स्मृति शेष: मीडिया का मुस्कराता चेहरा दिनेश दुबे

 वह झूठ बोलता रहा ठीक हो रहा है चिंता की बात नही, अचानक चला गया


रणघोष खास. एक पत्रकार की कलम से


दैनिक जागरण रेवाड़ी ब्यूरो कार्यालय में मार्केटिंग विभाग का मुस्कराता- हंसता और मिलनसार  दिनेश दुबे को भी कोरोना ने हमसे छीन लिया। इससे पहले जागरण के सीनियर साथी हेमंत मिश्रा ने साथ छोड़ दिया था। दिनेश दुबे के जीवन में कैरियर की शुरूआत 14 साल पहले दैनिक भास्कर रेवाड़ी के विज्ञापन विभाग से हुई थी। अपने मधुर व्यवहार, सादगी और सीधी- सरल भाषा से उन्होंने अपनी सर्विस और रिश्तों को कभी कमजोर नहीं होने दिया। भास्कर में रहते हुए प्रबंधक के हर टास्क को यह युवा पूरा कर देता था। विज्ञापनदाताओं से दुबे का रिश्ता पारिवारिक रहा। भास्कर में बतौर ब्यूरो प्रमुख रहते हुए मैने दुबे को चुनौतियों से पीछे हटते हुए नहीं देखा। सभी से तालमेल बनाकर चलना सभी की इज्जत करना उसके संस्कार में था। समय के साथ दुबे दैनिक जागरण में आ गए लेकिन रिश्तों को कभी कमजोर नहीं होने दिया। जब कभी भी मिलना उसकी अंदाज में रहना। एक बात जरूर कहता संबंधों को बनाए रखिए, निभाते रहे। यही हमारी सबसे बड़ी ताकत है। हमारी वजह से किसी का कोई नुकसान नहीं हो। तमाम दबाव के बावजूद धोखे से झूठ बोलकर विज्ञापन लेना दुबे के मूल्यों के खिलाफ था। बेशक वे इसके लिए अपनी सीनियर्स की डांट फटकार खाना पंसद करते थे। यहीं वजह है कि दिनेश दुबे अपनी संस्थान के साथ साथ अपनी अलग पहचान कायम करने में सफल रहे। व्यक्तिगत जीवन को बेहद सादगी से जीने वाले इस युवा साथी को कभी कलम से इस तरह याद किया जाएगा, यकीन नहीं होता। दिन भर होती बारिश की बूंदे आंसू बनकर हमारे इस युवा साथी को नमन करती रही।

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