शिक्षा की सुगंध फैलाती यह कहानी कुछ कह रही है..

अनुशासन- संस्कार से मुलाकात करनी है तो नसिया जी आइए


-एसडीएम विकास यादव- सीटीएम लोकेश कुमार- आईपीएस उर्वशी संस्कारों के सराबोर में नहाए इन बच्चो को देख खिलखिला उठे..


रणघोष खास. एक विद्यार्थी की कलम से

जब लगे हमारे बच्चो में संस्कार- अनुशासन और अच्छा इंसान बनने और दिखने का व्यक्तित्व उदास होकर किसी कोने में बैठा हुआ है। उसके सिर पर हाथ रखिए। हाथ पकड़कर हरियाणा के रेवाड़ी शहर की नसिया जी में स्थापित अकलंक छात्रावास में रह रहे बच्चो से उसकी मुलाकात करा दीजिए। देखना उदासी अपनी गलती मान लेगी। संस्कार- अनुशासन खिलखिलाते हुए एक आंगन से दूसरे आंगन में दौड़ते एक दूसरे को पकड़ते हुए नजर आएगे। मा सरस्वती उन्हे देखकर मुस्करा रही होगी और माता पिता का सिर गर्व में नहा उठेगा।

28 अप्रैल रविवार को रेवाड़ी जिला प्रशासन के दो अधिकारी एसडीएम विकास यादव व सीटीएम लोकेश कुमार पत्नी उर्वशी (आईपीएस ट्रेनी. हैदराबाद) के साथ नसिया जी छात्रावास पहुंचे तो उनकी आंखे बार बार संस्कारों से सराबोर इस परिवेश को खुद में समा लेने के लिए आतुर नजर आईं। वे अधिकारी होने का लिबास घर पर छोड़ आए थे। इसलिए उनके शरीर के एक एक हिस्से में संवेदनाए, भावनाए और एक दूसरे के प्रति आदर हर किसी को अपना बना रहा था।  मध्यप्रदेश, ग्वालियर की माटी में पली बड़ी आईपीएस उर्वशी बच्चो से ऐसे रूबरू हो रही थी मानो खुद से बचपन में लौट जाने की जिद कर रही थी। वह बता रही थी आईएएस- आईपीएस तो किसी तरह बन जाओगे, बेहतर इंसान  बनने के लिए अकलंक छात्रावास ही आना होगा। यहा कुल 54 बच्चो में 35 से ज्यादा मध्यप्रदेश के अलग अलग स्थानों से यहा आकर शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। विकास यादव जी पर आ जाइए। जब वे घर से यहा आने के लिए चले तो रास्ते में उनके दिलो दिमाग में शिक्षा का बाजार ब्यूटी पार्लर वाली सुदंरता की तरह अपनी तरफ आकर्षित कर रहा था। विकास चुप रहे।  नसिया जी में आकर बच्चो से मिले, बातचीत की। पीछे पलटकर देखा तो पता चला की रौब दिखा रही यह बाजारू शिक्षा नसिया के गेट से ही भाग खडी हुईं।  विकास यादव चार घंटे से अधिक समय तक रहे और अपनी अधिकारी बनने की यात्रा को सांझा किया। ऐसा लग रहा था की यह शख्सियत भी इन बच्चो में इतरा रहे संस्कारों को किसी तरह अपना लेने का बहाना तलाश रही थी। उन्हे रेवाड़ी में शिक्षा की ऐसी संजीवनी बुटटी मिल गई थी। जिससे बेहतर परिवार, स्वस्थ्य समाज और मजबूत राष्ट्र बनने से कोई नही रोक सकता।

चलिए नसिया जीकी कहानी बताते है

 आज से लगभग 169 वर्ष पूर्व सन् 1853 में भगवान श्री  शांतिनाथ स्वामी की साढ़े तीन फुट ऊंची पदमासन प्रतिमा बैलगाड़ी मे कही से लाई जा रही थी जो की रेवाड़ी में वर्तमान नसिया जी के स्थल के पास आकर ठहर गईं। लाख कोशिशों के बाद भी यह बैलगाड़ी अब आगे नही बढ़ी तो स्थानीय समाज ने अपना सौभाग्य मानकर उसी स्थान पर मंदिर निर्माण करने का विचार किया। नगर सेठ लाला खुशवक्त राय जैन व उनके सुपुत्र राय बहादुर लाला मक्खनलाल जैन ने एक विशाल भूखंड पर भव्य मंदिर का निर्माण कराया जो आज श्री 1008 शांतिनाथ दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र मंदिर नसिया जी के नाम से विख्यात है। जहा अतिशयकारी मूल नायक श्री 1008 शांतिनाथ स्वामी की मनोज्ञ पदमासन प्रतिमा अष्ट प्रातिह्रायों के साथ विराजमान है।

अब आते हैं अकलंक छात्रावास की स्थापना पर

भौतिकवादी चकाचौँध से युक्त आधुनिक युग में छात्रों को उच्च शिक्षा व श्रेष्ठ संस्कार प्रदान करने के उद्देश्य से नसिया जी के प्रांगण में संत शिरोमणि 108 आचार्य विद्या सागर के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री प्रणम्य सागर और मुनि श्री 108 चंद्र सागर जी महाराज के मंगल आशीर्वाद व प्रेरणा से देवेंद्र कुमार अशोक कुमार जैन सर्राफ परिवार व सकल दिगंबर जैन समाज रेवाड़ी के द्वारा 26 अगस्त 2017 को छात्रावास का शिलान्यास किया गया। जिसका उदघाटन 14 अप्रैल 2019 को श्रमण संस्क़ृति संस्थान के निदेशक डॉ. शीतलचंद जैन  प्राचार्य जयपुर व मुनि प्रणम्य सागर जी महाराज के संघस्थ व्रती धर्मचंद जैन जयपुर के कर कमलों द्वारा किया गया।

इन हाथों में शिक्षा मंदिर की तरह चल रहा छात्रावास

आज नसिया जी और इस छात्रावास को वर्तमान में जैन समाज के प्रधान पदम कुमार जैन, अरविंद कुमार जैन, उपप्रधान राकेश जैन, सचिव राजेश कुमार जैन शास्त्री और कोषाध्यक्ष चुन्नीलाल जैन, श्री दिगंबर जैन समाज रेवाड़ी के प्रधान राहुल जैन, भगवान महाबीर विद्यापीठ रेवाड़ी के प्रधान प्रदीप जैन, जैन एजुकेशन बोर्ड रेवाड़ी के प्रधान राजकुमार जैन, उपप्रधान मोहित जैन, नसिया जी मंदिर रेवाड़ी के सचिव अजय जैन, अकलंक शरणालय छात्रावास के पूर्व प्रधान प्रवीन जैन समेत देशभर से अनेक जैन बंधुओं ने इसे शिक्षा मंदिर और घर की तरह संभाला हुआ है।