प्रसिध्द पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा का कोरोना से निधन, चलाया था चिपको आंदोलन

पद्म विभूषण से सम्मानित, प्रख्यात पर्यावरणविद और चिपको आंदोलन से अपनी अलग पहचान बनाने वाले सुंदर लाल बहुगुणा का शुक्रवार को कोरोना संक्रमण के साथ वयोवृद्ध विभिन्न व्याधियों से ग्रस्त होने से उत्तराखंड के ऋषिकेश स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में निधन हो गया। वह 94 वर्ष के थे। बहुगुणा को आठ मई को कोरोना से संक्रमित होने के बाद एम्स ऋषिकेश लाया गया था। जहां उन्होंने आज मध्याह्न लगभग 12 बजे अंतिम सांस ली। गुरुवार को एम्स के जन सम्पर्क अधिकारी हरीश थपलियाल ने उनकी हालत स्थिर होने की जानकारी दी थी। उन्होंने बताया था कि उनका उपचार कर रही चिकित्सकों की टीम ने इलेक्ट्रोलाइट्स एवं लीवर फंक्शन टेस्ट समेत ब्लड शुगर की जांच की और निगरानी की सलाह दी है।

इस बीच शुक्रवार सुबह उनका स्वास्थ्य अचानक बिगड़ गया और मध्याह्न में उनका देहावसान हो गया। राज्यपाल बेबी रानी मौर्य, मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत, विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह महेश जोशी, पूर्व राज्यमंत्री धीरेन्द्र प्रताप आदि ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है।उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने ट्वीट किया कि चिपको आंदोलन के प्रणेता, विश्व में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध महान पर्यावरणविद् पद्म विभूषण श्री सुंदरलाल बहुगुणा जी के निधन का अत्यंत पीड़ादायक समाचार मिला। यह खबर सुनकर मन बेहद व्यथित हैं। यह सिर्फ उत्तराखंड के लिए नहीं बल्कि संपूर्ण देश के लिए अपूरणीय क्षति है।

चिपको आंदोलन के प्रणेता 

उत्तराखंड के चमोली जिले में पेड़ों को बचाने के लिए हुए चिपको आंदोलन को पर्यावरण संरक्षण की दिशा में बड़ा आंदोलन माना जाता है। चमोली में चिपको आंदोलन की शुरुआत 1970 के दशक में सुंदरलाल बहुगुणा द्वारा एक अहिंसक आंदोलन के तौर पर हुई थी। ‘चिपको’ नाम के मुताबिक लोग पेड़ों को काटने से बचाने के लिए पेड़ों से चिपक या लिपट जाते थे। ठेकेदारों को पेड़ों को काटने से बचाने के लिए यह आंदोलन गांधी जी की अहिंसा की नीति पर आधारित था। 1973 में वन विभाग के ठेकेदारों ने जंगलों के पेड़ों की कटाई शुरू कर दी थी और तभी चिपको आंदोलन पैदा हुआ। इसके बाद राज्य के सभी पहाड़ी जिलों में यह आंदोलन फैल गया।

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