रणघोष की सीधी सपाट बात

गौर से कोचिंग सेंटर- एकेडमी- स्कूलों के विज्ञापनों को देखिए एक बच्चे पर तीनों का कब्जा


-इसे देखकर ज्ञान की देवी मां सरस्वती हैरान है ओर अब उसने भी हार मान ली है कि मौजूदा हालात में सबकुछ संभव है। शिक्षा बाजार बन चुकी है, गुरु सैल्समैन, माता पिता उपभोक्ता और बच्चे प्रोडेक्ट। इसी  वजह से  हर 55 मिनट में देश में 5  विद्यार्थी आत्महत्या करने के लिए मजबूर है।


रणघोष खास. सुभाष चौधरी


नए दाखिलों का समय आते ही  शिक्षा का बाजार सज चुका है। उपभोक्ता बने माता- पिता ओर प्रोडेक्ट में तब्दील हो चुके बच्चों की मनो स्थिति पर भी अलग अलग तरह के आक्रमण हो चुके हैं। इसका बड़ा प्रमाण सामने आया हैं जब एक बच्चे की सफलता पर तीन शिक्षण संस्थाएं एक साथ दावा कर रही है कि यह बच्चा उनकी बदौलत कामयाब हुआ है। लिहाजा कोचिंग सेंटर- एकेडमी एवं प्राइवेट स्कूलों की तरफ से प्रकाशित विज्ञापनों में अधिकतर एक ही बच्चे नजर आ रहे है। गौर से सैनिक- मिल्ट्री, एनडीए, नीट, आईआईटी शिक्षण संस्थानों में चयन को लेकर किए जा रहे दावों को देखिए।इतनी सीटें नहीं होती हैं उससे ज्यादा बच्चों को सफल बताकर दाखिला करा दिया जाता है। सरकार के शिक्षा विभाग से मान्यता लेकर खुले प्राइवेट स्कूलों को अपने बच्चों की उपलब्धि को दर्शाना समझ में आता है लेकिन कोचिंग सेंटर व एकेडमी सार्वजनिक तौर पर यह दावा करें कि यह बच्चा उनकी मेहनत के कारण सफल हुआ है तो उनका दावा हवा में नजर आता है। शिक्षा विभाग की नजर में इनकी कोई मान्यता नहीं है। शर्मसार करने वाली बात यह है कि कोचिंग सेंटरों व एकेडमियों में दिन भर पढ़ने वाले बच्चों की हाजिरी अन्य  स्कूल में लग रही होती है। शिक्षा जगत में बेहतर शिक्षा के नाम पर यह सबसे बड़ा छलावा, धोखा व झूठ की बुनियाद का सबसे बड़ा प्रमाण है। इन बाजारू शिक्षकों को सही मान लिया जाए तो इसका मतलब एक बच्चे ने एक ही समय में तीन शैक्षणिक संस्थानों में शिक्षा ग्रहण इस सृष्टि में चमत्कार पैदा कर दिया है। इसे देख ज्ञान की देवी मां सरस्वती हैरान है ओर अब उसने हार भी मान ली है कि मौजूदा हालात में सबकुछ संभव है। शिक्षा बाजार बन चुकी है, गुरु सैल्समैन, माता पिता उपभोक्ता और बच्चे प्रोडेक्ट। इसलिए एक बच्चा स्कूल में पढ़ाई के तुरंत बाद कोचिंग जाता है। अपने शरीर की मशीन को थोड़ा सा विश्राम देने के बाद ऑन लाइन या आस पास गुरुजी की एकेडमी में पहुंच जाता है। मां घर में बच्चे की खुराक पर फोकस करती है तो पिता प्रोडेक्ट में तब्दील होते अपने बच्चे पर हो रहे खर्चे के बजट को जोड़ने के लिए अतिरिक्त मेहनत में जुटा रहता है। नतीजा घर में ना माता पिता के पास समय है बचा है ओर ना बच्चे के पास सोचने समझने की क्षमता। स्कूल- कोचिंग सेंटर व टयूशन वालों के लिए यह बच्चे सोने का अंडा देने वाली मुर्गी की तरह है इसलिए बड़े प्यार से उनका ख्याल रखते है कि कहीं दुबक कर दूसरे ठिकाने पर नहीं पहुंच पाए। जिस तरह कोविड-19 के हमलों ने पूरे जगत में इंसानी हैसियत बताकर रख दी थी। अब वही स्थिति शिक्षा के बाजार में नजर आ रही है। यहां बच्चों में पैदा हो रहे तनाव- डिप्रेशन, बिगड़ते स्वास्थ्य, माता-पिता का  अंसतुलित बजट, बाजारू शिक्षकों में आपसी होड, एक दूसरे को नीचा दिखाने की प्रवृति रूटीन मे आ चुकी है। सभी मिलकर बच्चों को नंबरों की काली कोठरी में धकेलकर उन्हें जिंदा लाश में तब्दील कर रहे है। इसलिए साल भर होने वाली तरह तरह की परीक्षाओं के आने वाले परिणाम का नाम सुनते ही बच्चे अंदर से इतने सहम जाते हैं मानो उनकी जिंदगी- मौत का फैसला होने जा रहा है। ऐसा नहीं है कि सरकार को इसकी जानकारी नहीं है, शिक्षा अधिकारी भोले व अनजान है। माता-पिता मजबूर है या खुद को शिक्षक कहने वाले इसे समय की जरूरत बताकर इसे सही बता रहे हैं। राष्ट्रीय  अपराध रिकार्ड ब्यूरो की जारी रिपोर्ट उन्हें बेनकाब कर रही है जिससे वे चाहकर भी नहीं बच सकते हैं। इन मौजूदा हालातों की वजह से  हर 55 मिनट में देश में 5  विद्यार्थी आत्महत्या करने के लिए मजबूर है।पिछले 5 साल में स्टूडेंट द्वारा आत्महत्या करने के मामले में करीब 52 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। देश भर में सबसे ज्यादा सिक्किम के स्टूडेंट्स (37.5%) आत्महत्या करते हैं, जबकि छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में 27% से ज्यादा स्टूडेंट्स आत्महत्या करते हैं। तमिलनाडु, केरल, त्रिपुरा इस मामले में क्रमश: चौथे, पांचवें और छठें स्थान पर हैं। स्टूडेंट्स की खुदकुशी के मामले में महाराष्ट्र 10वें स्थान पर है, जहां 14.2% स्टूडेंट्स आत्महत्या करते हैं। साल 2016 में यहां 1,350 और साल 2018 में 1,458 छात्रों ने आत्महत्या की है। इनमें 66% आत्महत्या की घटनाएं मुंबई और आसपास की हैं। आयु सीमा की बात करें तो भारत में 15 से 29 वर्ष की उम्र के युवा सबसे ज्यादा आत्महत्या करते हैं।