रणघोष की सीधी सपाट बात

ईओ अभय सिंह का सस्पेंड होना नप में भ्रष्टाचार के गोदाम से सेंपल आना जैसा है, बात खत्म..  


 -इस बात को स्वीकार कर लिजिए सरकारी सिस्टम को असल में अधिकारी नहीं दलालों का झुंड चलाता है जो दफ्तरों के  बाहर चील- गिद्ध की शक्ल में शिकार की तलाश में रहते हैं। सांझ ढलते ही यहीं झुंड शिकार का गोश्त लेकर उस बाज के पास एकत्र हो आता हैं जिसे हम दिन में डयूटी के समय छोटे– बड़े अधिकारी की शक्ल में देखते हैं। जो अधिकारी बाज नहीं बनते उसके पर काट दिए जाते हैं कि वह अपनी उडान नहीं भर सके।  


रणघोष खास. सुभाष चौधरी


नगर परिषद रेवाड़ी के कार्यकारी अधिकारी अभय सिंह को एनडीसी जारी करने के नाम पर 2 लाख रुपए रिश्वत लेने के आरोप को सही साबित करने के लिए हरियाणा स्टेट विजिलेंस को पांच महीने लगे। इन महीनों में अभय सिंह ने सीट पर रहते हुए ऐसा क्या किया होगा जो उसे बेगुनाह साबित कर दें और और ऐसा क्या नहीं किया होगा जिससे लगे की नप में भ्रष्टाचार का दम घुटने लगा है। इस  पूरे मामले को ईमानदारी की स्याही से पढ़ा जाए तो यह महज रस्म अदायगी है। किसी भी विभाग में एक अधिकारी या कर्मचारी अकेला लूटपाट नहीं कर सकता। उसके आस पास ऐसा नेटवर्क होता है जो भ्रष्टाचार को समाज की नजर में ब्यूटी पार्लर की तरह दिखाता है। जिस तरह मेकअप के पीछे असली चेहरा छिपा रहता है उसी तरह दलालों के हाथों में पहुंची अलग अलग रास्तों से होते हुए ओके में बदल जाती है। ऐसे में अभय सिंह पूरी तरह से भ्रष्ट है तो नीचे से चली फाइलों को ऊपर तक पहुंचाने वाले क्या ईमानदार थे। यह ठीक है अभय सिंह ने अपनी पॉवर का दुरुपयोग किया तो क्या अन्य कर्मचारियों को उस समय विरोध नहीं करना चाहिए था। यह विरोध नहीं करना ही सही मायनों में भ्रष्टाचार के जन्म की वजह होता है। जब हम घर में बच्चों को गलत काम करने पर तुरंत डांटते हैं और मौके पर सजा भी तय करते हैं ताकि वह दुबारा ऐसा नहीं करने की हिम्मत नहीं दिखा पाए। वहीं मानसिकता सरकारी सिस्टम में नजर नहीं  आने से ही डयूटी के नाम पर नाजायज वसूली का धंधा बन जाती है। रेवाड़ी नगर परिषद में स्थिति यह है कि आज कोई भी नगर पार्षद, कर्मचारी व अधिकारी अपनी गारंटी लेकर भी यह दावा नहीं कर सकता कि वह पूरी तरह से ईमानदार है। नगर परिषद में मीटिंग के नाम पर हो जो हंगामा होता है उस शोर में भ्रष्टाचार इंजवाय कर रहा होता है। अधिकारियों व कर्मचारियों को पता है कि पार्षद आपस में बंटे हुए हैं। कुछ अनाप शनाप खर्च करके यहां तक पहुंचे हैं तो कुछ अपनी छवि से। नगर परिषद के ठेकेदारों के पास अच्छा खासा अनुभव है कि उसकी पेमेंट किस रास्तें से गुजरकर उसके खाते में पहुंचती है। शिकायतकर्ता जगदीश सैनी ने हिम्मत दिखाते हुए अपनी लड़ाई को जारी रखा तो  नप में भ्रष्टाचार के गोदाम से ईओ के तौर पर भ्रष्टाचार का सेंपल बाहर आया। इस कार्रवाई से ना तो गोदाम में भ्रष्टाचार का उत्पादन बंद हुआ है और ना हीं इसकी उम्मीद की जा सकती है। इसकी वजह खुद के प्रति ईमानदार होना और साबित करना सबसे बड़ी चुनौती है। इस कटु सत्य को हरगिज नहीं भूलना चाहिए वर्तमान में ईमानदारी की परिभाषा निजी हितों से  तय होती है। ईमानदार वो है जो अभी तक रंगे हाथों पकड़ा नहीं गया है। कुल मिलाकर आज नहीं तो कल अभय यादव बहाल होकर इसी सीट पर नजर आएंगे और वहीं लोग माला लेकर स्वागत करते नजर आएंगे जो उसे हटाए जाने पर भी खुश नजर आ रहे थे। इस बात को स्वीकार कर लिजिए सरकारी सिस्टम को असल में अधिकारी नहीं दलालों का झुंड चलाता है जो दफ्तरों के  बाहर चील- गिद्ध की शक्ल में शिकार की तलाश में रहते हैं। सांझ ढलते ही यहीं झुंड शिकार का गोश्त लेकर बाज के पास नजर आता हैं जिसे हम दिन में किसी ना किसी छोटे– बड़े अधिकारी की शक्ल में देखते हैं। जो अधिकारी बाज नहीं बनता उसके पर  काट दिए जाते हैं कि वह अपनी उडान नहीं भर सके।