखक और कैलिफोर्निया विश्‍वविद्यालय के मोरेस कैंसर सेंटर में पैलिएटिव केयर में काम करने वाली मनोवैज्ञानिक एमिली मायर के मुताबिक, जीवन के शांतिपूर्ण अंत की तैयारी के बारे में बातचीत करने से मरने वाले लोगों को मदद मिल सकती है. उनके शोध से पता चलता है कि जो लोग अपनी इच्छाओं को लिखित रूप में रखते हैं और अपने प्रियजनों से मृत्‍यु को लेकर बात करते हैं, वे मरने की प्रक्रिया में भी खास अर्थ खोज लेते हैं.
  3. लेखक की मां ने लिखकर रखे कुछ खास निर्देश
    न्यूरोडिजेनरेटिव बीमारी एमीट्रोपिक लेटरल स्क्लेरोसिस की जटिलताओं के कारण दिसंबर 2015 में अपनी मां के निधन से पहले लॉस एंजिल्स में एक लेखिका नताशा बिल्लावाला ने उनके साथ कई बार मृत्‍यु के बारे में बातचीत की थी. दरअसल, उनके माता-पिता ने अपनी मृत्यु से कई साल पहले कुछ निर्देश लिखे थे. इनमें उन्‍होंने उन चीजों पर ध्यान दिया था, जिनको वो करना चाहते थे और जिनको कोई अहमियत नहीं देते थे. साथ ही लिखा था कि उनके बच्चे उनकी ओर से किस प्रकार के निर्णय ले सकते हैं. ऐसे में लेखिका को उनके अंतिम समय में उनकी इच्‍छाएं जानने में काफी मदद मिली.
  4. अंतिम समय में प्‍यार और देखभाल फायदेमंद
    बिल्‍लावाला से जब ये पूछा गया कि उनकी मां की मौत अच्‍छी थी या नहीं. इस पर उन्‍होंने कहा कि उनकी मौत अच्‍छी थी भी और नहीं भी. वह कहती हैं कि वह तब मरना नहीं चाहती थीं. उस समय वह कुछ भी निगल नहीं पाती थीं. यही नहीं, अंतिम फैसला लेने की उनकी क्षमता खत्‍म हो चुकी थी. वह कहती हैं कि अगर उनके शरीर के कई अंगों ने काम करना बंद ना कर दिया होता तो शायद वह मरने का बेहतर विकल्‍प चुनतीं. हालांकि, आखिरी समय में उनको बहुत प्‍यार और देखभाल मिली, जो अंतिम समय में उनके लिए बहुत अच्‍छा था. वह कहती हैं कि ऐसे में उनकी मौत अच्‍छी भी थी और खराब भी.
  5. अध्‍ययनों के मुताबिक, मरने में लंबा समय लग सकता है. कभी-कभी रोगी पीड़ा कम करने के लिए दर्द की दवा या जीवन रक्षक प्रणाली को हटाना चाहते हैं. बिल्लावाला की मां ने अंतिम समय में खुद को सहज रखने के लिए मॉर्फिन पर बिताए. ऐसे में उनकी मौत आसान नहीं थी. फिर भी वह काफी सहज थीं. अगर उन्‍हें अस्पताल ले जाया जाता और मशीनें लगा दी जातीं तो शायद उनकी शांति छिन जाती और वह अंतिम समय में ज्‍यादा कष्‍ट महसूस करतीं.
  6. अस्‍पताल से बेहतर परिवार के साथ रहना
    लेखक और चिकित्सक अतुल ग्वांडे ने अपनी किताब ‘बीइंग मॉर्टल’ में सभी कल्याण की भावना को जीवित रहने की इच्छा के कारणों के तौर पर माना है. दुख और मृत्यु के विशेषज्ञ क्रिस केवोरियन कहते हैं कि उन लोगों की मौत काफी अच्‍छी होती है, जो पहले से ये लिखना शुरू कर देते हैं कि वे गुवत्‍तापूर्ण जीवन के तौर पर क्‍या चाहते हैं? वह कहते हैं कि अस्‍पताल में अकेले पड़े बीमार व्‍यक्ति को चिंता, घबराहट और नकारात्‍मकता का अनुभव होता है. इससे बेहतर है कि अंतिम समय में व्‍यक्ति को परिवार के साथ रहने दिया जाए. इससे उसे बेहतर अनुभव होगा. इससे उन्‍हें शांति की भावना मिल सकती है.
  7. स्‍वस्‍थ होने पर करें मौत की खुलकर बात
    जो लोग अच्छे स्वास्थ्य में होने पर मृत्यु के बारे में खुलकर बात करते हैं, वे अच्‍छे से मृत्यु का सामना कर पाते हैं. अमेरिका में कई डेथ कैफे हैं, जिनमें स्‍वस्‍थ लोग मरने के बारे में बात करते हैं. इस दौरान वे दाह संस्कार से लेकर शोक अनुष्ठानों तक के बारे में बात करते हैं. अध्‍ययन के सह-लेखक और कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में गेरिएट्रिक साइकियाट्रिस्‍ट दिलीप जेस्‍ट का कहना है कि डॉक्टरों और नर्सों को भी मौत पर खुले तौर पर चर्चा करने के लिए आगे आना चाहिए. वह कहते हैं कि चिकित्सकों को जीवन लंबा करने के बारे में ही सोचना सिखाया जाता है. इसलिए मृत्यु डॉक्‍टरों के लिए विफलता बन जाती है. अमेरिका में हाल ही किए गए एक शोध के मुताबिक, 46 फीसदी डॉक्टर्स और एक्‍सर्ट्स ये नहीं समझ पाते कि रोगी से उसकी मौत के बारे में कैसे बात करें.

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