जब टिकैत के आंसू सैलाब बन सकते हैं तो सोचिए..

 जेल से बाहर आकर निर्दोष किसान बोलेंगे तो क्या होगा..


हमने अपने देश के लोकतंत्र को घर के उस बुजुर्ग मुखिया की तरह बना दिया जो इसलिए खामोश रहता है ताकि सुबह शाम भोजन मिल जाए। उसे पता है अगर वह बोलेगा तो भूखा पेट उसे मार देगा।


रणघोष खास. प्रदीप नारायण


जिन्हें हम देश का सबसे बड़ा-ताकतवर और बेबाक मीडिया कहते हैं। किसान आंदोलन में वह सर्कस का शेर निकला जो चाबुक देखकर कभी पूंछ हिलाता है तो कभी दिखावे के नाम पर गुर्राता है। वह वहीं करता है जो उसका बिग बॉस चाहता है। दूसरी तरफ खुले में घूमने वाला शेर अपने मिजाज को नहीं छोड़ता इसलिए उसे काबू में पाने के लिए तमाम तरह के हथकंडों का इस्तेमाल किया जाता है। युवा पत्रकार मनदीप पुनिया को जब दिल्ली पुलिस ने काबू में कर तिहाड़ जेल में डाल दिया तो वह टूटने की बजाय कई गुणा ताकत के साथ बाहर आकर अपने अंदाज में वापस लौट आया। पुनिया ने जेल में बंद किसानों के बारे में जो खुलासा किया है वह आग में घी के साथ साथ  पेट्रोल- डीजल का काम भी करेगा। दिल्ली पुलिस अपने काम करने के तौर तरीकों के प्रति कितनी ईमानदार है। वह अपनी पॉवर का इस्तेमाल किस इरादे से करती है। यह निष्पक्ष जांच से सामने आएगा। इतना जरूर साफ हो चुका है कि सरकार और पुलिस इस किसान आंदोलन में छिपे गुस्से- आक्रोश को अभी भी किसी शरारती बच्चे की बॉल से टूटे शीशे वाली घटना की तरह देख रही है जो अपने तरह की डांट फटकार को ही सबकुछ मान रही है। वह भूल गई जब किसान नेता राकेश टिकैत की आंखों से निकले आंसू सड़कों पर सैलाब बन सकते हैं तो आज नहीं तो कल जेल से बाहर आने वाले किसान अपनी आप बीती सुनाएंगे तो क्या होगा। गलती दोनों तरफ से हो सकती है। इसका मतलब यह हरगिज नहीं होना चाहिए कि  खाकी वरदी वाला इसलिए अपनी जिम्मेदारी- जवाबदेही से बच जाए कि उसके पास खुद को दोषी होने या नहीं होने का बही खाता है जिसमें वह जो चाहे कुछ भी लिख सकता है और कुछ भी मिटा सकता है। सरकार का साथ उसे पहले ही मिला हुआ है। नेताओं को यह हरगिज नहीं भूलना चाहिए कि पांच साल में होने वाले चुनाव से मिलने वाले वोटों से सरकार बनने का भाग्य लिखा जाता है। इसलिए मौजूदा हालात में उसका एक- एक कदम सबकुछ बदल सकता है। मनदीप पुनिया को तिहाड़ में किसानों ने जो कुछ बताया  उसमें कितनी सच्चाई है। वह भी भरोसे वाली जांच से सामने आएगा। इतना जरूर है कि ये किसान पेशेवर बदमाश, खालिस्तानी और गलत इरादों को अंजाम देने वाले नहीं गांव से चलकर दिल्ली में अपनी मन की बात कहने आए थे। कुछ ऐसे भी है जो किसान ही नहीं थे। इन्हें पकड़कर पुलिस अपनी सफलता मान रही है या खाल बचा रही है। यह बताने की जरूरत नहीं है। मौजूदा  घटनाक्रम ने यह तो बता दिया कि हमारे देश में लोकतंत्र उस बुजुर्ग की तरह है जो कहने को घर का मुखिया है लेकिन असल जिंदगी में चुप इसलिए है ताकि सुबह शाम का भोजन नसीब हो जाए। अगर वह बोलेगा तो भूखा पेट उसे मार देगा। तिहाड़ जेल में लगभग 120 के क़रीब किसानों के बंद होने की ख़बर सरकार ने ख़ुद स्वीकारी है। पुनिया बताते हैं कि वह  जेल के जिस वार्ड में बंद था उसमें जे, के, एल और एम अक्षरों से जिनके नाम शुरू होते हैं उन बंदियों को बंद किया गया था। इसी वार्ड में उसकी मुलाक़ात 70 वर्षीय बाबा जीत सिंह से हुई। बाबा जीत सिंह हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर के गाँव बनियानी में स्थित गुरुद्वारे में ग्रंथी हैं और वह इस किसान आंदोलन में बुराड़ी ग्राउंड में बैठे किसानों को लंगर खिलाते हैं। सफेद दाढ़ी-मूँछों के बीच छुपे उनके चेहरे पर पड़ी झुर्रियों के बीच पसरी उनकी हंसी सत्ता का मजाक उड़ा रही  है। इसी तरह हरियाणा के रोहतक ज़िले के रिठाल गाँव के 60 वर्षीय किसान जगबीर सिंह को पुलिस ने  पीरागढ़ी के मेट्रो स्टेशन के पास से गिरफ्तार किया। वह राजेन्द्र प्लेस अपने भाई के घर पर जा रहा था। रास्ते में ही यह कहकर गिरफ्तार कर लिया कि बस आधार कार्ड देखकर छोड़ देंगे।  जेल में बंद नरेंद्र गुप्ता से उनका पक्ष पूछा तो उन्होंने बताया, ‘मैं तो दिल्ली का रहने वाला हूँ और किसान भी नहीं हूँ। चुपचाप अपने घर की तरफ़ जा रहा था। अचानक पुलिस ने उसे उठा लिया। पुलिस को बताया भी कि वह किसान नहीं हूँ लेकिन उन्होंने एक नहीं सुनी। किसानों ने जो कुछ भी बोला अगर वह सच है तो हमें समझ लेना चाहिए देश आज लोकतंत्र के नाम पर धोखे से आगे बढ़ा रहा है। इसका मतलब देश की जेलों में हजारों लाखों बेगुनाह लोग उस अपराध की सजा भुगत रहे हैं जो उन्होंने किए ही नहीं। उनका अपराध इतना था कि वे सत्ता की ताकत के साथ नहीं चले। ऊपर वाले से दुआ करिए हमारा लोकतंत्र हर लिहाज से हर प्रयास से मजबूत रहे तो नहीं तो लिखते समय हमें भी यह अहसास हो रहा है कि कहीं अगला नंबर हमारा तो नहीं.. ।

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