यह समय चुप रहने का नहीं सवाल करने का है

पीएम मोदी साहब कोरोना धूर्त- बहुरुपिया है तो आक्सीजन- वेंटीलेटर की कमी से हो रही मौतों के हत्यारें को क्या कहेंगे


 रणघोष खास. प्रदीप नारायण


 पीएम नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को कोरोना वायरस से बने हालातों पर 10 राज्यों के 54 अधिकारियों से मीटिंग की। बातचीत में उन्होंने कहा कि कोरोना अपना चेहरा बदलने में माहिर है या कहें कि ये बहुरूपिया तो है ही, धूर्त भी है। इसलिए इससे निपटने के हमारे तरीके और हमारी रणनीति भी विशेष होनी चाहिए। पीएम मोदी साहब के इस बयान में छिपी सोच पर गौर करिए। उनके हिसाब से या तो यह वायरस चीन- पाक की तरह हमारा तीसरा सबसे बड़ा दुश्मन बनकर सामने आया है। यह बात सच साबित नहीं होती। वजह इस कोरोना ने पिछले 18 महीनों में अकेले भारत में नहीं पूरे विश्व में तबाही मचाई है। दूसरा यह वायरस इंसान  की किसी भी शक्ल में नजर नहीं आता।  ऐसे में यह धूर्त या बहुरूपिया कैसे हो गया। ये शब्द तो इंसानों की करतूतों- से जन्मीं विशेषताएं हैं। मोदी जी के इस बयान के बाद रहा नहीं गया। हमने पिछले डेढ़ माह से देश में कोरोना की दूसरी लहर से मचे विध्वंस से धूर्त ओर बहुरूपिया का पता करना शुरू कर दिया। इसका असली चेहरा हम दिखाने और बताने जा रहे हैं। इसी से साफ जाहिर हो जाएगा कि असली धूर्त और बहुरूपिया कौन है।  

देश के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने 7 मार्च को कोविड-19 महामारी पर विजय का ऐलान करते हुए कहा था, “भारत में कोरोना के खिलाफ लड़ाई आखिरी चरण में है। जैसे ही यह बयान दिया कोविड नियमों का उल्लंघन शुरू हो गया। बड़ीबड़ी रैलियां, धार्मिक आयोजन और किसान प्रदर्शनों ने कोरोना का मजाक उड़ाना शुरू कर दिया। उन दिनों भारत कोविड-19 वैक्सीन का निर्यात भी कर रहा था, जिसकी प्रशंसा करते हुए डॉ. हर्षवर्धन ने कहा था, “पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत दुनिया की फार्मेसी बनकर उभरा है।स्वास्थ्य मंत्री का तात्पर्य यह था कि भारत वैक्सीन के मामले में सिर्फ आत्मनिर्भर है, बल्कि दूसरे अनेक देशों की मदद भी कर रहा है। सरकार में अन्यत्र से भी ऐसी तारीफें आने लगीं। विदेश सचिव हर्ष वी. शृंगला ने 30 मार्च को स्तुतिगान करते हुए विश्व स्तर पर दवाओं और अब वैक्सीन की मांग पूरी करने में भारत की भूमिका का जिक्र किया था। उन्होंने इसे पीएम के आत्मनिर्भर भारत मिशन का बेहतरीन उदाहरण बताया। तारीफों की इस मुनादी को एक महीना भी नहीं बीता था कि देश के स्वास्थ्य ढांचे का यह दावा कोरोना की दूसरी लहर के कदम पड़ते ही मलबे में दफन होता चला गया। ऑक्सीजन के लिए हांफते मरीज, अस्पतालों में बेड के लिए यहां से वहां भागते लोग और जीवन रक्षक दवाओं के लिए हताश लोगों की सोशल मीडिया पर गुहार ने बताया कि भारत में महामारी की दूसरी लहर ने कैसा विध्वंस मचाया है। सरकार को वैक्सीन का निर्यात रोकना पड़ा और ऑक्सीजन तथा वेंटिलेटर का आयात करना पड़ा। अमेरिका, इंग्लैंड, यूरोप, जापान और विश्व स्वास्थ्य संगठन की तरफ से अधिकृत कोविड-19 वैक्सीन का आयात कर उनके इमरजेंसी इस्तेमाल की अनुमति देनी पड़ी। सड़कों पर दम तोड़ते मरीजों के परिजनों की हृदय विदारक चीखें और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में लाशों के ढेर के अंतिम संस्कार की तस्वीरें आने के बाद जब लगने लगा कि हालात काबू से बाहर हो रहे हैं, तो आपकी पार्टी के नेताओं ने अपनी धूर्तता व बहुरूपियापन में दिए गए बयानों को छिपाने के लिए आपकी तारीफ में प्रचार को कई गुना बढ़ा दिया। 7 साल तक हमने आंख बंद कर आपकी हर बात को माना है। अब ओर बर्दास्त नहीं होता है। हम धूर्त व बहुरूपिए नहीं बनना चाहते। इसलिए चारों तरफ दिन रात कानों में चीखें सुनाई पड़ रही है। जिधर देखो बेबसी और लाचारी का मंजर दिखाई देता है। ऐसे में हम कैसे आंखें बंद कर कोरोना को धूर्त और बहुरूपिया मान ले जबकि सारी करतूतें तो हम इंसानों की है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *