गुरुग्राम सीट पर भाजपा की जीत में बैचेनी कुछ कह रही है..

राव इंद्रजीत की हार में अपनी जीत देख रहा,  भाजपा के भीतर चल  रहा खामोश विरोध


रणघोष खास. प्रदीप हरीश नारायण


हरियाणा के खजाने को सबसे ज्यादा लबालब भरने वाली गुरुग्राम लोकसभा सीट जिसे देश मिलेनियम सिटी के नाम से बुलाता है। इन दिनो चुनाव में अलग अलग वजहों से चर्चा में आ चुकी  है। यहा से कांग्रेस उम्मीदवार राज बब्बर ने मैदान में आते ही सबसे पहले अपने परिवार को एकजुट कर लिया जिसकी वजह से यहा मुकाबला दिलचस्प बन चुका है। इस लेख में हम बात करेंगे भाजपा से तीसरी बार मैदान में उतर चुके धाकड नेता राव इंद्रजीत सिंह की। मतदान में दो सप्ताह का समय बचा है। जिस तरह से चुनाव प्रचार जोर पकड रहा है मुकाबला सीधे तौर पर भाजपा- कांग्रेस के बीच बन चुका है। जहा तक भाजपा का सवाल है। राव इंद्रजीत सिंह के दिनभर के शैडयूल पर गौर करिए और उनके आस पास नजर आने वाले चेहरों को पहचानिए। आइने की तरह तस्वीर साफ हो जाएगी। इस चुनाव में भाजपा उम्मीदवार होते हुए भी राव इंद्रजीत सिंह अकेले नजर आ रहे हैं। पार्टी के नाम पर उनके पास मोदी गारंटी और अपने समर्थकों की फौज दिख रही है। स्टार प्रचारक के तौर पर ऐसा कोई नेता नजर नही आया है जो अपने प्रभाव से राव के वोटों में इजाफा कर दे। भाजपा की तरफ से पदाधिकारी, विधायक और मंत्री के तौर पर राव के साथ कभी कभार नजर आने वालों में अधिकतर वे है जिनकी अपनी पहचान नही है। उलटा वे राव के सामने हाजिरी लगाकर खुद को जिंदा किए हुए हैं। कुछ ऐसे चेहरे लगातार नजर आ रहे है जो चार माह बाद होने जा रहे हरियाणा विधानसभा चुनाव में दावेदारी को मजबूत करने के लिए अपने बायाडोटा पर राव के हस्ताक्षर करवाने का मौका तलाश रहे हैं। भाजपा में राव विरोधियों की तादाद बेहिसाब है जो बिना  शोर मचाए उनकी हार की कहानी लिख रही है। इसका अहसास राव को चुनावी मैदान में उतरने से पहले हो चुका था। इसलिए उन्होंने कह दिया था की जो उनके साथ आए उनका भी स्वागत है और नही आए उनका भी स्वागत है। राव का मानना है की यह देश का चुनाव है जिसमें मोदी गारंटी ही काफी है। राव का यह कहना साफ तौर से जाहिर करता है कि वे भाजपा में पीएम नरेंद्र मोदी के अलावा इस सीट पर किसी को असरदार नही मानते। वे खुद पांच बार सांसद और तीन बार विधायक बनकर अपनी जमीनी राजनीति हैसियत को बखूबी समझते हैं। कुल दस छोटे बडे चुनाव में नौ बार जीते हैं।

लेकिन इसके बावजूद जिस तरह कांग्रेस इस चुनाव में एकजुट होकर रंगत में आ रही है और राज बब्बर का अंदाज और भाषण का तौर तरीका आमजन को अपनी तरफ खींच रहा है। उस पर राव इंद्रजीत सिंह को अपनी रणनीति बदलनी पडेगी। उनके विरोधियों में कुछ दमदार चेहरे ऐसे भी है जो अपने रसूक से अपने दायरे की राजनीति को आज भी मजबूती से पकडे हुए हैं। इसलिए वे खुद राव इंद्रजीत सिंह के पास चलकर जाए यह आसान नजर नही आ रहा है। ये वो चेहरे है जो आने वाले समय में विधानसभा चुनाव में टिकट के प्रमुख दावेदारों की सूची में भी नजर आएगे। जहा राव से उनका टकराव होना लाजिमी है।  अगर विधानसभा चुनाव इतने करीब नही होते तो राव को अपनी पार्टी के भीतर इतनी चुनौतिया नही मिलती। उनके विरोधियों को पता है की अगर राव जीत गए तो विधानसभा चुनाव में वे उनकी दावेदारी को पूरी तरह से कुचलने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। अगर हार गए तो राव को वही करना पडेगा जो हाईकमान तय करेगा। इसलिए वे राव की हार में अपनी जीत देख रहे हैं। इसका फायदा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर कांग्रेस को फायदा मिलेगा। कितना मिलेगा यह रजल्ट में मिलने वाले वोटो से साफ हो जाएगा। हालांकि भाजपा शुरूआत से ही इस सीट को काफी सुरक्षित मानकर चल रही थी। अभी भी मजबूत पोजीशन में है लेकिन भीतरघात और हर पल बदलते राजनीति हालत कब हार जीत में और जीत कब धाराशाही हो जाए। कुछ भी नही कहा जा सकता। अगर राव पिछले चुनाव से इस बार कम वोटो से जीत दर्ज करते हैं तो भी उनके लिए आगे की राह आसान नही होगी। इसका सीधा असर विधानसभा चुनाव पर नजर आएगा। अगर ज्यादा मतों से जीते तो भाजपा हाईकमान में उनका दखल पहले से ज्यादा असरदार होगा। इसलिए राव इंद्रजीत का मुकाबला एक तरफ अनुभवी और राजनीति की चाल पकडने में माहिर राज बब्बर से है। दूसरी तरफ अपनी पार्टी के भीतर बिना शोर मचाए चल रहे विरोध से मिल रही है जो उनकी जीत को छिन सकती है । ऐसे हालातों में वे इसमें कितना कामयाब हो पाते हैं यह चार जून को होने वाली मतगणना में साफ हो जाएगा। इस लेख का विडियोे देखने के लिए ranghosh news chanel को Subscribe जरूर करे।