रेवाड़ी शहर के मतदाता इस सच को भी जरूर पढ़े

चेयरपर्सन कोई बने, ओबीसी महिला सीट का सच अभी भी राज बना हुआ है


क्या वजह है कि रेवाड़ी शहर में सबसे ज्यादा सामान्य वर्ग मतदाता होते हुए भी यह सीट 2005 से आरक्षित होती आ रही है। क्या आरक्षण के नाम पर इस वर्ग के अधिकारों का हनन नहीं हो रहा


रणघोष खास. सुभाष चौधरी


नगर निकाय चुनाव का बिगुल बज चुका है। 30 दिसंबर तक सभी को चेयरमैन एवं पार्षदों की नई टीम मिल जाएगी। आचार संहिता लगने के बाद अब किसी तरह की कोई रूकावट सामने नहीं आएगी। यह चुनाव कांग्रेस- भाजपा की राजनीति का वजूद तय करेगा साथ ही एक बड़ा सवाल खड़ा कर जाएगा जिसका जवाब किसी के पास नहीं है। जिसे किसी ना किसी माध्यम से दबा दिया गया। बात कर रहे हैं इस बार नगर परिषद चेयरपर्सन के लिए आरक्षित की गईं महिला ओबीसी सीट की। 2005 से आज तक  यह सीट अभी तक आरक्षित की श्रेणी में आती रही है। कागजों में जुटाए गए आंकड़ों के गणित को इधर उधर घूमाकर आरक्षण के असल सच को छिपा दिया गया है या फिर फाइलों के नीचे हमेशा के लिए दफन कर दिया गया है। ऐसा नहीं है कि इस सच का पता लगाने के लिए प्रयास नहीं किए गए। 

आरटीआई के माध्यम से नगर निकाय को संचालित कर रहे विभाग के मुख्य सचिव से लेकर कमीश्नर तक से जानकारी मांगी गईं। फाइलें आगे भी चली ओर अचानक इधर उधर गायब हो गईं। जमीनी हकीकत यह है कि रेवाड़ी नप चेयरपर्सन के लिए जिस आधार पर इसे महिला ओबीसी आरक्षित किया गया है। शहर के कुल 31 वार्ड में एक भी ऐसा नहीं है जो महिला ओबीसी के लिए आरक्षित है। ऐसे में सवाल उठता है कि तो फिर किस आधार चेयरपर्सन के लिए इसे आरक्षित कर दिया गया। इसी तरह 2001 की जनगणना को जनसंख्या का आधार बनाकर मौजूदा जातीय समीकरण का ऐसा कागजी खाका प्रस्तुत किया जिसमें दावा किया की नगर निकाय की सीमा में रह रही आबादी में 55 प्रतिशत ओबीसी श्रेणी में आती है जो जमीनी हकीकत से मेल नहीं खाती है।

एक लाख 7 हजार के वोटर  वाली इस नप सीट पर सबसे ज्यादा एससी वर्ग के लोग है। इसके बाद सैनी पंजाबी- वैश्य, यादव, ब्राह्राण, गुर्जर, प्रजापति समेत अन्य जातियां आती है। इस सीट के आरक्षण के सच को जानने के लिए बकायदा 14 नवंबर 2019 एवं 21 जनवरी 2020 में लिखित में उच्च अधिकारियों से जानकारी भी मांगी गईं। यहां तक की अधिकारियों से मिलकर स्थिति रिपोर्ट मांगी गई लेकिन कोरे आश्वासन के अलावा कुछ नहीं हुआ। रही सही कसर कोरोना काल में इस वायरस का बहाना बनाकर पूरी कर दी गईं। नतीजा आज ओबीसी महिला चेयरपर्सन का असल सच आज तक सामने नहीं आया है।

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