नगर परिषद रेवाड़ी उप्रधान चुनाव ने साबित कर दिया साम- दंड- भेद ही राजनीति धर्म है

राव इंद्रजीत सिंह- कृष्णपाल गुर्जर का इस चुनाव में आगे आना उनके कद को पीछे धकेलना रहा


रणघोष खास. सुभाष चौधरी की कलम से


नगर परिषद रेवाड़ी उपप्रधान चुनाव में केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह एवं कृष्णपाल गुर्जर का आगे आना सीधे तौर पर उनके कद को पीछे धकेलना साबित हो गया। यह किसी भी लिहाज से उनके राजनीति स्तर से मेल नहीं खा रहा था। नप चेयरपर्सन की बात होती तो इन दोनों दिग्गजों की भूमिका समझ में आती। उपप्रधान के लिए जिस तरह पार्षदों को बाराती बनाकर इधर उधर घुमा कर खातेदारी की गईं। यह भी हैरान करने वाली बात है।  यह लोकतांत्रिक मूल्यों एवं मर्यादा को कितना मजबूत करती है। इसका बेहतर जवाब पार्षद ही दे सकते हैँ। बताया जा रहा है कि कुछ पार्षदों को अपने पक्ष में करने के लिए  अच्छा खासा शगुन भी दिया गया। जिसका कभी भी खुलासा हो सकता है। मतदान के समय दोनों दिग्गज नेताओं की सहमति से घोषित उपप्रधान पद उम्मीदवार श्याम चुग का महज 4 वोटों से जीतना यह बताता है कि भाजपा के अंदर बाहर कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है। नगर परिषद रेवाड़ी के कुल 31 वार्ड पार्षदों में भाजपा ने ही सिंबल पर चुनाव लड़ा था जिसमें महज 7 ही जीतकर आए थे। भाजपा नेताओं ने जिस  श्याम चुग को उपप्रधान बनाया है उसने चुनाव में भाजपा उम्मीदवार पवन बठला को हराया था। ऐसे में छोटे स्तर पर भी पार्टी की विचारधारा किस दिशा में काम करती है यह मौजूदा गुणा गणित से साफ हो रहा है। दरअसल राजनीति का असल धर्म अब साम- दंड- भेद से कुर्सी पर अपनी चौधराहट को कायम रखने वाला रह गया है। उप्रधान के इस छोटे से चुनाव की गहराई में जाए तो यह साफ तौर से सामने आता है कि राव इंद्रजीत सिंह की राजनीति ने अपना रास्ता बदल लिया है। भाजपा में आने के बाद राव के फैसलों को लगातार चुनौतियां मिलती आ रही है। इसकी दो प्रमुख वजह है। पहला  समर्थक राव को अपना सबकुछ मानते हैँ। उनके लिए राव इंद्रजीत ही उनकी पार्टी और विचारधारा है। ऐसे में राव अपने कद से छोटी सभी सीटों पर अपने विश्वास पात्रों को बैठाने के लिए पूरी ताकत लगा देते हैं। चाहे वो टिकट दिलाने की बात हो या फिर किसी पद की। राव की 45 साल से ज्यादा की सफल राजनीति का आधार भी यही रहा है। दूसरा भाजपा में आने के बाद राव का अपने हिसाब से राजनीति करना आसान नहीं रहा। चाहे चुनाव में टिकट बंटवारे का मसला हो या फिर क्षेत्र से जुड़े विकास कार्यों में अपनी  दमदार भूमिका। मनेठी एम्स यह बताने के लिए काफी है। हालांकि कांग्रेस में भी राव अपनी मिजाज की राजनीति की वजह से प्रदेश के प्रभावशाली नेताओं से सीधा टकराते रहे हैं। नप उपप्रधान चुनाव में धुर विरोधी के तौर पर भाजपा का एक धड़ा सार्वजनिक तौर पर उनके खिलाफ खड़ा नजर आया जिसकी कमान हरको बैंक के चेयरमैन अरविंद यादव ने संभाल रखी थी। अरविंद यादव पिछले कुछ दिनों से हाई कमान के दिशा निर्देश पर असम विधानसभा चुनाव में पार्टी को मजबूत करने में लगे हुए हैं। उनके समर्थकों का कहना है कि अगर अरविंद यादव रेवाड़ी होते तो राव के लिए अपने समर्थक को जीताना आसान नहीं होता। यहां गौर करने लायक बात यह है कि नगर निकाय चुनाव में भाजपा में विश्वास करने वाले ही पार्षद दो धड़ो में बंटे हुए हैं। कांग्रेस या अन्य किसी पार्टी की कोई कहानी नहीं है। चेयरपर्सन पूनम यादव पहले ही राव के आशीर्वाद को अपनी ताकत बता चुकी है। कुल मिलाकर दक्षिण हरियाणा में राव इंद्रजीत सिंह सबसे बड़े नेता के तौर पर स्थापित है। ऐसे में अगर उन्हें नप उपप्रधान के लिए अच्छी खासी चुनौती का सामना करना पडे तो समझ जाइए राव के पास एक मजबूत टीम की कमी है। अगर ऐसा नहीं होता उपप्रधान पद के लिए राव को आगे नहीं आना पड़ता। वे श्याम चुग को बेशक उपप्रधान बनाने में कामयाब हो गए लेकिन इस जीत में मिठास कम बैचेनी ज्यादा थी।

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