अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण-संरक्षण संगोष्ठी में बोले पद्मभूषण डॉ अनिलप्रकाश जोशी :

पश्चिमी संस्कृति का अंधानुकरण है हमारी दुर्गति का मूल कारण


रणघोष अपडेट. नारनौल


पश्चिमी संस्कृति का अंधानुकरण है हमारी दुर्गति का मूल कारण। भोगवादी प्रवृत्ति के कारण हमारी प्रकृति और संस्कृति, दोनों विकृत हो रही हैं। यह कहना है हैस्को, देहरादून (उत्तराखंड) के अध्यक्ष और प्रख्यात पर्यावरणविद् पद्मभूषण डॉ अनिलप्रकाश जोशी का। मनुमुक्त ‘मानव’ मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा आयोजित ‘वर्चुअल अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण-संरक्षण संगोष्ठी’ में बतौर मुख्य अतिथि उन्होंने कहा कि हम पृथ्वी के कुपुत्र हैं, जिन्होंने अपनी मां को ही संकट में डाल दिया है। प्रकृति और विज्ञान की संस्कृति को अलग-अलग बताते हुए उन्होंने स्पष्ट किया कि विज्ञान को प्रकृति से काटकर और व्यापार से जोड़कर हमने भयंकर भूल की है, जिसका खामियाजा धरती और प्रकृति ही नहीं, पूरे विश्व को भुगतना पड़ रहा है। नागौर (राजस्थान) के समाजसेवी और साढे़ पांच लाख वृक्ष लगाकर कीर्तिमान स्थापित करने वाले पर्यावरणविद् पद्मश्री हिम्मताराम भांभू ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि कोरोना ने ऑक्सीजन का महत्त्व पूरी दुनिया को ठीक-से समझा दिया है। यह वृक्षों की अंधाधुंध कटाई का ही परिणाम है कि अब सांस लेने के लिए हमें ऑक्सीजन के सिलेंडर खरीदने पढ़ रहे हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि प्रकृति से खिलवाड़ और जनसंख्या-वृद्धि के कारण आज हम विनाश के कगार पर पहुंच गए हैं। डॉ पंकज गौड़ द्वारा प्रस्तुत प्रार्थना-गीत के उपरांत चीफट्रस्टी डॉ रामनिवास ‘मानव’ के प्रेरक सान्निध्य में संपन्न हुए इस ऐतिहासिक कार्यक्रम में भोपाल (मध्य प्रदेश) के पूर्व आईएफएस अधिकारी और ‘मी एंड माय अर्थ’ पत्रिका के संपादक जगदीश चंद्र महाकाली साहित्य संगम, महेंद्र नगर (नेपाल) के अध्यक्ष हरीशप्रसाद जोशी, रतलाम (मध्य प्रदेश) की पत्रिका ‘पर्यावरण-डाइजेस्ट’ के संपादक डॉ खुशहालसिंह पुरोहित, पूर्व प्राचार्य और ‘पर्यावरण-संजीवनी’ पत्रिका के संपादक डॉ आरएन यादव, अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश) की पत्रिका ‘हमारी धरती’ के संपादक सुबोधनंदन शर्मा, नीर फाउंडेशन, मेरठ (उत्तर प्रदेश) के अध्यक्ष रमनकांत त्यागी तथा ग्रीन इंडिया फाउंडेशन ट्रस्ट, फरीदाबाद (हरियाणा) के अध्यक्ष डॉ जगदीश चौधरी ने बतौर विशिष्ट वक्ता बढ़ते प्रदूषण, वृक्षों की अंधाधुंध कटाई, नदीजल-प्रदूषण, भूजल-दोहन, कीटनाशकों तथा रासायनिक खादों के प्रयोग और जनसंख्या के बढ़ते दबाव पर गहरी चिंता प्रकट करते हुए कहा कि मानवीय गलतियों, संसाधनों के दुरुपयोग और प्रकृति से खिलवाड़ के कारण ही आज पूरे विश्व को संकटों से जूझना पड़ रहा है और पूरी पृथ्वी का जीवन खतरे में पड़ गया है। उन्होंने चेतावनी दी कि हम अभी नहीं संभले, तो फिर बहुत देर हो जाएगी। इस अवसर पर चीफट्रस्टी डॉ रामनिवास ‘मानव’ और डॉ पंकज गौड़, कोरबा (छत्तीसगढ़) के डॉ प्यारेलाल अदिले, कंचनपुर (नेपाल) के डंबरदत्त शर्मा और आयोवा (अमेरिका) की डॉ श्वेता सिन्हा ने पर्यावरण-संबंधी कविताएं प्रस्तुत कर कार्यक्रम को और भी रोचक बना दिया। डॉ‌ रामनिवास ‘मानव’ का एक दोहा देखिए-‘पेड़ कटे, जंगल घटे, मौसम हुआ उदास। लेकिन चिट्ठी दर्द की, भेजे किसके पास।।’ लगभग तीन घंटों तक चली इस महत्त्वपूर्ण संगोष्ठी में विश्व-विधायक, लखनऊ (उत्तर प्रदेश) के संपादक मृत्युंजयप्रसाद गुप्ता, हरियाणा साहित्य अकादमी, पंचकूला के पूर्व निदेशक डॉ पूर्णमल गौड़, बीपीएस महिला विश्वविद्यालय, खानपुर कलां के प्रोफेसर डॉ रवि भूषण, चौधरी बंसीलाल विश्वविद्यालय, भिवानी की प्रोफेसर डॉ सुशीला आर्य तथा महेंद्रगढ़ के पूर्व जिला बाल कल्याण अधिकारी विपिन शर्मा के अतिरिक्त तलश्शेरी (केरल) के डॉ पीए रघुराम, कोलकाता (पश्चिम बंगाल) की रुचिकुमारी मंडल, रतलाम (मध्य प्रदेश) की तृप्तिसिंह सकरारी, शिमला (हिमाचल प्रदेश) की उज्ज्वला राठौर, राजस्थान से अलवर के संजय पाठक और नागौर की दिव्या भांभू तथा हरियाणा से हिसार के डॉ राजेश शर्मा और डॉ यशवीर दहिया, भिवानी के विकास कायत, रेवाड़ी के डॉ आरके जांगड़ा, नारनौल की डॉ कांता भारद्वाज, पुष्पलता शर्मा, डॉ जितेंद्र भारद्वाज, कृष्णकुमार शर्मा, एडवोकेट, लोकांश भारद्वाज और मंडी अटेली के निष्कर्ष ‘मानव’ आदि की उपस्थिति विशेष उल्लेखनीय रही।

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