जोड़-तोड़ में माहिर लालू बिगाड़ेंगे नीतीश का खेल, तेजस्वी की खुलेगी किस्मत ?

 रणघोष खास. नवीन कुमार मिश्र


पशुपालन मामले में सजायाफ्ता किंग मेकर के नाम से ख्‍यात राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद कोई साढ़े तीन साल के बनवास के बाद जेल से जमानत पर निकल गये हैं। सलाखों के पीछे या अस्‍पतालों के परिसर में दिन गिनने वाले लालू अब खुली हवा में सांस ले रहे हैं। जमानत के बाद एम्‍स दिल्‍ली से निकलकर अपनी बेटी मीसा के यहां तत्‍काल हैं। जेल के भीतर रहकर भी चर्चा में बने रहने वाले राजनीति के बड़े खिलाड़ी लालू अब क्‍या खेल करते हैं देखना होगा। उनकी आजादी के बाद राजद को भी ऑक्‍सीजन मिलेगा। युवराज के शासन में घुटन महसूस करने वाले पुराने नेता भी चैन की सांस ले सकेंगे। जोड़ तोड़ में माहिर लालू प्रसाद जब रांची में रिम्‍स निदेशक के बंगले कैदी के रूप में रह रहे थे विधानसभा अध्‍यक्ष पद के लिए चुनाव के दौरान भाजपा विधायक ललन सिंह को फोन कर डोरा डाला था। भाजपा के वरिष्‍ठ नेता पूर्व उपमुख्‍यमंत्री सुशील मोदी ने इसका भंडाफोड़ किया तो बवाल मचा। जिस फोन से ललन पासवान को फोन आया था, क्रॉस चेक के लिए मोदी ने फोन मिलाया तो अपने मजाकिया अंदाज में लालू ने कहा था आप भी पार्टी में उपेक्षित हैं इधर आ जाइए। … बना देंगे। बड़ा बेटा तेज प्रताप ने लालू के पुराने दिनों के साथी और राजद के वरिष्‍ठ नेता रघुवंश प्रसाद सिंह को कह दिया कि एक लोटा पानी समुद्र से निकल जाता है तो कोई फर्क नहीं पड़ता। तब लालू ने बेटे को बुलाकर क्‍लास लगाई, रघुवंश बाबू से पश्‍चाताप जताया मगर पद छोड़ चुके रघुवंश बाबू दुनिया से ही विदा हो गये। बीच में प्रदेश अध्‍यक्ष जगदानंद सिंह पर भी तेज प्रताप ने उसी अंदाज में टिप्‍पणी की थी। जगदा बाबू भी, गंभीर लालू प्रसाद के सबसे भरोसे वाले लोगों में एक है। लालू प्रसाद के बाहर रहने से अब इस तरह के मामलों में संवादहीनता या संवाद दूरी की स्थिति नहीं होगी। पुराने नेता आहत और उपेक्षित महसूस नहीं करेंगे। तेज प्रताप की पत्‍नी को लेकर भी लालू प्रसाद बहुत तनाव में रहे। घर में रहते तो शायद आज जो नौबत है, नहीं आती। घरेलू मोर्चे को साधने में भी मदद मिलेगी। बीते विधानसभा चुनाव के दौरान तेजस्‍वी ने बढ़‍िया परफॉर्मेंस दिखाया। मगर चंद सीटों के फासले से सत्‍ता हाथ से फिसल गई। राजद ने इसे नीतीश का मैनेजमेंट भी कहा। बहुमत जुटाने के मास्‍टर लालू बाहर रहते तो शायद कुछ करामात दिखा पाते। छोटी-छोटी पार्टियों के सहयोग से नीतीश कुमार की सरकार चल रही है। ये छोटी पार्टियां भी भीतर में बीच-बीच में दबाव की राजनीति करती रहती हैं। ऐसे में लालू प्रसाद के लिए खेल की गुंजाइश तो है ही। लालू प्रसाद को लेकर हमेशा आक्रामक रहे भाजपा के वरिष्‍ठ नेता सांसद सुशील मोदी भी इसे समझते हैं। इसलिए जब लालू प्रसाद को जमानत मिली तो उन्‍होंने कहा कि जमानत न्‍यायिक प्रक्रिया है, इससे बिहार की राजनीति और न्‍याय के साथ विकास की प्रशासनिक संस्‍कृति पर असर नहीं पडता। बता दें कि लालू प्रसाद बिहार की राजनीति के लिए अपरिहार्य जैसे हैं। चाहे जेल के भीतर रहें या बाहर। राजनीति के मैनेजमेंट के मास्‍टर रहे हैं। 1990 में पहलीबार बिहार के मुख्‍यमंत्री बने, 1995 में पुन: मुख्‍यमंत्री बने मगर पशुपालन घोटला में नाम आने के बाद 1997 में कुर्सी पड़ी। पार्टी ( जनता दल) अध्‍यक्ष पद से भी विदा हो गये। हाथ से सत्‍ता फिसलती देख राजद नाम से अलग पार्टी का गठन किया और पत्‍नी राबड़ी देवी को मुख्‍यमंत्री बना दिया और पशुपालन मामले में सरेंडर कर दिया। मगर शासन लालू प्रसाद का ही रहा। प्रारंभिक दिनों में लालू की अल्‍पमत की सरकार थी मगर जोड़तोड़ से अपनी सरकार चलाते रहे। सहयोग करने वाली पार्टी भाकपा, आईपीएफ ( अब भाकपा माले), बसपा, सपा किस-किस दल को नहीं तोड़ा। अब देखना है कि उनके बाहर आने से राजद को कितना ऑक्‍सीजन मिलता है और नीतीश सरकार को वेंटीलेटर पर पहुंचाने के इरादे में कितना कामयाब होते हैं।

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