हम लांघ चुके हैं धरती की सुरक्षा की सात सीमाएं, क्‍या हैं ये सीमाएं, क्‍या खतरे में है धरती?

विकास की दौड़ में पूरी दुनिया नए-नए अविष्‍कार तो कर रही है, लेकिन साथ ही जलवायु को काफी नुकसान भी पहुंवा रही है. ऐसे में इंसानों की सेहत और हमारे ग्रह की सुरक्षा को खतरा भी बढ़ता जा रहा है. वैज्ञानिकों का कहना है कि धरती ने अपनी सुरक्षा की सात सीमाएं लांघ ली है. फिलहाल हम जलवायु की आखिरी सुरक्षित सीमा में जीवन यापन कर रहे हैं. उनका कहना है कि जलवायु धरती को सुरक्षित रखने की ज्‍यादातर सीमाएं पार कर चुकी है. लिहाजा, ये बहुत ही जरूरी हो जाता है कि पेरिस समझौते के लक्ष्‍यों को पूरा करने के लिए हमें तेजी से काम करना होगा.

वैज्ञानिकों का कहना है कि धरती पर सुरक्षा की आठ प्राकृतिक परतें होती हैं. ये लेयर्स ही इंसानों और बाकी जीवों को सुरक्षित व स्‍वस्‍थ रखती हैं. नेचर जर्नल में प्रकाशित इस अध्‍ययन को दुनियाभर के 40 से अधिक वैज्ञानिकों की टीम ने किया है. वैज्ञानिकों का कहना है कि अब हमारा ग्रह इंसानों के रहने लायक नहीं रह गया है. शोधकर्ताओं के मुताबिक, इंसान ने धरती को सुरक्षित रखने वाली हर सीमा को लांघ लिया है. वैज्ञानिकों ने मौजूदा हालात को देखते हुए इंसानों के भविष्य पर चिंता जताई है.

धरती की सुरक्षा सीमाओं में क्‍या-क्‍या हैं?
नेवर जर्नल में प्रकाशित अध्‍ययन रिपोर्ट के मुताबिक, हमें प्रकृति से मिली सभी चीजें प्रदूषित हो चुकी हैं. धीरे-धीरे इंसान का जीना मुश्किल होता जा रहा है. वैज्ञानिकों के मुताबिक, हमारे ग्रह धरती और हमारी सुरक्षा सीमाओं में जलवायु, जैव विविधता, मीठा पानी, हवा, मिट्टी और पानी शामिल हैं. इन सभी में जहर का स्‍तर बहुत ज्‍यादा हो गया है. इस वजह से धरती का पर्यावरण खतरे में पड़ गया है. इसका असर इंसानी जीवन पर पड़ रहा है. वैज्ञानिकों ने शोध में पाया कि धरती पर जीवन की सुरक्षा के कंपोनेंट खतरनाक स्‍तर पर पहुंच चुके हैं.

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वैज्ञानिकों के मुताबिक, हमें प्रकृति से मिली सभी चीजें प्रदूषित हो चुकी हैं.

बेहद चिंताजनक हैं अध्‍ययन के नतीजे
वैज्ञानिकों के मुताबिक, धरती और यहां रहने वाली हर जीवित प्रजाति को सुरक्षा मुहैया कराने वाले कंपोनेंट ही अगर खतरे में पड़ जाएंगे तो इसकी कल्‍पना करना मुश्किल नहीं है कि हमारा व हमारे ग्रह का क्‍या होगा. लेख के मुताबिक, वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु ने 1-सी की सीमा लांघ ली है. लाखों लोग पहले ही बदलती जलवायु की चपेट में आ चुके हैं. पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इंपैक्ट रिसर्च के प्रोफेसर जोहान रॉकस्ट्रॉम के मुताबिक, हमारे स्वास्थ्य जांच के नतीजे बेहद चिंताजनक हो चुके हैं.

‘हम लक्ष्‍यों को पूरा करने में सक्षम नहीं’
संयुक्त राष्‍ट्र के सदस्य देश 2015 से वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने पर सहमत हुए हैं. इसके अलावा दुनिया की 30 फीसदी भूमि, समुद्र और मीठे पानी के क्षेत्रों में जैव विविधता की रक्षा करने पर भी सहमति बनी है. पृथ्वी आयोग के वैज्ञानिकों का कहना है कि मौजूदा हालात में हम अपने तय लक्ष्यों को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं. वैज्ञानिकों ने कहा है कि धरती पर हर बदलाव को व्यवस्थित करने का समय आ चुका है. हम संतुलन बनाकर खतरे को कुछ समय के लिए टाल सकते हैं.

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‘संसाधनों के इस्‍तेमाल को करें सीमित’
वैज्ञानिकों का कहना है कि पृथ्वी के क्षरण को रोकने के लिए धरती पर मौजूद संसाधनों के इस्‍तेमाल को सीमित करना चाहिए. ये भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सभी उपलब्‍ध संसाधन गरीबों तक पहुंच जाएं. एम्स्टर्डम यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर और अध्‍ययन की सह-लेखिका जोइता गुप्ता का कहना है कि ग्रहों की सीमाओं के भीतर सुरक्षित रहने के लिए मानवता के साथ न्याय की भावना भी जरूरी है.