अरे, वाड़ी बीड़ी तो पीला दे, अब कोई नहीं कहेगा, राजेंद्र ठेकेदार नहीं रहे
– हमेशा मजाक के मूड में रहने इस शख्स के जीवन का संघर्ष किसी ज्वार भाटे से कम नहीं था
रणघोष खास. रेवाड़ी की कलम से
अरे वाड़ी बीड़ी तो पीला दे..। इसी तकिया कलाम से सामने वाले को अपना बना लेने वाले 65 साल के राजेंद्र सिंह ठेकेदार बुधवार अल सुबह हार्ट अटैक से हम सभी को छोड़कर चले गए। यह हमारी नियती है कि दुनिया से जाने के बाद हमें किसी इंसान के असल व्यक्तित्व का अहसास होता है। हमेशा हंसी मजाक के मूड में रहने वाले राजेंद्र सिंह ठेकेदार में वह अदभूत क्षमता थी कि हर कोई नेता उन्हें अपना मानकर चलता था। विधि का विधान कहिए या उनके जीवन के संघर्ष की कहानी जिसे सुनकर हर कोई इस शख्स को सलाम करें तो बड़ी बात नहीं होगी।
राजेंद्र सिंह का जब जन्म हुआ तो पिताजी बालपन में छोड़कर चले गए। मां ने तीनों भाई ओर एक बहन को पाल पोसकर बड़ा किया। बड़े होकर भाईयों ने अपनी जिम्मेदारी संभाली। परिवार का संभलना शुरू हुआ कि बहनोई की सड़क हादसे में मृत्यु हो गईं। बहन और चारों उनके बच्चों का जिम्मा राजेंद्र सिंह एवं उनके भाईयों पर आ गया। इस दर्द से उबरना ही शुरू किया था कि राजेंद्र सिंह के इकलौते साले की भी मृत्यु हो गई। परिवार में कोई संभालने वाला नही था लिहाजा साले की पत्नी एवं दो बच्चो के लालन पालन का जिम्मा उठाना शुरू कर दिया। चुनौतियों से भरा जीवन आगे बढ़ रहा था। राजेंद्र सिंह के दो बेटे दिनेश और हरीश बड़े हुए। दिनेश की शादी के बाद 22 साल के हरीश का रिश्ता भी कर दिया था। शादी की तैयारी चल रही थी कि वह सड़क हादसे में गंभीर रूप से घायल हो गया। डॉक्टरों ने जवाब दे दिया कि उसके शरीर के निचला हिस्सा हमेशा के लिए खत्म हो गया है। राजेंद्र सिंह ने बेटे की शादी नहीं की। 16 साल तक एक पिता बेटा बनकर परिवार के साथ अपने बेटे की सेवा करता रहा। देशभर के अस्पतालों में इलाज कराया लेकिन वह भी चल बसा। इन हालातों ने राजेंद्र सिंह को शुगर और हार्ट का मरीज बना दिया। इस शख्स का कमाल देखिए। इतना सबकुछ होने के बावजूद लोगों ने उन्हें हमेशा मुस्कराते हुए देखा। राजेंद्र सिंह के नाम से हजारों लोग मिल जाएंगे लेकिन राजेंद्र ठेकेदार का नाम सुनते ही सभी के दिमाग में इस शख्स की तस्वीर आंखों के सामने घूम जाती है।
राजनीति का फ्लाप हीरो होते हुए भी वह सभी का चहेते रहे
रेवाड़ी विधानसभा सीट से तीन बार चुनाव लड़ने वाले राजेंद्र सिंह की राजनीति ने भी जमकर परीक्षा ली। वे ताउम्र राजनीति के फ्लाप हीरो होते हुए भी सभी पार्टी के सभी नेताओं के चेहते थे। भाईचारे एवं सामाजिक राजनीति की वह एक मिशाल थे। 1991 में पूर्व सीएम बंसीलाल की हरियाणा विकास पार्टी ने पहली बार उन्हें टिकट देकर रेवाड़ी सीट पर मैदान में उतारा। सफल नहीं हुए लेकिन हिम्मत के साथ जुटे रहे। तीन साल बाद भाजपा- हविपा गठबंधन में उनकी टिकट बंटवारे में भाजपा के खाते में गईं। उन्होंने उस समय नामाकंन भी भर दिया था लेकिन बंसीलाल के आश्वासन पर वापस ले लिया। बाद में उनकी अनदेखी होने लगी तो हविपा को विदा कर चौटाला परिवार से जुड़ गए। यहां भी बसपा से गठबंधन के चलते उनकी टिकट कट गई तो आजाद उम्मीदर मैदान में उतर गए। बसपा से विजय सोमाणी ने चुनाव लड़ा। राजेंद्र सिंह हर समय अपनी दमदार मौजूदगी का अहसास कराते रहे। बाद में पूर्व सीएम ओमप्रकाश चौटाला ने उन्हें मार्केट कमेटी का चेयरमैन बना दिया। समय के साथ उन्होंने चौटाला पार्टी को भी विदा कर दिया और कुलदीप बिश्नोई से रिश्ता बना लिया। इससे पहले आजाद उम्मीदवार के तौर पर जोर अजमाइश जारी रही। एक समय बाद यहां भी उनकी अनदेखी होने लगी तो पिछले कुछ सालों से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा से वे जुड़े रहे। राजनीति की जब भी चर्चा होती है राजेंद्र सिंह ठेकेदार जरूर चर्चा में रहे हैं।
जिससे भी दिल से मिलते उसे अपना बना लेते थे
राजेंद्र सिंह के जीवन का संघर्ष इतना गहरा था इस बारे में उनके परिवार के सदस्य खासतौर से उनकी पत्नी कमलेश देवी जो चटटान की तरह उनकी ताकत बनकर रहती थी ने कभी उजागर नहीं होने दिया। 1994 में राजेंद्र ठेकेदार के साथ साये की तरह रहने वाले रोशनलाल बताते हैं कि रिश्ता खून से नहीं कर्म और व्यवहार से बनता है। ठेकेदार साहब इसकी मिशाल है। हर किसी के सुख- दुख में आना जाना उनका रूटीन था। साफ मन का होने की वजह से हर किसी को अपना बनाने का उनमें गजब का हुनर था। साथ बैठकर खाना खाते थे चाहे वो गरीब हो या अमीर या किसी भी जाति से। दूसरा शुगर होते हुए भी डॉक्टरों की मनाही के बावजूद किसी के घर की चाय इसलिए पीते थे कि सामने वाले को बुरा ना लगे।