सभी डॉक्टर्स से निवेदन है कि इस लेख में अगर सत्यता नहीं है तो लिखित में इसका जोरदार खंडन करें। अलग अलग रास्तों से हमला करें। एकदम सही है तो मानवता- इंसानियत के नाते आगे आए। अगर यह भी नहीं करते हैं तो संसार की सभी पुस्तकों से डॉक्टरों को धरती का भगवान की संज्ञा देने वाले शब्दों को हमेशा के लिए मिटा दीजिए।

कोरोना से ज्यादा खतरनाक जान लेवा डॉक्टरों की कमीशनखोरी, नकली रेमडेशिविर बेचने वाले जमानत लेकर फिर मैदान में उतरे


रणघोष खास. प्रदीप नारायण


मरीजों के इलाज के नाम पर पैसो की हवस में भयंकर तरीके से पीड़ित गंभीर डॉक्टरों के लिए यह अच्छी खबर है कि रेवाड़ी समेत अनेक अस्पतालो में नकली रेमडेशिविर इंजेक्शन की सप्लाई करने वाले दलाल सत्यनारायण की जमानत हो गई है। अब वह आसानी से कमीशनखोरी के रास्ते मरीजों का इलाज करने वाले डॉक्टरों से मिलकर लूट के इस कारोबार को नए सिरे से शुरू कर देगा। ऐसा ही एक मामला ग्रुरुग्राम का है जहां एक दलाल को हैदराबाद के होटल में इन्हीं नकली रेमडेशिविर इंजेक्शन के साथ पकड़ा गया था। आज इसी दलाल ने कुछ दिन पहले साउथ सिटी में तीन करोड़ की कोठी का मुर्हुत किया है जबकि इस धंधे से जुड़ने से पहले उसकी आर्थिक पृष्ठभूमि जीरो थी। ऐसे में एक बात समझ में नहीं आती पुलिस क्या सोचकर नकली दवाइयां बेचने वालों को पकड़ती है और कोर्ट क्या देखकर इन्हें आसानी से जमानत दे देता है। जब नकली दवाईयां एवं इंजेक्शन के मामले में आरोपी झटपट अपने पुराने ठिकाने पर आ जाते है तो फिर पुलिस बेवजह इतनी बड़ी एक्सरसाइज करके मीडिया में क्यों झूठी वाही वाही लूटती है। दूसरा हमारे कानून की धारा इस तरह के मामलों में कमजोर है तो फिर कायदे से नकली दवाइयों का कारोबार करने वालों को ऐसा करने का खुला लाइसेंस ही दे देना चाहिए। कम से कम सरकार के खजाने में कमाई तो होगी। हो सकता है कि आगे चलकर इसी कमाई का कुछ हिस्सा सत्ता में बैठे हमारे नेता- मंत्री नकली दवाईयों के इस्तेमाल से मरे मरीजों के परिजनों को आर्थिक सहायता के तौर पर देने का एलान कर दें। हमारे देश में ऐसा करना चुटकी बजाने जैसा है। राम- रहीम- वाहे गुरु के इस देश में 100 में 80 बेईमान फिर भी भारत महान है का जादू आज भी सिर चढ़कर बोलता है।

