सरकारों को जनता से डरना चाहिए, जनता को सरकारों से नहीं.

सभी युद्ध अंततः खत्म हो जाते हैं, लेकिन सत्ता और सियासत जो ताकत हासिल कर लेती है वह हमेशा बनी रहती है.    —फ्रैंक चोडोरोव

रणघोष खास. देशभर से


देश की आजादी के बाद अब एक सवाल लगातार हर भारतीय को परेशान कर रहा है कि हमें ताकतवर लोकतांत्रिक संस्थाएं चाहिए या फिर ताकतवर सरकारें? दोनों एक साथ चल नहीं पा रही हैं। यदि हम ताकतवर यानी बहुमत से लैस सरकारें चुनते हैं तो वे लोकतंत्र की संस्थाओं की ताकत छीन लेती हैं। भारतीय लोकतंत्र के 1991 से पहले के इतिहास में हमारे पास बहुमत से लैस ताकतवर सरकारों (इंदिरा-राजीव गांधी) की जो भी स्मृतियां हैं, उनमें लोकतांत्रिक संस्थाओं यानी अदालत, अभिव्यक्ति, जांच एजेंसियों, नियामकों के बुरे दिन शामिल हैं।  1991 के बाद बहुमत की पहली सरकार हमें मिली तो हमें दुबारा इसका अहसास क्यों हो रहा है। इस डर के सच को समझना होगा। बात यहां देश की छोटी- बड़़ी सरकारों के उठाए जा रहे कदमों की हो रही है। लोकतंत्र का दम घोंटने का वही पुराना डिजाइन है। ताकतवर सरकार यह नहीं समझ पाती कि वह स्वयं भी लोकतंत्र की संस्था है और वह अन्य संस्थाओं की ताकत छीनकर कभी स्वीकार्य और सफल नहीं हो सकती।

यह कतई जरूरी नहीं है कि लोकतंत्र में सरकार का हर फैसला सही साबित हो। इतिहास सरकारी नीतियों की विफलता से भरा पड़ा है. लेकिन लोकतंत्र में फैसले लेने का तरीका सही होना चाहिए। ताकतवर सरकारों की ज्यादातर मुसीबतें उनके अलोकतांत्रिक तरीकों से उपजती हैं। किसानों को लेकर पारित किए गए बिल के विरोध में खेत से सड़क पर पहुंचे किसानों के गुस्से ने यह साबित कर दिया है। इसी तरह जब अदालतें सामूहिक आजादियों से आगे बढ़कर व्यक्तिगत स्वाधानताओं (निजता, संबंध, लिंग भेद) को संरक्षण दे रही हैं तब लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्वयत्तता के दुर्दिन देखने लायक हैं। क्या 1991 के बाद का समय भारत के लिए ज्यादा बेहतर था जब सरकारों ने खुद को सीमित किया और देश को नई नियामक संस्थाएं मिलीं? क्या भारतीय लोकतंत्र अल्पमत सरकारों के हाथ में ज्यादा सुरक्षित है? क्या कमजोर सरकारें बेहतर हैं जिनके तईं लोकतंत्र की संस्थाएं ताकतवर रह सकती हैं?  हम सिर्फ वोट दे सकते हैं. यह तय नहीं कर सकते कि सरकारें हमें कैसा लोकतंत्र देंगी। इसलिए वोट देते हुए हमें लेखक एलन मूर की बात याद रखनी चाहिए कि सरकारों को जनता से डरना चाहिए, जनता को सरकारों से नहीं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *