ऑनलाइन सुनवाई को बढ़ावा; eCourts फेज-3 लिए क्या है सरकार की योजना
तीसरे चरण के इस वर्ष शुरू होने की संभावना है, जिसका विजन एक अधिक सुलभ और कुशल न्याय प्रणाली को बनाना है. अधिकारियों का कहना है कि इसका एक अहम हिस्सा अदालतों को पेपरलेस बनाना है.
रणघोष खास. भद्रा सिन्हा, दि प्रिंट की रिपोर्ट
निचली अदालतों और उच्च न्यायालयों के 3,000 करोड़ से अधिक दस्तावेजों का डिजिटलीकरण, 1,000 पेपरलेस निचली अदालतें, 1,000 से अधिक अधीनस्थ वर्चुअल कोर्ट्स, और डिजिटल स्टोरेज के लिए क्लाउड स्पेस की खरीद – अपने ई-न्यायालय परियोजना के तीसरे चरण के केंद्र सरकार के ये कुछ प्रमुख फोकस क्षेत्र हैं.भारतीय न्यायपालिका को बदलने की दृष्टि से 2005 में ई-न्यायालय मिशन मोड परियोजना की परिकल्पना की गई थी. जबकि चरण I, जो 2007 में शुरू हुआ, ने बुनियादी ढांचे को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित किया, चरण II, जो 2015 में शुरू किया गया था और चल रहा है, ने वादियों, वकीलों और स्टेक होल्डर्स के सर्विस डिलीवरी पर जोर दिया.चरण III, जो इस वर्ष शुरू होने की संभावना है, जस्टिस डिलीवरी सिस्टम को नागरिकों तक उनके दरवाजे पर पहुंचाने को प्रतिबद्ध है, ताकि न्यायिक प्रणाली को हर उस व्यक्ति के लिए अधिक कुशल और न्यायसंगत बनाया जा सके जो न्याय पाने के लिए अदालतों का रुख करता है.ईकोर्ट्स परियोजना के लिए इस वर्ष के बजट में 7,000 करोड़ रुपये के आउटले की घोषणा करते हुए, केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि चार वर्षों में शुरू किए जाने वाले चरण III को न्याय के कुशल प्रशासन के लिए शुरू किया जाएगा.परियोजना से जुड़े कानून और न्याय मंत्रालय के अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि निचली अदालत के मामलों के दस्तावेजों का डिजिटलीकरण इस चरण का एक बहुत ही महत्वपूर्ण घटक होगा और कुल आवंटन का लगभग 30 प्रतिशत खर्च होने की संभावना है.हालांकि, न्यायिक रिकॉर्ड को डिजिटाइज़ करने की प्रक्रिया 2015 में दूसरे चरण में शुरू की गई थी, अधिकारियों ने कहा कि वर्तमान चरण में मुख्य फोकस निचली न्यायपालिका को पेपरलेस कामकाज की तरफ आगे बढ़ाना होगा.
पेपरलेस होना है
मंत्रालय के एक अधिकारी ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा कि निचली अदालतों में वकीलों को नए मामले शुरू करने के लिए ई-फाइलिंग सुविधा का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. अधिकारी ने कहा, “लेकिन पुराने लंबित मामलों को डिजिटाइज करने की जरूरत है ताकि इन मामलों में नए दस्तावेजों को भी ऑनलाइन दाखिल किया जा सके.” आगे उन्होंने कहा कि इसका यह मतलब कतई नहीं है कि सिर्फ पेंडिंग केसेज को ही डिजिटाइज़ किया जाएगा बल्कि पुराने मामलों को भी डिजिटाइज किया जाएगा. अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की ई-समिति द्वारा एक्टिव मामलों और अदालती दस्तावेजों के संग्रह को ध्यान में रखते हुए सरकार को पिछले साल 3,108 करोड़ मामले होने का अनुमान दिया था.ई-समिति, ई-न्यायालय परियोजना की देखरेख करने वाली गवर्निंग बॉडी है.अधिकारियों ने कहा कि भले ही उच्च न्यायालय और अधीनस्थ अदालतें राज्य के विषय हैं, उम्मीद है कि रिकॉर्ड के डिजिटलीकरण के लिए 100 प्रतिशत धन केंद्र सरकार द्वारा दिया जाएगा. मंत्रालय के एक अन्य अधिकारी ने कहा, ‘हम कोशिश कर रहे हैं कि राज्य साथ आएं और अगर वे योगदान देने के लिए राजी हुए तो हम उनके साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करेंगे.