रणघोष की सीधी सपाट बात : 80 फीसदी भाजपाई की पहचान आईकार्ड से, इसमें 50 प्रतिशत अवसरवादी

रणघोष खास. सुभाष चौधरी

देश की राजनीति का सबसे बड़ा कुनबा भाजपा में 80 प्रतिशत कार्यकर्ताओं की पहचान भाजपा का सदस्य बताने पर होती है। पर्स में भाजपा का आईकार्ड होना या रखना ही एक साथ  उनकी कई समस्या का निवारण है।शेष 20 प्रतिशत वो चेहरे हैं जो भाजपा के जन्म से जुड़कर आज भी चटटान की तरह खड़े हैं ओर क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाए हुए हैं।

यह स्थिति अमूमन सभी राजनीतिक दलों में एक जैसी रहती है। भाजपा का जिक्र इसलिए जरूरी है कि यह देश की सबसे बड़ी पार्टी होने के साथ साथ  व्यक्ति विशेष से ज्यादा संगठन के तौर पर बेहद मजबूत है। जिन 80 प्रतिशत कार्यकर्ताओं का जिक्र कर  रहे हैं उसमें 50 प्रतिशत अवसररवादी है जो सत्ता के साथ चलते हैं। यह शार्ट कट राजनीति विचारधारा की सोच रखते हैँ। इनका मकसद सत्ताधारी पार्टी से जुड़े अपने पेशे, व्यवसाय को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष तौर पर सुरक्षित ओर मजबूत करना है। साथ ही प्रशासन में अपनी पहचान बनाकर अपने आर्थिक हितों का साधना है। इसलिए ये चेहरे होने वाले आयोजनों के खर्चों को निजी तौर पर वहन कर पर्दे के पीछे या हैसियत के हिसाब से मंच पर मौजूदगी दिखाते नजर आते हैं। ये मीडिया में विज्ञापन देकर आसानी से चर्चा बटोरने की कला में भी पारंगत हैं। जब संगठन  की पोजीशन बिगड़ने या बिखरने लगती है तो सबसे पहले इसी तरह के कार्यकर्ता संगठन को राम राम मतलब छोड़ने में एक पल भी नहीं सोचते। आर्थिक तौर पर इनकी स्थिति अन्य समर्पित कार्यकर्ताओं से बेहद मजबूत रहती है इसलिए बहुत से निर्णयों में इनका दखल भी रहता है। मौजूदा हालात में  बिना अर्थ के राजनीति एक कदम भी नहीं आगे बढ़ सकती। यही हालात ऐसे कार्यकर्ताओं के मंसूबे पूरा करने में राम बाण की तरह काम करते हैं। इसी तरह 80 प्रतिशत में बचे अन्य 50 प्रतिशत कार्यकर्ता साधारण परिवार व जरूरत के हिसाब से जुड़े हैं। शक्ति प्रदर्शन या कार्यक्रमों में ताली बजाने के तौर पर इनकी मौजूदगी रहती है। इन्हें घर से गाड़ी में बैठाकर आयोजन में शामिल होने से लेकर सेवा पानी करने की पूरी जिम्मेदारी अवसरवादी कार्यकर्ताओं की होती है। इसके लिए बकायदा विडियोग्राफी से रिपोर्ट बनती है।  आमतौर पर ये आवश्यक मीटिंग या आयोजनों में ही अपनी मौजूदगी दिखाते हैं। गौर करने लायक बात यह है कि इसमें भी आधे से ज्यादा कार्यकर्ता अन्य दलों या क्षेत्र के असरदार नेता से भी वैसा संबंध रखते हैं। ऐसे कार्यकर्ता भी हवा का रूख देकर कभी भी किसी भी समय गणित बिगाड़ सकते हैं क्योंकि इन्हें समझना ओर विश्वास में रखना किसी  के लिए आसान नहीं है।    

 कुल मिलाकर यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि किसी भी राजनीतिक दलों में आधे से ज्यादा कार्यकर्ता किसी विचारधारा से नहीं अवसरवादी व निजी हितों की सोच से जुड़े हैं। इसकी असल तस्वीर  छोटे बड़े चुनावों में बड़े स्तर पर इधर उधर मचने वाली भगदड़ से महसूस की जा सकती है। इसलिए तमाम प्रयासों के बावजूद इस तरह के कार्यकर्ताओं को संभालना किसी भी राजनीतिक प्रबंधन के लिए सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है।

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