दैनिक रणघोष खास में पढ़िए: मौजूदा समय बता रहा है यह शिक्षक अधिकारों का अमृतकाल

रणघोष खास. प्रो. एके भागी की कलम से

 : लेखक  दिल्ली विवि शिक्षक संघ के अध्यक्ष है

दिल्ली विश्वविद्यालय अपना शताब्दी वर्ष को पूर्ण कर चुका है और इस कालखंड में यदि बात 21वी शताब्दी की करें तो इस दौर में दिल्ली विश्वविद्यालय और इससे संबद्ध कालेजों के शिक्षकों ने तदर्थवाद, वर्षों तक पदोन्नति न मिलने का जो दर्द झेला हो वो किसी से छिपा नहीं है। ऐसे में कोरोना काल समूची मानव मानव जाति पर आपदा बनकर आया। लेकिन हम भारतीयों के आपदा में अवसर तलाशने के हुनर ने कुछ ऐसा रंग दिखाया कि समूचे विश्व के समक्ष भारत एक ग्लोबल लीडर के रूप में उभरा। कुछ ऐसा ही बदलाव इस संकट के काल में दिल्ली विश्वविद्यालय में भी देखने को मिला। पदोन्नति से शुरू हुआ बदलाव का यह सिलसिला 2021 में स्थायी नियुक्ति प्रक्रिया तक पहुंचा और निरंतर जारी है।

 दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ का 2019 का चुनाव हारने के बाद भी शिक्षकों के सक्रिय रहने का नतीजा ही था कि 2021 में दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) की कमान शिक्षकों ने पूर्ण बहुमत के साथ सौंपी। ये समय था साबित करने का कि हम दूसरों से अलग है। हम समस्या को लेकर हंगामा नहीं बल्कि समाधान देते हैं। प्रयास किया और परिणाम सभी के समाने है। विश्वविद्यालय शिक्षक आज सम्मान के साथ अपने अधिकार पदोन्नति प्राप्त कर रहें हैं और क्या कॉलेज और क्या विश्वविद्यालय के विभाग सभी में नियुक्ति प्रक्रिया अनवरत जारी है। दो साल का यह समय बेहद चुनौतीपूर्ण रहा। लेकिन शिक्षक संघ ने जिस मुस्तैदी और नेकनीयत के साथ इस दौर में काम किया उसका गवाह वो हर एक तदर्थ शिक्षक है जिसने सालों तक तदर्थवाद का दंश झेला। ऐसा नहीं है कि इस काल में शिक्षक संगठन के रूप में डूटा को धरने, प्रदर्शन, जुलूस व हड़ताल की जरूरत नहीं पड़ी, बस इस बार साफ नियत और स्पष्ट इरादे के साथ मिलकर सड़क से विश्वविद्यालय की विद्वत व कार्यकारी परिषद के मंच तक समस्या को उजागर कर उसका समाधान सुनिश्चित किया गया।  अब बात आती है कि क्यों एक खास संगठन (नेशनल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट) विशेष के योगदान की, तो अगर कोई भी संगठन नेक नियत के साथ काम  करता है उसको श्रेय तो देना ही चाहिए। देश के इतिहास में सबसे लंबे समय तक चली शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया को यदि अंजाम दिया जा रहा है तो यहां विनम्रता के साथ बस इतना ही कहा जा सकता है जो 2800 से अधिक स्थाई नियुक्तियां और 10 हजार से ज्यादा यूनिट्स पर शिक्षकों की पदोन्नतियों के साथ पदोन्नति की प्रक्रिया को सहज एवं स्वचालित बनाने काम अगर कोई भी समूह करता है तो उसकी चर्चा होना कतई अनुचित नहीं है। इस संगठन के नेतृत्व वाली डूटा ने महाविद्यालय, कॉलेजों में प्रोफेसरशिप और विभागों में सीनियर प्रोफेसरशिप के पद को लाकर शिक्षकों को वाजिब हक दिलाया। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग(यूजीसी) की अनॉमली कमेटी रिपोर्ट, 1991 से पहले नियुक्त शारीरिक शिक्षा के शिक्षकों के लिए सेवानिवृत्ति लाभ, चार वर्षीय स्नातक प्रोग्राम के 176 क्रेडिट्स के आधार पर शिक्षणकार्य की गणना, तदर्थ (महिला) शिक्षकों के लिए मातृत्व अवकाश, नॉन-पीएचडी धारकों के लिए असोसिएट प्रोफेसर तक के पदों तक पदोन्नति और 2018 रेगुलेशन्स के तहत भर्ती और पदोन्नति में एड-हॉक और पोस्ट-डॉक्टरल अनुभव को शामिल करना इत्यादि सम्मिलित है। डूटा ने अनेक ऐसे मुद्दों को सुलझाया जोकि बेहद पेचीदा हो चले थे, जैसे कि आप सरकार द्वारा डीयू से कॉलेज ऑफ़ आर्ट के डी-एफ़ीलिएशन को रोकना, अध्ययन अवकाश के अवसरों को बढ़ाना, और एनपीएस सदस्यों के लिए लाभकारी नीतियों को सुनिश्चित करना। कोरोना काल में गर्मी की छुट्टी में काम करने के एवज में 36 अर्जित छुट्टियों को दिलाना, अध्ययन अवकाश, सीसीएल और अन्य वेतन युक्त अवकाशों के कारण असर रहित प्रमोशन इत्यादि प्रावधानों को सुनिश्चित कराना शामिल रहें। ये वो समय है जब दिल्ली विश्वविद्यालय में नासूर की तरह घर कर चुकी तदर्थवाद की समस्या का अंत अब नजदीक आ गया है। शिक्षकों को पुनः उनकी गरिमा व सम्मान प्राप्त हुआ है। आज जो हालत नजर आ रहे हैं उन्हें देखते हुए बदलाव का यह क्रम जल्द ही शेष लगभग 2900 रिक्त पदों पर नियुक्ति का मार्ग प्रशस्त करेंगे।अमृत काल में जारी बदलाव की यह प्रक्रिया अगले चरण में पूर्ण पूर्व सेवा गणना (फुल पास्ट सर्विस काउंट) और पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) की ओर अग्रसर है। डूटा शिक्षकों के प्रति दृढ़ता के साथ प्रतिबद्ध है, जो एड-हॉक और अस्थाई शिक्षकों के स्थाईकरण, नौकरियों में जीरो विस्थापन की नीति के तहत उनके विलय, ईडब्ल्यूएस शिक्षण पदों के लिए सरकारी वित्त, एनईपी के अंतर्गत उचित पाठ्यक्रम का क्रियान्वयन, पदोन्नति पर नोशनल इंक्रीमेंट्स के साथ शिक्षा में लगातार सुधार करने वाली अपनी बातों पर अडिग रहकर अपना कार्य सम्पन्न कर रही है । यह प्रारूपिक पाठ्यक्रमों में MOOCs की प्रस्तुति के विरोध के साथ अनुदान और पदों की सुरक्षा की लगातार कोशिश में भी शामिल है। आज समय जिस तरह से शिक्षकों के पक्ष में नजर आ रहा है उसे देखकर कह सकते हैं कि यह समय शिक्षक अधिकारों का अमृतकाल है। वो दिन दूर नहीं जब भारत विश्वगुरु के रूप में अपनी पहचान पुनः स्थापित करेगा और इसमें दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रत्येक शिक्षक का योगदान महत्वपूर्ण होगा।

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