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केएलपी कॉलेज ने चार सालों में बहुत कुछ गंवा दिया, चुनाव के बहाने सामने आ रहा छिपा हुआ सच


रेवाड़ी की पहचान को देश प्रदेश तक पहुंचाने वाले प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान केएलपी कॉलेज पिछले चार सालों से बेहतर शिक्षा से ज्यादा अलग अलग विवादों में सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोर रहा है। पब्लिक एजुकेशन बोर्ड के तहत आने वाले इस कॉलेज पर अलग अलग अलग वजहों से लगे  धब्बों को धोने के लिए कॉलेज प्रबंधन समिति के चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गई है। कॉलेजियम सिस्टम से होने वाले इस चुनाव के लिए नामाकंन का पहला चरण पूरा हो चुका है। वोटों की संख्या के आधार पर कुल 70 सदस्यों का कॉलोजियम बनाया गया है। जिसमें 47 निर्विरोध चुन लिए गए हैं। शेष को 23 मेंबरों को लेकर 4  अप्रैल को मतदान होना है। महिला राजकीय कॉलेज के रिटायर प्राचार्य डॉ. कमलेश यादव को इस चुनाव के लिए निर्वाचन अधिकारी बनाया गया है। इस बार चुनाव का चेहरा, अंदाज और तौर तरीका एकदम बदला हुआ है। निर्वाचित कॉलेजियम सदस्य मिलकर केएलपी कॉलेज प्रबंधन समिति के प्रधान का चुनाव करेंगे। हालांकि अभी चुनाव पर कोर्ट की तलवार लटकी हुई है। इस चुनाव प्रक्रिया के खिलाफ कुछ लोग पंजाब- हरियाणा हाईकोर्ट में चले गए हैं जहां उन्हें अभी कोई राहत नहीं मिली है। कोर्ट ने 5 मई की तारीख दी है। इससे पहले चुनाव की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी। चुनाव में उत्साह एवं आपसी परस्पर भाईचारा पूरी तरह से बिखरा हुआ नजर आ रहा है। चुनाव लड़ रहे सदस्यों से ये साफ नहीं हो पा रहा है कि कौन किस मकसद से मैदान में उतरा है। हालात यह है कि कुछ मेंबर तो 80 साल की उम्र पार होने के बाद भी चुनाव लड़ रहे हैं तो कुछ ने अपना पूरा परिवार ही चुनाव में उतार दिया है। इस चुनाव में लगभग 1200 सदस्य अपने मत का प्रयोग करेंगे। चुनाव को लेकर सभी सदस्यों में सहमति नहीं है। एक धड़ा चुनाव कराने की प्रक्रिया पर ही सवाल खड़े कर रहा है। उसका कहना है कि चुनाव से पहले साधारण मीटिंग बुलाई जाती है। वह नहीं हुईं। महिला- एससी- एसटी एवं ओबीसी वार्ड आरक्षित के लिए ड्रा निकालने की प्रक्रिया को अमल में नहीं लाया गया। बड़ी चालाकी से एक धड़े ने चुपचाप चुनाव की प्रक्रिया को आनन फानन में शुरू कर बेहद ही कम समय का फॉरमेट लागू कर दिया। एक धड़े का यह भी कहना है कि केएलपी कॉलेज में सरकार के सहयोग से हर साल करोड़ों रुपए का खर्च होता है। निर्माण कार्य चलते रहते हैं। इसमें इस कॉलेज से जुड़े 20 से 25 सदस्य ऐसे हैं जो एक लंबे समय से कॉलेज में अपने सामान की सप्लाई करते रहे हैँ जबकि कायदे से कोटेशन एवं ई टेंडरिंग से कार्य होने चाहिए थे। कुछ सदस्यों ने इंकम टैक्स की चोरी से बचने के लिए प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष तोर पर कॉलेज के तहत खुद के लिए विशेष छूट ली हुई है। हालॉकि इस तरह की शिकायतों को लेकर चार साल पहले तत्कालीन एडीसी कैप्टन मनोज ने जांच की थी। जिसके आधार पर कुछ सदस्यों के खिलाफ एफआईआर तक दर्ज हो चुकी हैं। जिन पर यह कार्रवाई हुई उनका कहना था कि  उन्हें राजनीति साजिश के तहत निशाने पर लिया गया है। कुल मिलाकर  जिले की इस नामी शिक्षण संस्थान ने पिछले चार सालों में जो गंवाया है उसे हासिल करने के लिए नई प्रबंधन कमेटी को अच्छा खासा पसीना बहाना पड़ेगा।

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