2 साल की उम्र में मेरी एक आंख चली गईं, सड़क हादसे में पापा तीन साल घर रहे, कंपनी ने हटा दिया, हिम्मत नहीं हारी
रणघोष खास. अशोक नंबरदार की कलम से
मैं एडवोकेट अशोक यादव लंबरदार गांव ढाणी सुठानी में मेरा जन्म 3 नवंबर 1989 को हुआ मेरे बचपन के अंदर 2 वर्ष की आयु में बुरा हादसा हुआ पड़ोस के एक बच्चे ने खेलते हुए एक पत्थर उठा कर फेंका जो मेरी आंख के अंदर आकर लग गया। मेरी एक आंख की रोशनी चली गई उससे जैसे तैसे कर ठीक हुआ। 6 वर्ष की आयु में गांव की सरकारी स्कूल में दाखिला हो गया। मैं तीसरी कक्षा में पढ़ता था तब मेरे पापा के साथ बहुत बुरा हादसा हुआ जिसमें मेरे पापा के पैर फैक्चर हो गए। उन्हें ठीक होने में 3 साल लग गए। ठीक होने के बाद पापा की कंपनी से नौकरी चली गई और घर पर ही खेती बाड़ी का काम करना शुरू किया। मै और मेरी बहन हम दोनों पापा की मदद करते थे। घर की दयनीय हालत बहुत कमजोर हो गई और दो समय की रोटी के लाले पड़ गए। शुरूआत के दिनों में पढ़ाई में बहुत कमजोर था और आठवीं कक्षा में फेल हो गया दूसरी बार में मैंने आठवीं कक्षा पास की उसके बाद 2005 के अंदर मैं दसवीं कक्षा में भी फेल हो गया। 2006 में दूसरी दसवीं कक्षा पास की। पढ़ाई के अंदर बिल्कुल भी दिल नहीं लगता था पढ़ने का मन नहीं करता था। जब मेरी दसवीं क्लास पास हुई उसके बाद मन में एक विचार आया कि अब पढ़ना है उसके बाद मैंने पढ़ना शुरू किया। 2008 में 12वीं पास की। इसी के साथ साथ मैंने कंप्यूटर सीख लिया। 2008 के अंदर मैंने बावल कॉलेज में ग्रेजुएशन के अंदर एडमिशन लिया और बावल के एक निजी शिक्षण संस्थान के अंदर कंप्यूटर पढ़ाने का काम शुरू किया। कॉलेज में कभी-कभी जाता था बाकी समय बच्चों को कंप्यूटर शिक्षा देता था। 2011 में बीए हो गई और 3 साल बच्चों को पढ़ाते रहा। 2011 में मैंने घर पर पापा जी को अपना निजी शिक्षण संस्थान खोलने के लिए बोला जिसमें पापा जी को मना कर दिया। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। किसी तरह पापा को राजी किया। दो निजी रिश्तेदार से 50-50 हजार रुपए की मदद ली। 27 जनवरी 2013 को बावल के अंदर आईएसएस कंप्यूटर सेंटर खोला और बच्चों को शिक्षा देना शुरू किया। 2016 में मेरे गांव के नंबरदार की मृत्यु हो गई और मैंने भी फार्म भरा मेरे को गांव का नंबरदार डीसी सर ने नियुक्त किया। 2019 के अंदर साथ-साथ मैंने पढ़ाई जारी रखी है इस दौरान मैने पीजीडीसीए , एमएससी आईटी, और अब एलएलबी की पढ़ाई पूरी की। सामाजिक कार्यों में बढ़ चढ़कर भाग लेता हूं। अभी तक 10 बार खून डोनेट कर चुका हूं जिसे जरूरतमंद लोगों की सहायता हो सके। मेरा सिर्फ इतना कहना है कि हर इंसान के जीवन में उतार चढ़ाव आता है बस भटके नहीं। दिशा सही होनी चाहिए। एक ना एक दिन मंजिल जरूर मिलती है।