हर्ष की मौत रूटीन मानकर भूल जाइए..
शुक्र है सरकारी स्कूल में शिक्षक- अधिकारी के बच्चे नहीं पढ़ते..
रणघोष खास. सुभाष चौधरी
आशिया की गौरावास सरकारी स्कूल में कक्षा 10 वीं के छात्र हर्ष की किसी जहरीले जानवर के काटे जाने से मृत्य हो गईं। घटना के बाद ग्रामीणों को गुस्सा आया और उन्होंने स्कूल से ताला जड़कर शिक्षकों की क्लास लेनी शुरू कर दी।
कायदे से यह घटना सरकारी मानसिकता के हिसाब से रूटीन की तरह है। जिसकी वजह से छात्र की मौत हुई वह हत्यारा जानवर निकला लिहाजा पुलिस एफआईआर भी दर्ज नहीं कर सकती। जहां तक शिक्षकों व मौके पर पहुंचे अधिकारियों की बात है। शुक्र है कि उनके बच्चे स्कूल में नहीं पढ़ते इसलिए बचाव हो गया। जिस छात्र की मौत हुई है वह जरूरतमंद परिवार से होगा। इसलिए सरकारी स्कूल में बेहतर भविष्य की उम्मीद लेकर आया था। इसलिए कुछ दिन बाद मामला सहानुभूति में बहकर स्वत: ही खत्म हो जाएगा। देखा जाए तो इस घटना से शिक्षकों को नुकसान कम फायदा ज्यादा होगा। पहला स्कूल की पूरी सफाई हो जाएगी। इस पर खर्च होने वाले बजट को लेकर भी कोई टालमटोल नहीं होगा। परेड में गुरुजन हर्ष की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करेंगे। साथ ही बच्चों को स्कूल प्रांगण में समय समय पर सफाई अभियान के लिए प्रेरित करेंगे। इस घटना से बच्चों की संख्या में कमी आ सकती है। उससे शिक्षकों, कर्मचारियों की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा। वजह सरकारी स्कूल इतने बेहतर होते तो शिक्षक ही अपने बच्चों को प्राइवेट में क्यों भेजते। है ना कमाल की बात। एक से डेढ़ लाख रुपए का वेतन लेने वाले सरकारी शिक्षकों के बच्चों को 10 से 15 हजार लेने वाले पाइवेट स्कूल के शिक्षक पढ़ाते हैं। कायदे से देखा जाए तो जानवर ने हर्ष को नहीं सिस्टम को डंक मारकर उसकी औकात बताई है। हर्ष की कुर्बानी व्यर्थ जाएगी वजह जानवर से ज्यादा हमारे सिस्टम में इतना जहर फैला हुआ है कि हर कोई मौका लगते ही एक दूसरे को डंक मारने को उतारू है। सोचिए किसी शिक्षण संस्थान में सफाई व्यवस्था नहीं होने की कीमत हर्ष जैसे छात्र को अपनी जान देकर चुकानी पड़ती है वहां कार्यरत शिक्षक क्या सोचकर किस मानसिकता के साथ अपने घर से स्कूल आते हैं। हमारी शिक्षा व्यवस्था का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि हमारे सरकारी स्कूलों में कार्यरत शिक्षक अब बेहतर गुरु का उदाहरण नहीं बन पा रहे हैं। वे वेतनभोगी कर्मचारी बनकर रह गए हैं जिनका मकसद सिर्फ अपने बच्चों को कामयाब बनाकर उनके उदाहरण से खुद की श्रेष्ठता को साबित करना है। इसलिए शिक्षकों की कथनी करनी मेल नहीं खाती। वे जितना बच्चों को मार्गदर्शित करते हैं असल जिंदगी में वे सबसे ज्यादा भटक चुके हैं इसी वजह से हर्ष जैसे मासूमों को कीमत चुकानी पड़ती है।