मार्च 2020 से लेकर आज तक कोरोना के नाम पर किस अस्पताल या किस डॉक्टर्स ने मानवता और इंसानियत दिखाई और किसने इस वायरस को धरती का सबसे बड़ा डर बनाकर बेहताशा कमाई की। इस राज से पर्दा इसलिए आसानी से नहीं हट सकता क्योंकि सबकुछ दिमाग के सॉफ‌टवेयर में सुरक्षित है। जब कोरोना जैसा वायरस इनकी जिंदगी में हमला करता है तो फिर राज से पर्दाफाश होता है। इनकी यह कमाई भी धरी रह जाती है। वजह नेचुरल जस्टिस में पैसा कभी मौत को नहीं खरीद सकता बाकि सबकुछ संभव है। हम रेवाड़ी में खुले छोटे- बड़े अस्पतालों पर बनी रिपोर्ट के आधार पर आपको जो बताने जा रहे हैं उस पर हैरान होने की जरूरत नहीं है। अमूमन देश के हर कोने की यह तस्वीर नजर आ जाएगी। फर्क इतना है कि इलाज के नाम पर कमीशनखोरी कहीं ज्यादा है तो कहीं कम। हमने पुराने- नए अस्पतालों के ऐसे डॉक्टर्स से बातचीत की जिनकी लिखी दवा किसी भी मेडिकल स्टोर पर आसानी से मिल जाती है। जाहिर है  इन डॉक्टरों ने कमीशनखोरी से खुद को दूर रखा हुआ है। रेवाड़ी शहर में 80 प्रतिशत प्राइवेट अस्पताल कमीशन के खेल पर जिंदा है और मजबूती से आगे बढ़ रहे हैं। इसलिए देखा होगा कि इन अस्पतालों में अलग से मार्केटिंग विभाग की एक मजबूत टीम होती है जो दिनभर क्या करती है। यह किसी भी कर्मचारी से पूछकर समझा जा सकता है। ऐसा तो है नहीं की यह टीम डॉक्टरों के इलाज में सहयोग करती हो, मरीजों की देखभाल में शामिल होती है या असली नकली दवाइयों की पहचान के लिए तैनात हो। इनका काम जिलेभर में डॉक्टरों से संपर्क कर मरीजों को इधर उधर अस्पतालों में भर्ती कराना है। गांव की आशा वर्कर, एंबुलेंस चालक, झोलाछाप डॉक्टर्स, सीएचसी, पीएचसी में कार्यरत स्वास्थ्य कर्मचारियों का मरीजों को अस्पताल पहुंचाने के नाम पर कमीशन तय करना इस टीम का असल काम है।  आशावर्कर के पास हर गांव की रिपोर्ट होती है कि किस महिला की कब डिलीवरी होनी है। इसलिए देखा होगा बहुत सी आशा वर्कर जो कहने को सरकार से सम्मानजनक वेतन के लिए सड़कों पर प्रदर्शन करते हुए नजर आती है असल में वेतन से कई गुणा तो वह प्राइवेट अस्तपालों से मरीज भर्ती कराने के नाम पर कमा लेती है। यह कमीशन भी 15 प्रतिशत से 50 प्रतिशत तक होता है। साथ ही गांवों में लगने वाले नि:शुल्क स्वास्थ्य कैंप भी मरीजों को अपने अस्पताल में भर्ती कराने का जरिया होता है। कमीशनखोरी के खेल में कौन किस भूमिका को सलीके से निभाता है।

इसे हम आने वाले दिनों में पूरी विस्तार एवं सिलसिलेवार ढंग से बताएंगे। एक मोटे अनुमान के तौर पर अकेले रेवाड़ी में सभी छोटे- बड़े अस्पतालों को मिलाकर हर माह 200 से 300 करोड़ रुपए मरीजों के परिजनों से इलाज के नाम पर वसूल लिए जाते हैं। इसमें 25-30 बड़े अस्पतालों की कमाई 100 करोड़ के आस पास या ज्यादा है। कोविड-19 पैनल में आए अस्पतालों का हिसाब बेहिसाब है। इन अस्पतालों की कुल कमाई का मोटे तौर पर 35 प्रतिशत कमीशनखोरी में चला जाता है। एक चर्म रोग डॉक्टर तो ऐसा है जिसका क्लीनिक देखने में छोटा सा है लेकिन अंदर चल रहा मेडिकल स्टोर संचालक किराए के नाम पर डाक्टर  को 15 लाख रुपए दे रहा है। तकरीबन हर अस्तपालों में खुले मेडिकल स्टोर या तो अस्पताल के अपने होते हैं या किराए पर। सोचिए कमीशनखोरी के नाम पर खर्च की गई यह राशि उन मरीजों के परिजनों से वसूली जाती है जो इलाज का बिल भरने के लिए अपनी जमीन, गहने, कर्ज लेकर उसे चुकाता है। बताइए कोरोना और कमीशनखोरी से अस्पताल चला रहे डॉक्टरों में से खतरनाक कौन है। समय आ गया है कि इलाज के नाम पर चल रहे कमीशनखोरी का पर्दाफाश हो। यह कोरोना वायरस के हमलों से ज्यादा खतरनाक खेल है। चुप मत बैठिए यह लड़ाई लंबी है।

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