नगर परिषद चुनाव के साइड इंपैक्ट

नगर निकाय चुनाव में उपमा ने हारकर सतीश यादव को उसकी असली जमीनी ताकत दिला दी


रणघोष खास. वोटर की कलम से


नगर निकाय चुनाव बेशक खत्म हो गया लेकिन अपने पीछे बहुत कुछ ऐसा छोड़ गया जिसकी बुनियाद पर राजनीति अपना चेहरा बदलने जा रही है। सबकुछ एक माह में बदल जाएगा। यह इस चुनाव के अंदाज ने बता दिया। 3 दिसंबर को चुनाव की घोषणा हुई और 27 दिन बाद परिणाम आ गए। इस चुनाव में भाजपा की पूनम यादव रेवाड़ी के इतिहास में पहली चेयरपर्सन बनी जिसे मतदाताओं ने सीधे चुना। दूसरे नंबर पर रही आजाद प्रत्याशी उपमा यादव बेशक 2087 वोटों से हार गईं लेकिन जमीनी तौर पर वह सभी पर भारी रही। उपमा यादव ने अपनी हार के बदले अपने पति पूर्व जिला प्रमुख सतीश यादव की राजनीति जमीन को भविष्य के लिए मजबूत कर दिया है। गौर करिए 3 दिसंबर से पहले जब नप चुनाव की घोषणा नहीं हुई थी सतीश यादव की राजनीति ठहरी हुई खामोशी के साथ इधर उधर नजरें दौड़ा रही थी। ऐसा लग नहीं रहा था कि इस शख्स का राजनीति कैरियर आने वाले दिनों में अपने दम पर हिलोरे मारेगा। सतीश यादव की राजनीति करने के तौर तरीकों से शहर का मिजाज भी मेल नहीं खाता था। जब चुनाव का एलान हुआ तो किसी ने सतीश यादव को गंभीरता से नहीं लिया। खुद सतीश यादव चुनाव को लेकर बुरी तरह से उलझन में थे कि इसे अवसर माने या रही सही बची राजनीति को भी दांव पर लगा दे। वे अपने मिलने वालों से राय मशवरा करते रहे। कोई ऐसा उत्साह नहीं मिला जिससे लगे की इतने कम समय में सतीश यादव मजबूत दावेदारी में आ जाएंगे। पिछले दो विधानसभा चुनावों में लोग उसकी आक्रमक छवि को नकारात्मक पक्ष से ज्यादा देख रहे थे। उन्हें लगता था कि अगर सतीश के हाथ में बागडौर आ गई तो हर कोई सहज महसूस नहीं कर पाएगा। ऐसा उनके विपक्षी नेताओं ने उसके खिलाफ माहौल बनाया हुआ था। सतीश के लिए यह जबरदस्त चुनौती थी। फिर भी हिम्मत दिखाकर उसने अपनी पत्नी उपमा यादव को मैदान में उतारने का एलान कर दिया। बिना किसी शोर शराबे के वह अकेले लोगों से मिलने लगा। जितने भी लोग सतीश से मिले वे हैरान थे कि इस शख्स में इतना जबरदस्त बदलाव कैसे आ गया। बिना किसी पर हमला किए शहर के विकास की बात पर सतीश लगातार फोकस कर रहे थे। लोग चुनाव के माहौल में सतीश के बदले इस तेवर पर भरोसा नहीं कर पा रहे थे। जब नामाकंन के दिन पूर्व विधायक रणधीर सिंह कापड़ीवास सतीश के पक्ष में उतर आए तो एकाएक चुनाव की रंगत बदलने लगी। सतीश का चुनाव जोर पकड़ने लगा। कापड़ीवास की शहर में अपनी जमीनी ताकत के साथ साथ एक सामाजिक छवि थी जो सतीश की ताकत बनती चली गईं। शहर के लोगों में सतीश बिना किसी लाग लपेट के अपनी पैठ बनाता चला गया। उधर भाजपा संगठन को यह भरोसा था कि त्रिकोणीय मुकाबले में पार्टी कैडर का वोट बैंक उन्हें खामोशी के साथ जीता देगा बस उन्हें अपनी एकजुटता को किसी तरह बनाए रखना है। कांग्रेस से प्रत्याशी के तौर पर विक्रम यादव मैदान में उतरे अन्य उम्मीदवारों में मजबूत चेहरा थी। यहां उनके चुनाव को संभाल रहे पूर्व मंत्री कप्तान अजय सिंह यादव अपने इस गणित पर काम कर रहे थे कि सतीश जितना मजबूत होगा वह भाजपा को कमजोर करेगा। वे विधानसभा चुनाव की तरह इस बार भी इस त्रिकोणीय मुकाबले में निकल जाएंगे। रजल्ट आया तो सबकुछ बदला मिला। बेशक परिणाम भाजपा के पक्ष में गए लेकिन जमीन सतीश यादव की मजबूत हो गईं। कांग्रेस को विधानसभा में मिली ताकत इस चुनाव में थोड़ा कमजोर होकर चली गईं जबकि भाजपा भाग्य के भरोसे अपनी नैया पार लगा गईं। उनके चेयरमैन की जीतना और वार्ड मेंबरों में कुल 31 में 24 का हारना हैरान करने वाली जीत नहीं तो क्या है। कुल मिलाकर यह चुनाव सतीश यादव की आगे की राजनीति को एक नई ताकत देकर चला गया साथ ही उनकी बदली हुई छवि को नई पहचान मिल गईं जो उनकी अपनी होगी। भविष्य में क्या होगा यह किसी को नहीं पता वर्तमान जरूर यह अहसास करा रहा है।

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